हैदराबाद से शुरू हूई थी जॉनी लीवर की कामयाबी की कहानी


फिल्मों में मिमिक्री कलाकार से हास्य अभिनेता बनने में लगे थे 10 साल


हिन्दी फिल्मों के लोकप्रिय कलाकार जिन्होंने हास्य को बड़ी गंभीरता से लिया और फिल्मों के साथ-साथ मंचीय हास्य में बहुत लंबी जिंदगी जी है। वे अपनी उम्र के साठ साल पूरे करने जा रहे है। उनका पहला मंचीय शो हैदराबाद के रवींद्र भारती में हुआ था। रामकुमार ने अपने चेले जॉनी को यहाँ अपनी तबियत खराब होने के कारण भेजा और उन्होंने यहाँ पहले ही शो में धूम मचा दी थी। उसी शहर में पिछले बुधवार की शाम एक निजी महफिल में जॉनी इतना खुले की खुलते चले गये औरअपनी जिन्दगी की कई  दिलचस्प घटनाओं का सविस्तार वर्णन किया। जॉनी लीवर ने बातचीत की शुरूआत हैदराबाद ही से की। जिस शहर में उन्होंने अपना पहला शो पेश किया था, उसी शहर में जब पिछले साल वे अपना शो लाना चाहते थे तो आंदोलनकारी गतिविधइयों के कारण उन्हें वो शो रद्द करना पड़ा। अब फिर जल्द ही वे यहाँ अपना शो पेश करने की योजना बना रहे हैं।

कई बातें हुईं। उनकी अपनी जिन्दगी, कला और कलाकारों की स्थिति और हास्य का मौजूदा माहौल। और भी बहुत कुछ...जॉनी आज भी वो दिन नहीं भूलते जब वे जान राव से जॉनी लीवर बन गये थे। वे जिस हिन्दुस्तान लिवर में काम करते थे, उसी के कार्यक्रम में जब उन्होंने अपने सभी उच्च अधिकारियों की बिना नाम बताये मिमिक्री की और कर्मचारियों में से किसी ने ज़ोर से घोषणा की कि तुम जॉनी लीवर हो।
जब जॉनी युवा थे, तो उनके पिताजी को डर था कि वे कहीं इस हँसी मजाक के चक्कर में नौकरी न छोड़ॉ दें। उस समय उन्हें नौकरी से 600 रुपये वेतन मिलता था। स्टेज शो में हिस्सा लेने पर 50 रुपये मिलते थे। पिता जब सेवानिवृत्त हुए थे तो उन्हें 25000 रुपये मिले थे, जिसे उन्होंने बेटी के विवाह के लिए जमा किया था। उसी दौरान जॉनी को कछुआ छाप अगरबत्ती का एक विज्ञापन मिला जिसके लिए वि़ज्ञापनदाता ने उन्हें खुश होकर 26000 रुपये दिये। पिता के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। जो पिता कभी डंडा लेकर स्टेज तक पीटने आये थे, लेकिन स्टेज के सामने तीन हज़ार लोगों की भीड़ देखकर वापिस लौट गये थे, उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि हँसी मज़ाक के कोई इतने पैसे भी दे सकता है।
फिर उन्हें उन पेन वाले सिंधी चचा की याद आयी, जिन्होंने उन्हे अपनी फुटपाथी दुकान के सामने पेन बेचने को कहा था। जॉनी जब विभिन्न फिल्मी अभिनेताओं की मिमिक्री करके पेन बेचने लगे तो चचा के सारे ग्रालक उनके हिस्से में आ गये। चचा ने यह देखकर कहा,  ‘‘जॉनी मैंने तुम्हें पेन बेचना सिखाया और मेरे सारे ग्राहक तुमने ले लिये। अब तुम मुझे मिमिक्री सिखाओ, ताकि मैं तुम्हारे ग्राहक ले सकूँ।’’
मुंबई की धारावी जैसे दुनिया के सबसे ब़डे झुग्गी इलाके में जन्मे जॉनी का प्रारंभिक जीवने पहले चाल और बाद में एक झोपडीनुमा मकान में बीता। वहीं से उन्होंने लोगों की भाषा शैली का अवलोकन करना शुरू किया और वही उनकी कलात्मक एवं व्यवसायी जिन्दगी का हिस्सा बन गया। उस माहौल के बारे में जॉनी बताते हैं, ‘वो एक मिनी हिन्दुस्तान था, जहाँ देश की हर भाषा बोलने वाले मौजूद थे। वो हिंदी भी बोलते थे तो अपनी ही शैली में। उनकी हिंदी को समझना भी काफी मुश्किल होता था। वहाँ तो श्रीलंका के लोग भी थे।

