किसी भी समस्या से अधिक महत्वपूर्ण है ज़िंदगी - मनीषा साबू

जीवन में सब कुछ समय पर न हो, तो लोग कहते हैं कि ट्रेन छूट गयी। कुछ लोग हैं कि इसकी परवाह किए बिना अपना सफर खुद तय करते हैं और लक्ष्य की ओर निकल पड़ते हैं। वे बीते समय की परवाह नहीं करते और यात्रा शुरू कर देते हैं, इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखते। ऐसे ही लोगों में मनीषा साबू का नाम आता है। उन्होंने विवाह के बाद लगभग 8 वर्ष तक अपना बज़िनेस किया। जब मन किसी और दिशा में जाने को प्रेरित किया, तो कॉर्पोरेट दुनिया की ओर निकल पड़ीं और कुछ ही वर्षों में अपनी पहचान बनायी। मनीषा साबू हैदराबाद-वरंगल मार्ग पर घटकेसर पर लगभग 450 एकड़ में स्थापित इंफोसेस कैंपस की सेंटर हेड और असोसिएट वाइस प्रेसिंडेंट हैं। इस सेंटर में 17,000 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। इससे पूर्व उन्होंने कॉग्निजियंट टेक्नोलॉजी सोल्युशन्स तथा कुछ और कंपनियों में भी काम किया। उनकी यह उपलब्धि उनके अपने व्यक्तित्व और लक्ष्य के प्रति डटे रहकर काम करने के कारण है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने प्रपत्रों एवं प्रस्तुतियों के कारण भी ये जानी जाती हैं।
मनीषा साबू का जन्म महाराष्ट्र में हुआ। उनके पिता इंजीनियर हैं, जो वरिष्ठ सरकारी अधिकारी थे। पिता के तबादलों के चलते उन्हें अपनी प्रारंभिक शिक्षा के लिए कई स्कूल बदलनी पड़ी। उन्होंने इससे पूर्व इंफोसेस में ही वरिष्ठ डिलेवरी मैनेजर, प्रॉजेक्ट मैनेजर जैसे पदों पर कार्य किया। उन्होंने इस जीवन की शुरुआत बेगम बाज़ार में पति संजय साबू के साथ साबू कंप्यूटर्स से की। आठ साल तक यहाँ उन्होंने युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान किया। सप्ताह के साक्षात्कार के लिए उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं-
 आपका बचपन कहाँ और कैसे बीता?
पिता बी.एन. कलंतरी महाराष्ट्र सरकार में पीडब्ल्यूडी में अधिकारी थे। उनके तबादले होते रहते थे। यही कारण है कि मेरा बचपन अकोला, अमरावती जैसे छोटे शहरों में कबड्डी, खो-खो, कंचे और गिल्ली डंडा खेलते हुए बीता। मेरे तीन बड़े भाई हैं।  घर पर भाइयों के साथ ही मुझे भी पढ़ाने के लिए टीचर आते थे। पिताजी ने कहा कि घर में बैठी रहती है, इसे भी स्कूल ले जाओ। मेरा पहला प्रवेश गवर्नमेंट ब्वॉयज स्कूल में हुआ। वहाँ से विभिन्न स्कूलों, कॉलेजों से होते हुए एमआईटी पहुँची। 

आपके मन में कब ख़्याल आया कि आपको इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करनी है। क्या सारी उच्च शिक्षा योजनाबद्ध थी?
किसी को मुझसे कुछ खास उम्मीदें नहीं थी। घर के चार बच्चों में पली बढ़ी। लड़की होने के कारण मेरे साथ स्पेशल कुछ नहीं था। भाई लोग कहते थे कि यह इसलिए पढ़ती है ताकि घर का काम न करना पड़े। मेरे दिमाग़ में भी कुछ खास महत्वाकांक्षाएँ नहीं थीं। 10वीं के समय दिमाग़ में कुछ नहीं था, इसलिए मैथ्स और बॉयलॉजी की पढ़ाई की। 12वीं के बाद मेडिकल की परीक्षा लिखी और प्रवेश भी मिल गया। इस बीच पता चला कि प्रवेश के लिए मेरी उम्र एक साल कम है। कहा गया कि प्रवेश तो मिल जाएगा, लेकिन एक साल का इंतेज़ार करना पड़ेगा। मैंने सोचा सभी दोस्त आगे बढ़ जाएँगे और मैं पीछे रह जाऊँगी। इसलिए इंजीनियरिंग में प्रवेश ले लिया। बहुत पढ़ाकू नहीं थी, लेकिन इतना ज़रूर था कि मुझे फाइनल ईयर में 60 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त करने हैं, जो मैंने प्राप्त किए।

