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एक तहज़ीब का सफ़र

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राजकुमारी इंदिरा धनराजगीर की यादों में बसा हैदराबाद राज़कुमारी इंदिरा धनराजगीर हैदराबाद के एक मशहूर जागीरदार और अदबनवाज राजा धनराजगीर की बेटी हैं . ये घराना उन बहुत कम ख़ानदानों में से एक था, जो हैदराबाद की निज़ाम हुकूमत और यहां के नवाबों को क़र्ज़ दिया करता था। हैदराबाद में जामबाग़ पैलेस अदबी-ओ-सक़ाफ़्ती सरगर्मियों का मर्कज़ समझा जाता था। इसी माहौल में राजकुमारी ने होश सँभाला। अपने वालिद के साथ रहते हुए शाही दरबार और नवाबों, जागीर दारों के ख़ानदानों से उनके अच्छे ताल्लुक़ात रहे। हैदराबाद से इंडो - एंगलियन  शायरा के तौर पर भी उन्होंने दुनिया भर में अपनी ख़ास शनाख़्त बनाई। उस्मानिया यूनीवर्सिटी की सैनेट रुक्न रही हैं। ऑल इंडिया विमेंस कान्फ़्रेंस के साथ इन का गहरा ताल्लुक़ रहा, आंध्रा- प्रदेश शाख़ की सदर रहीं। आंध्रा-प्रदेश हिन्दी अकेडमी के सदर के ओहदे पर रहते हुए तेलूगू की अदबी तख़लीक़ात के हिन्दी में तर्जुमा करवाने में उनकी अहम किरदार रहा है। एफ़.एम. सलीम के साथ बातचीत पर मबनी कुछ यादें यहाँ पेश हैं। मम्मा बताती हैं कि मैं तीन साल तक बात नहीं कर पाई। वो ड़र गई कि मैं कहीं गूंगी ना हो जाऊं। ती

फिर वो कौन था जो इतनी देर बोलता रहा

फिर वो कौन था जो इतनी देर बोलता रहा --- कायनात में सबसे अहम जितनी चीज़ें हैं , उनमें से सांसों के बाद अगर कोई सब से ज़रूरी चीज़ है तो वह .. लप़्ज़ है , लेकिन कभी - कभी एक और चीज़ उस पर भारी पड़ जाती है और वह है ख़ामोशी। किसी ने शायरी के बारे में कहा है कि यह दो लप़्ज़ों के बीच की ख़ाली जगह है। कहते हैं , कुछ कहने से ज्यादा त़ाकत ख़ामोश रहने में लगती है। शायरी ने भी ख़ामोशी के कई राज़ ख़ोले हैं। कहे हुए लप़्ज़ों को समझने के लिए न कहे हुए पर ज़्यादा ध्यान देने का फ़न भी दुनिया ने शायद शायरी से ही सीखी है। दो लोग बिना कुछ कहे , किस तरह सब कुछ कह जाते हैं , इसकी मिसाल देते हु गुलज़ार कहते हैं - ख़ामोशी का हासिल भी एक लंबी - सी ख़ामोशी है उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी ज़िन्दगी में कुछ ऐसे लम्हे भी आते हैं , जहाँ कोई हमारी ख़ामोशी पढ़ लेता है और हम उसके इस तरह अपने को पढ़ने से चौंक जाते हैं। फिर हम भी उसकी ख़ामोशी को पढ़ने लगते हैं। उसके बाद लप़्ज़ों का कारोबार भी इसी ख़ामोशी के पेट से पैदा होता है। और लप़्ज़ आवाज़ के बाज़ार में गुम हो जाते हैं। यूँ तो कह