बातों बातों में जॉनी हैदराबाद के बारे में अपनी राय रखना नहीं भूलते। कहते हैं, ‘यहाँ की भाषा बिल्कुल भिन्न है, बल्कि हैदराबादी के कुछ भी बोले, हास्य का एक खास स्वाद उसमें छुपा होता है। पंजाबियों के बारे में कह जाता है कि वे कहीं भी जाएँ अपना लहजा नहीं बोलते, लेकिन वे भी हैदराबाद में आते हैं, तो अपना लहजा भूलकर हैदराबादी बोलने लगते हैं।
जॉनी लीवर ने एक और घटना सुनाई। अपनी पलही फिल्म की। एक दक्षिणी फिल्म निर्माता ने उन्हें 1980 में अपनी फिल्म ये रिश्ता न टूटेके लिए साइन किया था। कहते हैं, ‘‘मैं कैमरे का सामना करने से डर रहा था। शूटिंग चेन्नई में थी। मुंबई से चेन्नई तो आ गया था, लेकिन सोचता था भाग जाऊँ। भागने की कोशिश भी की, लेकिन फिल्मवाले पकडकर शूटिंग स्थल तक ले गये। वहाँ जब सब लोगों को अपना अपना काम करते देखा तो जान में जान आ गयी और समझ गया कि अपना काम आप करने में डरना क्या है।’’
बात जब बेटी जेमी लीवर और बेटे जेसी लीवर की चली तो अपना आदर्श साफ जतला दिया कि वे दोनों की भी सिफारिश नहीं करते, बल्कि उन्होंने लंदन में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद उन्होंने स्टैंडप कॉमिडी को चुना और टी वी धारावाहिक में चुन लिये जाने के बाद पिता का नाम बताया।
बेटी के बारे में जॉनी कहने लगे, ‘‘मैंने सोचा था कि व उच्च शिक्षा प्राप्त कर कोई काम करेगी। इसी लिए तो उसे पढने के लिए लंदन भेजा, लेकिन एक दिन उसने अपनी माँ से कहा कि वह स्टैंडप कॉमिडी करना चाहती है। सोते में वह हड़बड़ाकर उठती है और नींद में भी वही बड़ब़डाती है। हालांकि उसे बहुत समझाया गया कि यह आसान नहीं है, इसके बावजूद वह नहीं मानी और फिर लंदन के मेरे शो में जब उसे दस मिनट दिये गये, तो उसने उतने ही समय में वो कमाल कर दिखाया कि दर्शकों ने ख़डे होकर उसकी प्रशंसा की और कहा, ‘ जॉनी आप की प्रतिस्पर्धी आ गयी।अपने बेटे में भी मैं यही किटाणु देख रहा हूँ।’’
जॉनी के लिए उस दिन काचीगुडा में एक नवाब के मकान में पिछली बुधवार की महफिल बडे सुकून की महफिल थी, हालाँकि उन्हें कहीँ जाना था, लेकिन उन्होंने ऐसी कोई जल्दी नहीं दिखायी। उन्हें फिल्मों मे गोविंदा के साथ एक कामयाब हास्य अभिनेता की जोडी के रूप में देखा गया, लेकिन एक बात उनके मन में ज़रूर रही कि उन्हें मिमिक्री कलाकार से हास्य अभिनेता के रूप में अपनी जगह बनाने के लिए दस साल लग गये थे। वे बताते हैं कि उन्हें फिल्मकार गंभीरता से नहीं लेते थे। मैं भी दो ची़ज़ों में बटा हुआ था। फिल्म और स्टेज शो। अधिकतर फिल्मनिर्मता निर्देशक मिमिक्री के काम के लिए याद करते थे, लेकिन जब फिल्म बाजीगर में उनके काम को देखा गया तो लोगों ने हास्य अभिनेता के रूप में उन्हें मान्यता दी।
वर्तमान परिवेश पर भी वे खुलकर बोले, ‘हर दौर में परिवर्तन आया है, आना भी चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि दो बंद कमरों में होने वाली बातों को परिवार के सामने पेश किया जाए। यह अमान्य है।
उर्दू में कहानी पढने के लिए देखें 
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