माता-पिता से क्या प्रेरणा मिली?
सबसे पहले तो अनुशासन। उम्र के अनुसार क्या करना चाहिए, क्या नहीं इस बात की समझ उन्होंने दी। हालाँकि ज़रूरतें आसानी से पूरी हो जाती थीं, लेकिन उनसे आगे छोटी-मोटी ख़्वाहिशें भी अनुशासन के दायरे में आती थीं। मुझे याद है, एक दिन मैं पिताजी के साथ बाज़ार गयी। वहाँ मैंने उनसे कहा कि यह बेडशीट मुझे बहुत पसंद है। उन्होंने कहा कि तुम्हारा विद्यार्थी जीवन बहुत सादा होना चाहिए। हालाँकि उन्होंने हमारी किसी माँग को नकारा हो ऐसा नहीं था, लेकिन सादगी को लेकर उनसे यह महत्वपूर्ण सीख थी। दस-बारह साल पहले की बात है। एक बार माँ और पिताजी हैदराबाद आये। हम आबिड्स पर कुछ खरीददारी कर रहे थे। कमल वाच कंपनी पर मुझे एक घड़ी पसंद आयी, मैं इसे ख़रीदना चाहती थी। मेरे पास पैसे भी थे, लेकिन माँ ने कहा कि यह काफी महँगी है और इसे खरीदने से पहले पति से पूछ लो। घर आने के बाद मैंने इसके बारे में संजय को बताया, तो घड़ी खरीदने घर के कई लोग मेरे साथ दुकान गये। यह घटना माँ के कारण मेरे जीवन में यादगार बन गयी। हमारे जीवन में कई घटनाएँ ऐसी होती हैं, जो हमें कुछ न कुछ सीख देती हैं। आज भी माँ की कई बातें मेरे लिए प्रेरणादायी हैं। आमतौर पर मैं शाम में 4 बजे या रात 8 बजे घर के लिए निकलती हूँ। किसी दिन माँ से फोन पर बात होती है और उन्हें पता चलता है कि मैं ऑफिस में हूँ, तो वह कहती हैं कि मुझे जल्दी घर जाना चाहिए। मुझे लगता है कि आप चाहे जितने भी बड़े हो जाओ, माता-पिता हमेशा मार्गदर्शक के रूप में आपके साथ बने रहेंगे।

क्या आपको लगता है कि माँ-बाप को मार्गदर्शक के रूप में महसूस करने वाले अपने जीवन में नुक़सान उठाते हैं?
हो सकता है लोग इस बात को महसूस करें या न करें, लेकिन माता-पिता के आदर्शों या मार्गदर्शन का सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से जीवन पर असर पड़ता है। माता-पिता अगर संस्कारों पर ध्यान देते हैं, समय की पाबंदी के बारे में समझाते हैं, तो उसका सकारात्मक प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। इस संबंध में मैं कह सकती हूँ कि मेरे जीवन पर माता-पिता के मार्गदर्शन का काफी प्रभाव दिखाई देता है। 

इंजीनियरिंग के दौरान के कुछ अनुभव?
जैसा कि मैंने बताया कि इंजीनियरिंग मैंने मेडिकल में प्रवेश की आयु न होने के कारण की। इलेक्ट्रॉनिक्स में अधिक रुचि नहीं थी, लेकिन डिग्री तो पूरी करनी थी। इसके बाद पिताजी ने पूछा कि शादी करनी है या फिर और पढ़ना है। मैंने जवाब दिया पढ़ना है। इसके बाद मैंने एमबीए करने का निर्णय लिया। मार्केटिंग, व्यापार रणनीति, उत्पादों का प्रबंधन मेरे प्रिय विषय थे। यही कारण है क एमबीए मेरे लिए काफी महत्वपूर्ण रहा।
स्नातक या स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने के बाद अधिकतर लोगों का रुख अमेरिका की ओर होता है। चाहे वह नौकरी करने के लिए हो या फिर अमेरिका में रह रहे लड़के से शादी करने के लिए, आपका अनुभव कैसा रहा?
दरअसल मेरी सोच इससे अलग थी। जब शादी के प्रस्ताव आने लगे, तो पिताजी ने पूछा कैसा लड़का चाहिए। मैंने कहा एजुकेशन कम ज्यादा हो, फर्क नहीं पड़ता, हाइट कम ज्यादा का फर्क नहीं पड़ता, लुक्स में भी उन्नीस-बीस का फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन मुझे ऐसा परिवार चाहिए, जो मुझे काम करने की अनुमति दे। एक और शर्त थी कि मुझे विदेश नहीं जाना है।

