Posts

Showing posts from July, 2017

संघर्ष बिना जीवन का आनंद नहीं : पंडित हरिप्रसाद चौरसिया

Image
बांसुरी के महान कलाकार पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का जन्म 1 जुलाई, 1938 को इलाहाबाद में हुआ। उनके पिता इलाहाबाद के ख्याति परप्त पहलवान थे। वे चाहते थे कि हरिप्रसाद भी उनकी विरासत को संभाले, लेकिन उनका मन अखाड़े में नहीं लगता था। बिना कारण कोई छाती पर बैठा रहे, इससे उन्हें मानसिक पीड़ा होती थी। यही कारण था कि एक दिन उन्होंने इसे छोड़ने का निर्णय लिया। पररंभिक दिनों में तबला बजाना सीखा। इलाहाबाद में पंडित राजाराम, वाराणसी में पंडित भोलानाथ और मुंबई में बाबा अलाउद्दीन ख़ाँ की पुत्री अन्नापूर्णा देवी के पास उन्होंने शास्त्रीय संगीत की बारीकियाँ सीखीं। उन्होंने कृष्ण की प्रतीकात्मक बँसी को हाथ में लिया और इसे शास्त्रीय संगीत की दुनिया में एक वाद्य शैली के रूप में ऊँचाइयाँ प्रदान कीं। उन्होंने एक स्टेनो के रूप में अपना जीवन शुरू किया और ऑल इंडिया रेडियो पर नौकरी की, लेकिन यह भी केवल रास्ता ही थी, मंज़िल तो वृंदावन (पंडित हरिप्रसाद चौरसिया द्वारा स्थापित संगीत विद्यालय) थी। इसके लिए संघर्षों के ऐसे लंबे दौरे से गुज़रना था, लेकिन इसकी उन्हें कोई शिकायत नहीं है, क्योंकि वे मानते हैं कि संघर्ष के

आईटी प्रशासन में बढ़ा है आम आदमी का महत्वः राजेंद्र निम्जे

Image
राजेंद्र निम्जे सेंटर फॉर गुड गवर्नेन्स के महानिदेशक हैं। यह केंद्र आज तेलंगाना और केेंद्र सरकार सहित कई राज्य सरकारों तथा अन्य देशों में ई-प्रशासन और और स्वच्छ प्रशासन हेतु सुझाव और समाधान प्रस्तुत करने का काम रहा है। यहाँ लगभग 300 विशेषज्ञ काम करते हैं। राजेंद्र निम्जे 1994 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। राजेंद्र निम्जे का जन्म नागपुर में हुआ। एनआईटी, नागपुर (पूर्व में वीआरसीई) से उन्होंने इंजीनिय्रिंग में स्नातक और आईआईटी मुंबई से स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी की। स्टैन्फोर्ड विश्वविद्यालय से उन्होंने ई-गवर्नेन्स में फेलोशिप भी परप्त की। अभियंता के रूप में वे भारत सरकार की इंजीनिय्रिंग सेवा में नियुत्त हुए और बहुत कम समय में कार्यकारी अभियंता के पद पर पहुँचे। राजेंद्र निम्जे पहले आईपीएस और बाद में आईएएस चुने गये। जीएचएमसी में अतिरित्त आयुत्त, खम्मम जिलाधीश, तकनीकी शिक्षा विभाग के आयुत्त सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर उन्होंने काम किया। परिष्कृति और ई-हैदराबाद जैसी प्रतिष्ठित योजनाओं के लिए उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा। सप्ताह का साक्षात्कार में उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश इस प्रकार हैं ः- प

भई इतने ख़फ़ा भी न हों...

Image
देखना मेरी ऐनक से   मोअज्जम जाही मार्केट की एक तस्वीर बहुत बार ख्याल आया कि क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कोई हम पर गुस्सा करे , झगड़ा करने पर उतारू हो और हम मुस्कुरा दें। झगड़ा करना आदमी की फितरत में शामिल है। गुस्सा या क्रोध उसके मौलिक गुणों में शामिल होता है और यह नौ रसों में से एक है , फिर भी शांत रहना और खुश होना भी तो जिंदगी में गुस्से पर भारी पड़ सकता है। एक बार एक साथी से झगड़ा हुआ , झगड़ा क्या था , उसकी बात अच्छी नहीं लगी और मैं बिगड़ पड़ा। उधर से भी लगभग वैसा ही व्यवहार रहा। वहाँ कोई था नहीं कि बीच बचाव करता , इसलिए कुछ देर बाद खुद ब खुद ही दोनों शांत हो गये। घर आकर जब सोचा तो अपने आप पर हंसी आने लगी। इस बात पर कि क्या वह बात बिगड़ने और झगड़ा करने की थी। शायद वह भी अपने उस व्यवहार पर हँसा होगा , पता नहीं , उससे पूछा भी नहीं। आये दिन हम इस तरह छोटी-छोटी बातों पर लोगों को उलझते , झगड़ते देखते रहते हैं। झगड़ों के लिए कभी सरकारी नल काफी मशहूर हुआ करते थे , लोग आपस में लड़ पड़ते थे। खास तर पर महिलाएँ एक दूसरे को खूब नवाज़तीं। अब जब से नल लोगों के अ