रातों में जागता है शहर

(यह लेख बीते रम़जान के दौरान पुराना शहर हैदराबाद के दौरे के बाद विचारों को संकलित करते हुए लिखा गया था।)
दुनिया के सारे शहर हो सकता है कि शहरीकरण में एकरूपता रखते हों, लेकिन हर शहर की अपनी अलग सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक विशेषताएं होती है, जो उसे दूसरे शहर से अलग रखती हैं। हैदराबाद भी इस मामले में भिन्न होने की पहचान रखता है। हालांकि यह अन्य ऐतिहासिक शहरों की तुलना में बहुत पुराना शहर नहीं है, लेकिन देश में बीती चार-पांच सदियों में जितने शहर में बसे हैं, उनमें हैदराबाद को विशेष स्थान प्राप्त है। शायद यही वज्ह है कि पर्यटकों को इसका आकर्षण अपनी ओर खींच लाता है। वे यहाँ घूम फिर कर अपनी तरह की अलग यादें लेकर चले जाते हैं, लेकिन कभी-सभी ऐसा भी होता है के हम ही इस शहर की उन विशेषताओं को क़रीब से देख और महसूस नहीं कर पाते। दो दिन पहले एक मित्र ने मुंबई से फोन पर बातों बातों में हैदराबाद की तारीफ करते हुए कहा कि इन दिनों तो आपका शहर रातों में जाग रहा होगा। बड़ी रौनक़ और चहल पहल होगी। बात तो बिल्कुल सही थी। उत्सवों के दिनों में रमज़ान में हैदराबाद खासकर पुराने शहर की रातों को जैसे चार चांद लग जाते हैं।
मित्र से बातचीत के बाद मैंने सोचा कि रातों में जागते शहर को एक बार देख आएँ। क्या सचमुच यह पूरी ऊर्जा के साथ जाग रहा है या फिर उसकी आँखें भी उनींदी है। रात ग्यारह बजे, नये पुल से जैसे ही चारमीनार का रुख़ किया तो लगा कि यक़ीनन बाज़ार अपनी पूरी बहार पर है। हालांकि दूसरे शहरों बल्कि अपने ही शहर के दूसरे बाज़ारों में लगभग सभी दुकानें बंद हो गयी हैं, लेकिन यहाँ केवल बाज़ार ही नहीं, बल्कि बाज़ार में होने का हर तत्व जाग रहा है, उत्साहित है, और पूरी ऊर्जा के साथ अपने धुन में जी रहा है।
यहाँ केवल कपड़े और उत्सव के अवसर पर अनिवार्य और सामान्य दैनिकोपयोगी वस्तुएँ ही नहीं बल्कि ऐसी चीज़ें, जिसका उत्सव से कोई खास संबंध नहीं है, ग्राहक को अपनी ओर आकार्षित कर रही है और खरीदने के लिए आमंत्रित कर रही है। रात धीरे-धीरे आगे सरक रही है, लेकिन इसकी किसी को चिंता नहीं है। न ही खरीदने वाले को और बेचने वाले को, बल्कि वो भीड़ भी रात से लापरवाह है, जो न खरीदने आयी है और न बेचने बल्कि वह बाज़ार की शान शौक़त का हिस्सा बनकर अपना वक्त गुज़ारने आयी है। अगर कोई अजनबी इस शहर में आये और इस बाज़ार मे रात के बारह-एक बजे चला आये तो उसे विश्वास नहीं होगा कि आधी रात बीत चुकी है। वह इस बात पर भी विश्वास कर नहीं पाएगा कि यह बाज़ार रमज़ान के लिए सजा है, क्योंकि खरीददारों की भीड़ उसे धर्म और वर्ग की एकरूपता से परे दिखाई देगी।
एक दौर था, जब रातों में जागने की आदत शहर के एक खास इलाक़े को साल के बारह महीने थी। यह ख़ास इलाक़ा गुलज़ार हौज़ और चारमीनार और मदीना सर्कल के आस-पास फैला हुआ था, लेकिन शहर को आतंकी सायों और आवारा राउडी बादलों की नज़र लग गयी और यह सुरक्षा और कानून व्यवस्था की जकड़नों में जकड़ता गया। फिर उसकी आत्मा इन जकड़नों से आज़ाद होने के लिए उत्सवों का इन्तेज़ार करने लगी। इत्तेफाक़ यह कि बीते कुछ वर्षों से बोनालू और रमज़ान ने शहर की सांस्कृतिक रंगों मेंं गंगा-जमुनी तहज़ीब का रंग तेज़ी से दौड़ने लगा।
पुराने शहर ने बीते एक दशक में अपने भीतर कई सारे परिवर्तन देखे हैं। चारमीनार और पत्थरगट्टी कभी इसका मुख्य आकर्षण हुआ करते थे, लेकिन इस एक दशक में बाज़ार की सांसों में जैसे ख़ूब घुटन महसूस की हो। उसके फुटपाथों और सड़कों पर कुछ इस तरह क़ैद किया गया कि वह अपने आपको दबा-दबा महसूस करने लगा और फिर जैसे दब कर वह फटने और फैलने लगा। आज इसका नया वैभव लौट आया है। अब यह केवल पत्थरगट्टी और चारमीनार या लाड बाज़ार नहीं है, बल्कि उसने मूसा बावली, हुसैनी अलम और दूसरी ओर मीर आलम बंडी सुलतान शाही तथा मक्का मस्जिद की दक्षिणी दिशा में अपनी बाहें फैलायी हैं।
आश्चर्य इस बात का है कि इसने समय के साथ-साथ कई सारे प्रभाव भी स्वीकार कर लिये हैं। कभी यहाँ बन मिर्ची, समोसा, लुख्मी, पाये, बिरयानी, हलीम, खीमा, पराठा जैसी चीज़े ही मिला करती थी, लेकिन आज इडली-दोसा, चाट भंडार, बर्गर-पीज़ा और बहुत सारे देसी-बदेसी चीनी, यूरोपी व्यंजन बाज़ार का हिस्सा बन गये हैं। चाहे आधी रात हो या फिर दो-तीन या चार बजे का समय सड़कों के किनारे बनी अस्थायी फूड कोर्ट्स पर युवकों की भीड़ जमी रहती है। इस दृष्य को देखने के ख्वाहिशमंद लोग रमज़ान के दौरान रात के किसी भी पहर पत्थर गट्टी, चारामीनार, मूसाबावली, रक़िाबगंज की किसी भी गली में प्रवेश कर इन व्यंजनो का स्वाद हासिल कर सकते हैं। बहुत साल पहले केंद्र और राज्य सरकारों ने यहाँ नाइट बाज़ार का प्रस्ताव रखा था। हालांकि पुराने शहर के लिए यह ख्वाब अभी फाइलों में ही बंद है, लेकिन रमज़ान के इस उत्सव के दौरान दिखाई देने वाले दृष्य बताते हैं कि यह तजुर्बा नये पुल के आस-पास किसी भी जगह कामियाब सिद्ध हो सकता है। जब शिल्पारामम में नाइटबाज़ार चल सकता है और जीएचएमसी वहाँ बिरयानी और हलीम उत्सव का आयोजन कर सकता है तो शहर के इस ऐतिहासिक क्षेत्र में भी नाइट बाज़ार के प्रस्ताव पर Dाागे बढ़ना चाहिए ताकि शहर जागता रहे।

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