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Showing posts from April, 2016

ग़ज़ल की जानी पहचानी आवाज़- शरद गुप्ता

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और मैं हैदराबाद लौट आया कौन कहता है कि बुद्धु ही लौट के घर आते हैं, कभी कभी होशियार लोग भी घर लौट के आ जाते हैं। उनका घर लौट के आना कामयाबी को पीठ दिखाना नहीं होता, बल्कि सही वक्त पर सही फैसला करना भी होता है। हैदराबाद के प्रतिष्ठित ग़जल गायक शरद गुप्ता की कहानी भी यही बताती है कि पार्श्व गायन की एक बड़ी दुनिया को छोड़कर वो अपने शहर वापिस चले आये थे। इसलिए भी कि वो अपने शौक़ को दिखावे की चकाचौंध  के हवाले नहीं करना चाहते थे और ना ही अपने पारिवारिक खुशियों को अनिश्चितता की ग़ुबार में गुम करना उन्हें अच्छा लगा। गायकी उन्होंने छोड़ी नहीं और वकालत को भी अपनाया। शरद गुप्ता अनुप जलोटा के शागिर्द हैं। वे ग़ज़ल और भजन दोनों गाते हैं। एक भिन्न आवाज़ के मालिक हैं। वे अपने बारे में बताते हैं, -     पेशे से मै वकील हूँ। प्रैक्टिस अच्छे से कर रहा हूँ। संगीत मेरा पैशन है। इसी की वज्ह से मैं सारी दुनिया घूमा हूँ। संगीत मेरे पेशे में दखल नहीं देता। 24 घंटे हैं दिन में। इसमें मैं संगीत के लिए समय निकाल ही लेता हूँ। दूसरी ओर पेशा भी मेरे नज़दीक काफी महत्वपूर्ण है। देखा जाए तो गायक

हैदराबाद से शुरू हूई थी जॉनी लीवर की कामयाबी की कहानी

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फिल्मों में मिमिक्री कलाकार से हास्य अभिनेता बनने में लगे थे 10 साल हिन्दी   फिल्मों के लोकप्रिय कलाकार जिन्होंने हास्य को बड़ी गंभीरता से लिया और   फिल्मों के साथ-साथ मंचीय हास्य में बहुत लंबी जिंदगी जी है। वे अपनी उम्र के साठ साल पूरे करने जा रहे है। उनका पहला   मंचीय शो हैदराबाद के रवींद्र भारती में हुआ था। रामकुमार ने अपने   चेले जॉनी को यहाँ अपनी तबियत खराब होने के कारण भेजा और उन्होंने यहाँ पहले ही शो में धूम मचा दी थी। उसी   शहर में पिछले बुधवार की शाम एक निजी महफिल में जॉनी इतना खुले की खुलते चले गये औरअपनी जिन्दगी की कई    दिलचस्प घटनाओं का सविस्तार वर्णन किया।   जॉनी लीवर ने बातचीत की शुरूआत हैदराबाद ही से की। जिस शहर में उन्होंने अपना पहला शो पेश किया था , उसी शहर में जब पिछले साल वे अपना शो लाना चाहते थे तो आंदोलनकारी गतिविधइयों के कारण उन्हें वो शो रद्द करना पड़ा। अब फिर जल्द ही वे यहाँ अपना शो पेश करने की योजना बना रहे हैं। कई बातें हुईं। उनकी अपनी जिन्दगी , कला और कलाकारों की स्थिति और हास्य का मौजूदा माहौल। और भी बहुत कुछ...जॉनी आज भी वो दिन नहीं भूलते जब व

कश्मीर की वादियों से खूबसूरती को चुराने वाली अमित मेहरा की तस्वीरें

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कैमरे की आँख कभी कभी ऐसे दृष्य देख लेती है, जिसे देखना सामान्य आँख के  बस में नहीं होता। शायद यही वज्ह है कि लोग जब किसी अच्छी तस्वीर को देखते हैं तो अनायास की वाह.. का शब्द ज़ुबान से निकल ही जाता है। फोटोग्राफी की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाने वाले अमित मेहरा के चित्र दर्शक के मन में यही भाव पैदा करते हैं।  कलाकृति आर्ट गैलरी में कश्मीर शीर्षक से उनके छायाचित्रों की प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए सचमुच में जहाँगीर की उस कथन को सार्थक पाते हैं, जिसमें उसने कहा था कि अगर दुनिया में कहीं जन्नत होती तो वह कश्मीर ही होता। उन तस्वीरों के फ्रेम बताते हैं दृष्य जब कैद हो रहा था, तो एक साथ कई सारे तत्व उसमें समाते जा रहे थे। खुदा के सामने हाथ बांधे खड़ी कश्मीरी महिलाओं के चित्र को गौर से देखते हैं तो महसूस होता है कि फोटोग्राफर केवल दृष्य ही नहीं दख रहा, बल्कि उस पूरे परिवेश की पृष्ठभूमि और उसके पीछे छुपे दृष्य को भी देख रहा है। चित्र के ऊपर दूर तक फैले बादल साफ दिखाई देते हैं और नज़र उस ओर भी उठ ही जाती है। अजीब बात है कि आम तौर पर खुदा का नाम लेते ही आँखें आसमानों के पीछे छुपी

एक पैसे के इनाम से शुरू हुई थी उर्दू प्रोफेसर नसीमुद्दीन फरीस की कहानी

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प्रो . नसीमुद्दीन फरीस मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवार्सिटी के उर्दू के प्रोफेसर हैं। डीन पद भी संभाल रहे हैं और हालही में उन्हें विश्वविद्यालय ने मौलाना आज़ाद चेयर का प्रमुख बनाया है। यह विश्वविद्यालय का काफी सम्माननीय पद है। वे पाँच किताबों के रचनाकार हैं। हैदराबाद में सरकारी प्राइमरी स्कूल के शिक्षक से लेकर हैदराबाद विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर तथा मानू के उर्दू प्रोफेस तक की उनकी जीवन यात्रा काफी संघर्षों से गुजरी है। उनसे हुई बातचीत के कुछ अँश यहाँ प्रस्तुत हैं। मौलाना आज़ाद चेयर के बारे में कुछ बताइए मौलाना आज़ाद चेयर का कार्य 2011 में नियमित रूप से शुरू हुआ था। प्रो. सुलैमान सिद्दीकी इसके पहले प्रभारी थे। उन्होंने वर्ष 2012 तक काम किया। उसके बाद कुछ दिन तक इसका कार्य रुका रहा। फिर आमेना किशोर ने इसे संभाला था। इन दोनों प्रभारियों ने काफी अच्छे काम किये। विश्वविद्यालय की दूरस्थ शिक्षा के लिए इतिहास की पुस्तकें उर्दू में उपलब्ध नहीं थी। उन्होंने उसे प्राथमिकता दी। उन्होंने इसका कार्य युद्ध स्तर पर किया था। अंग्रेज़ी , उर्दू और दूसरी भाषाओं के इतिहासकारों को