क्या कारण था कि आपने विदेश में बसे लड़कों के रिश्तों को ना किया?
तब इंटरनेट का दौर नहीं आया था, जब मित्रों से उनकी शादी के बारे में बात होती, वे बताती कि लड़का यूएस में रहता है, आने वाला है, अभी मिली नहीं उससे ....यह बताकर वह काफी खुश होंती। मुझे यह अजीब लगता था कि वे लड़के को नहीं जानतीं। यह भी नहीं जानतीं कि वह वहाँ क्या करता है। यूएस से आना ही शादी के लिए कोई क्वालीफिकेशन कैसे हो सकता है। उसके पैरेंट्स यहाँ हैं और वह यूएस में क्या कर रहा है, पता ही नहीं। मुझे लगता कि यूएस में शिक्षा हासिल करना बुरा नहीं है, लेकिन यूएस जाना ही क्वालीफिकेशन हो, यह गलत था। संजय यूएस जाकर आए थे, लेकिन वे वापस जाना नहीं चाहते थे। इसलिए यह रिश्ता हो गया और मैं हैदराबाद आ गयी। यहाँ आने से पहले मैंने कुछ कंपनियों में प्रबंधन पदों पर काम किया, लेकिन बिल्कुल कम समय के लिए। बेगम बाज़ार में कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट चल रहा था, जिसे संजय संभाल रहे थे। मेरे मन में आया कि यहाँ से आगे भी कुछ हो। मुझे लगता था कि हम दोनों के व्यापार में रहने से रिस्क हो सकता है। मैंने कुछ अलग सोचना शुरू किया। मैंने पति से छह महीने पहले ही कहा था कि मैं 1 जनवरी से इंस्टीट्यूट नहीं आऊँगी। उन्हें विश्वास नहीं हुआ, लेकिन मैंने ऐसा ही किया और निकल गयी अपने लिए कार्पोरेट कंपनी में नौकरी की तलाश में। उसी दौरान एक घटना घटी। आरजीए (राजस्थानी स्नातक संघ) की वार्षिक भाषण माला में अरुण शौरी आये थे। शाम में उनके लिए डिनर रखा गया। मैं उसमें जाना नहीं चाहती थी। भारतीय विद्या भवन से मैं यह सोचते हुए घर लौट रही थी कि डिनर में जाना क्या ज़रूरी है, चलो बच्चों को देखें। रास्ते में मैडम डॉक्टर कीर्तन से मुलाक़ात हुई। वह बाउजी (डॉ. आर.एम. साबू) की भी उस्ताद थीं। उनको मैंने बताया कि मैं डिनर में नहीं जाऊँगी। उन्होंने कहा कि नहीं तुम जाओ, ऐसे मौक़े कम मिलते हैं। फिर मैं डिनर में गयी। यहाँ पर लक्ष्मीनिवास शर्माजी ने मुझसे कहा कि अरुण शौरी के साथ वाले टेबल पर बैठ जाऊँ। राउण्ड टेबल पर बैठकर मैंने सोचा कि मैं कहीं उन्हें बातों में बोर तो नहीं कर रही। जब वह हाथ धोने के लिए उठे, तो मेरे लिए अच्छा मौका था, यह समझने के लिए कि अगर मैं उन्हें बोर नहीं कर रही हूँ, तो वे लौटकर इसी टेबल पर आ जाएँगे। वे वापस उसी टेबल पर आये। बातों-बातों में मैंने उन्हें अपनी समस्या बताई। उन्होंने प्रोत्साहित करते हुए कहा कि दुनिया भर में प्रोफेशन बदलने की परंपरा है। कई लोग इंजीनियरिंग के बाद प्रबंधन क्षेत्र में आते हैं। कई लोग प्रोफेशन छोड़कर कारोबार करते हैं। इससे ज्ञान में वृद्धि होती है। 

