कश्मीर की वादियों से खूबसूरती को चुराने वाली अमित मेहरा की तस्वीरें
कैमरे की आँख कभी कभी ऐसे
दृष्य देख लेती है, जिसे देखना सामान्य आँख के
बस में नहीं होता। शायद यही वज्ह है कि लोग जब किसी अच्छी तस्वीर को देखते
हैं तो अनायास की वाह.. का शब्द ज़ुबान से निकल ही जाता है। फोटोग्राफी की दुनिया
में अपनी अलग पहचान बनाने वाले अमित मेहरा के चित्र दर्शक के मन में यही भाव पैदा
करते हैं।
कलाकृति आर्ट गैलरी में कश्मीर शीर्षक से उनके
छायाचित्रों की प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए सचमुच में जहाँगीर की उस कथन को
सार्थक पाते हैं, जिसमें उसने कहा था कि अगर दुनिया में कहीं जन्नत होती तो वह
कश्मीर ही होता। उन तस्वीरों के फ्रेम बताते हैं दृष्य जब कैद हो रहा था, तो एक
साथ कई सारे तत्व उसमें समाते जा रहे थे। खुदा के सामने हाथ बांधे खड़ी कश्मीरी
महिलाओं के चित्र को गौर से देखते हैं तो महसूस होता है कि फोटोग्राफर केवल दृष्य
ही नहीं दख रहा, बल्कि उस पूरे परिवेश की पृष्ठभूमि और उसके पीछे छुपे दृष्य को भी
देख रहा है। चित्र के ऊपर दूर तक फैले बादल साफ दिखाई देते हैं और नज़र उस ओर भी
उठ ही जाती है।
अजीब बात है कि आम तौर पर
खुदा का नाम लेते ही आँखें आसमानों के पीछे छुपी हुई उस शक्ति को निहारने लगती
हैं, जहाँ दूर तक क्षतिज फैला हुआ है, लेकिन दुनिया के अधिकतर इबादत के तरीके
बताते हैं कि खुदा को आसमानों में नहीं बल्कि ध्यान को एकाग्र कर देखा जा सकता है।
इसके बावजूद जब हालात काबू में नहीं रहते,
सब कुछ ठीक ठाक नहीं चलता, मुसीबातें रुकने का नाम नहीं लेती, आसमान निरंतर
रहम की आँख मूंद लेता है, तब लोग हाथ पसारे आसमान की ओर देखने लगते हैं। चाहे वह
सूखा या तूफान लोग अपनी झोलियाँ फैलाए
उसके सामने खड़े हो जाते हैं। अमित मेहरा के चित्रों में ऐसे चित्रों की संख्या
अधिक है, जिसमें उस अदृष्य शक्ति को पुकारा जा रहा है।
अमित केवल फोटोग्राफर
नहीं हैं, बल्कि वे अपनी तस्वीरों की शैली के एक शिल्पी के रूप में भी उभरते हैं।
यही दुनिया है कि डाक्युमेंटरी फिल्मों के साथ साथ निर्माण कला के उत्तम नमूनों को
उन्होंने पूरी विशेषता के साथ तस्वीरों में कैद किया है।
कश्मीर जहाँ अपनी पहाड़ी
चटानों के लिए मशहूर है उसी तरह उसकी वादियाँ भी उसे शोहरत की बुलंदियाँ अता करती
हैं। उसके बूढे और जवान पेड़, फूलों की क्यारियाँ, पौधों की कतारें और झीलों का
सुहानापन आँखों में को ठंडक बख़्शता है और वे दृष्य हमेशा के लिए स्मृतियों का
हिस्सा बन जाते हैं। छायाचित्रकार हालाँकि जब तस्वीर खींचता है तो उसकी दृष्टि में
दूसरे लोग उसे देखकर क्या महसूस करेंगे यह भाव नहीं होता, जैसा कि कला कि अन्य विधाओं
में होता है, लेकिन जब तस्वीर खिंच जाती है तो उसे दूसरों को दिखाने की इच्छा
जागती है। धुंध से भऱी और बर्फ से लिपटी सुबहें, ताज़ा सुहानी हवाओं की खुश्बू से सुगंधित
शामें और बरसात की फुहारों से भरे दिन इन्सानों को ही नहीं, कबूरतरों के लिए भी
सुकून के असंख्य पल मुहैया करते हैं। अमित मेहरा ने कश्मीरी बस्तियों में घूम घूम
कर वहाँ की ईमारतों की स्थापत्य शैली को ही कैद नहीं किया, बल्कि दरो दीवारों के
बीच से झाँकते हुए कई दृष्य कैमरे में कैद किये हैं।
एक कब्रस्तान की बाउँड्री
की दरारों से झाँकते बिलावड, तराजु में तुलती मुर्ग़ी, बर्फ के बीच से रास्ता
बनाता कुत्ता, बारिश में अपनी साइकिह के साथ खड़ा मुसाफिर, छोटे बड़े मकानों की
घनी आबादी से भरा एक शहर, दुनिया जहाँन की समस्याओं से अंजान अपनी ही दुनिया मे
खुश दो किशोर, शांति के दूतों के बीच अपने होने का एहसास दिलाती बंदूक नली,
बांसुरियाँ बेचता एक बालक, झील में खड़े शिकारे, छलांग लगाता तैराक, गुब्बारे,
खिलाडी सहित बहुत सारे दृष्य उनके इस कलेक्शन का हिस्सा हैं और छायाचित्रों में
कश्मीर की खूबसूरती को कलाप्रेमियों की स्मृतियों तक विस्तार देते हैं।
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