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Showing posts from February, 2017

रहस्यों से भरे कमरे का ताला खोलने वाली कलाकार सीमा कोहली

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सीमा कोहली एक चित्रकार हैं। समकालीन कलाकारों में उन्होंने अपनी खास जगह बनाई है। 1960 में न्यू राजेंद्र नगर ,   दिल्ली में एक सिख मगर आर्य समाज से प्रभावित परिवार में उनका जन्म हुआ। वे छोटी थीं , तो बुहत कम बोलती थीं। वे बचपन से ही अंतर्मुखी थीं। उनका यही अंतर्मुखी होना , उन्हें रंगों की दुनिया में ले गया। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से दर्शन शास्त्र और साउथ पॉलिटेक्निक से एप्लाइड आर्ट में क्रमशः डिग्री और डिप्लोमा किया। मूर्तिकला , वीडियो इंस्टेलेशन , मिक्स मीडिया , फोटोग्राफी सहित कई शैलियों को उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति का साधन बनाया। उन्हें 2008 में ललित कला नेशनल अवॉर्ड फॉर वुमेन और 2009 में वीडियो इंस्टेलेशन के लिए फ्लोरेंस बिनाल में गोल्ड अवॉर्ड प्रदान किया गया। एक रचनाकार के रूप में अपने और संसार के अस्तित्व के प्रश्नों की खोज के लिए उन्होंने मन में उठने वाले जिन प्रश्नों के उत्तर तलाशे , उन्हें चित्रात्मक भाषा में अभिव्यक्त किया। उनकी चित्र श्रृंखला ` हिरण्य गर्भ ' काफी लोकप्रिय हुई। देश के विभिन्न शहरों के साथ-साथ विदेशों में उनके चित्रों को सराहा गया है। कलाकृत

भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी अवसाफ सईद से एक मुलाक़ात

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अवसाफ सईद भारतीय विदेश सेवा के 1989 बैच के अधिकारी हैं। वे इन दिनों सैशल्स में भारतीय उच्चायुक्त पद पर नियुक्त हैं। इससे पूर्व हैदराबाद में प्रांतीय पारपत्र अधिकारी के रूप व्यवस्था में कई प्रकार के सुधारात्मक कदम उठाने के लिए उन्हें याद किया जाता है। सऊदी अरब, अमेरिका सहित कई देशों में भारत सरकार के काउंसलेट जनरल के रूप में उन्होंने काम किया है। उनका जन्म 18 सितंबर, 1963 को हैदराबाद के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। पिता एवज़ सईद शहर के जाने-माने साहित्यकार थे। अवसाफ सईद ने अनवारुल उलूम से इंटर की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय से भू-गर्भ शास्त्र में स्नातकोत्तर और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। सेवा के दौरान कैरो स्थित अमेरिकन विश्वविद्यालय से अरबी भाषा में उन्होंने डिप्लोमा किया। लीबिया, सऊदी अरेबिया, डेनमार्क, अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका, यमन सहित कई देशों में भारतीय विदेश मंत्रालय के महत्वपूर्ण पदों पर उन्होंने सेवाएँ प्रदान कीं। सऊदी अरेबिया में पहला एशियाई फिल्मोत्सव मनाने और इसकी परंपरा शुरू करने का श्रेय उन्हें ही जाता है। सप्ताह के साक्षात्कार में उनसे हुई बातची

किसी भी समस्या से अधिक महत्वपूर्ण है ज़िंदगी - मनीषा साबू

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जीवन में सब कुछ समय पर न हो, तो लोग कहते हैं कि ट्रेन छूट गयी। कुछ लोग हैं कि इसकी परवाह किए बिना अपना सफर खुद तय करते हैं और लक्ष्य की ओर निकल पड़ते हैं। वे बीते समय की परवाह नहीं करते और यात्रा शुरू कर देते हैं, इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखते। ऐसे ही लोगों में मनीषा साबू का नाम आता है। उन्होंने विवाह के बाद लगभग 8 वर्ष तक अपना बज़िनेस किया। जब मन किसी और दिशा में जाने को प्रेरित किया, तो कॉर्पोरेट दुनिया की ओर निकल पड़ीं और कुछ ही वर्षों में अपनी पहचान बनायी। मनीषा साबू हैदराबाद-वरंगल मार्ग पर घटकेसर पर लगभग 450 एकड़ में स्थापित इंफोसेस कैंपस की सेंटर हेड और असोसिएट वाइस प्रेसिंडेंट हैं। इस सेंटर में 17,000 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। इससे पूर्व उन्होंने कॉग्निजियंट टेक्नोलॉजी सोल्युशन्स तथा कुछ और कंपनियों में भी काम किया। उनकी यह उपलब्धि उनके अपने व्यक्तित्व और लक्ष्य के प्रति डटे रहकर काम करने के कारण है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने प्रपत्रों एवं प्रस्तुतियों के कारण भी ये जानी जाती हैं। मनीषा साबू का जन्म महाराष्ट्र में हुआ। उनके पिता इंजीनियर हैं, जो वरिष्

भारतीय फार्माकोपिया आयोग के चेयरमैन डॉ. मुहम्मद अब्दुल वहीद से गुफ्तगू

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यह जरूरी नहीं है कि किसी भी क्षेत्र में महान कार्य करने के लिए मशहूर स्कूल और कॉलेज में ही पढ़ें या सब कुछ छोड़ कर एक ही धुन में लगे रहें। दुनिया और दुनियादारी के साथ भी एक साधारण स्कूल में पढ़ कर बड़े काम किए जा सकते हैं। शर्त यही है कि दुनिया को कुछ देने का भाव मन में हो। इस गणतंत्र दिवस पर हैदराबाद से घोषित पद्मश्री पुरस्कारों की सूची में यूनानी शोधकर्ता डॉ. मुहम्मद अब्दुल वहीद का नाम उल्लेखनीय है। पद्म पुरस्कार के साथ-साथ भारत सरकार ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी है। उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले भारतीय फार्माकोपिया आयोग का चेयरमैन बनाया गया है। मोहम्मद अब्दुल वहीद का जन्म 22 फरवरी, 1955 को  तेलंंगाना के महबूबनगर जिले में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पेट्लाबुर्ज सरकारी उर्दू पाठशाला में हुई। वे अनावारुल उलूम से इंटर की शिक्षा प्राप्त करने वाले पहले ऐसे छात्र हैं, जिन्हें पद्म पुरस्कार के लिए चुना गया है। बचपन से उनके मन में एमबीबीएस कर डॉक्टर बनने की इच्छा थी, जिसके लिए उन्होंने एमसेट लिखा, लेकिन प्रवेश नहीं मिल सका। इसके बाद उन्होंने बीयूएमएस में प्रवेश लिया। जेआरएफ