क्या यह इतना आसान था?
नहीं, बिल्कुल आसान नहीं था। आस-पास कोई ऐसा नहीं था, जिसका उदाहरण लिया जाए। कई लोग थे, जो अपना पारंपारिक व्यापार कर रहे थे। वह मंदी का दौर था। एक कंपनी में नौकरी आरंभ की, लेकिन कुछ ही दिन बाद वह कंपनी बंद हो गयी। इसी तरह दूसरी कंपनी के साथ भी हुआ। फिर पाँच माह तक जुबली हिल्स में कई कंपनियों के दफ्तरों के चक्कर काटे। अजीब था कि अपनी कंपनी छोड़ दूसरी कंपनी में काम के लिए खाक छानना। इस भटकाव ने मुझे नौकरी का महत्व भी समझाया। जो लोग उन दिनों काम कर रहे थे, वे मुझसे बड़े थे। विभिन्न सीढ़ियाँ चढ़ते हुए एक स्तर तक पहुँचे थे। इस दौरान मैंने अपने आपको निखारना शुरू किया और शोध-पत्र लिखने लगी, प्रस्तुतियाँ दीं, जिससे आत्मविश्वास का स्तर बढ़ता गया।

बहुत सारे लोगों को एक काम छोड़ने के बाद जल्द ही काम नहीं मिलता। ऐसे में वे तनाव का शिकार हो जाते हैं। नयी जगह अपना स्थान बनाने में काफी मेहनत करनी पड़ती है। ऐसे में आपने अपने आपको कैसे संभाला?
कुछ बातें हैं, जो तब भी मेरे ज़हन में थीं और आज भी हैं। यही कि आपको कभी-कभी कड़ी मेहनत करने के बावजूद कामयाबी के लिए इंतज़ार करना पड़ता है। मैं समझती हूँ कि आप अपने आज और कल के बारे में जानते हैं, लेकिन कोई है, जो आपके भविष्य पर नज़र रखे हुए है। ऐसे समय में उस पर विश्वास बढ़ जाता है। जब आप कोई काम शुरू करते हैं और आपको परिवार का भी पूरा सहयोग परप्त होता है, तो फिर आपकी जिम्मेदारी बढ़ती है। मुझे लगता है कि घर से जिस तरह का हौसला मुझे मिला, दूसरी बहुओं को भी अगर इसी तरह का समर्थन मिले, तो वे भी अपना स्थान बनाने के लिए प्रेरित होंगी। 

आम तौर कहा जाता है कि पढ़ा-लिखा होने पर आदमी समझदार और ईमानदार बनता है। कभी-कभार ऐसे लोग जिस तरह के काम करते हैं, उससे लगता है कि उन्होंने कुछ सीखा ही नहीं, चाहे वह भ्रष्टाचार हो या अपराध, या फिर सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स का आत्महत्या करना। इसके बारे में आप क्या कहेंगी?
मैं सोचती हूँ कि शिक्षा से आपके दिल-दिमाग़ के दरवाज़े खुलने चाहिए। शिक्षा आपको अपने कार्य के प्रति जिम्मेदार बनाती है। मुझे लगता है कि कुछ लोग डिग्री तो हासिल कर लेते हैं, लेकिन वे शिक्षित नहीं होते। कॉलेज जाना, परीक्षाएँ लिखना, डिग्री का प्रमाण लेना आपकी शैक्षणिक योग्यता को नहीं दर्शाता। आपकी सोच की प्रक्रिया में आने वाला बदलाव आपकी परिपक्वता को दर्शाता है। अब कंपनियाँ अपने कर्मचारियों से बात कर रही हैं। उन्हें प्रशिक्षण के दौरान इन बातों को समझाया जाता है। रिलेशनशिप में कठिन दौर से गुज़रते हुए कुछ लोग टूट जाते हैं। रिश्तों को मैनेज नहीं कर सकते और तनावग्रस्त हो जाते हैं। बातचीत के ज़रिये उन्हें तनाव से बाहर निकाला जा सकता है। उन्हें यह बताना पड़ेगा कि उनकी ज़िंदगी किसी भी समस्या से अधिक महत्वपूर्ण है।

आप महिलाओं के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी, जो शादी के बाद व@रियर बनाना चाहती हैं?
दो बाते हैं, शादी के पहले आपको निर्णय लेना होगा कि आप किस तरह की ज़िंदगी बिताना चाहती हैं। आप जिस परिवार में जाने वाली हैं, उन्हें इस बारे में स्पष्ट करना होगा। दूसरों की देखा-देखी शादी में जल्दी न करें। जब आप शादी करती हैं, तो जीवन में कई चरण आते हैं। कुछ समय होता है, जहाँ परिवार को अधिक प्राथमिकता देनी पड़ती है। जब आपको लगे कि आपका व@रियर सही शेप नहीं ले रहा है, तब भी आप चिंता न करें। व@रियर से अधिक खुशी को ध्यान में रखें। जीवन में संतुलन बनाकर ही अच्छे काम किये जा सकते हैं।


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