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Showing posts from August, 2017

बदल गयी है सफलता की परिभाषा : पृथ्वी ओबेरॉय

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फिल्मकार और शायर पृथ्वीराज ओबेरॉय हिन्दी, गुजराती और भोजपुरी फिल्मोद्योग में जाना-पहचाना नाम है। पृथ्वीराज विख्यात अभिनेता सुरेश ओबेरॉय के भतीजे हैं। उनका जन्म 5 दिसंबर, 1972 को हैदराबाद में हुआ। यहीं पर सेंट जार्जेस गरमर स्कूल, आबिड्स से उन्होंने पररंभिक शिक्षा परप्त की। बाद में मुंबई के उत्पलसांगवी स्कूल से शिक्षा पूरी करने के बाद मुंबई यूनिवार्सिटी से कामर्स में उन्होंने स्नातकोत्तर की डिग्री परप्त की। फिल्मों का शौक था, इसलिए वे सहायक निदेशक बन गये। `खोटे सिक्के' और `श्याम-घनश्याम' जैसी फिल्मों में उन्होंने सहयोग दिया। भोजपुरी फिल्म `एक और चुम्मा देद राजाजी' का उन्होंने निर्देशन किया। इसके बाद टेलीविजन के क्षेत्र में सक्रिय हुए। `टेढ़े-मेढ़े सपने', `अपनापन', `मेरी मिसेज़ चंचला' जैसे प्रख्यात धारावाहिकों का उन्होंने निर्देशन किया। उनका गुजराती धारावाहिक `मारू घर खाली कार' भी काफी चार्चित रहा। उन्होंने न्यूयार्क फिल्म यूनिवार्सिटी से फिल्म निर्माण में चार वर्ष का प्रशिक्षण परप्त किया। संगीत और शायरी का शौक भी उन्हें बचपन से था। प्यानो में उन्होंने रॉयल

बदल गये हैं व्यत्तित्व विकास के अर्थ - श्रुति मशरू

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पारंपारिक परिवार में पली-बढ़ी लड़की के लिए अपनी दुनिया बनाना , बसाना और उसमें खुद को खड़े कर संभावनाओं की दुनिया के उस पार झाँकना आसान काम नहीं होता। वह भी आज से लगभग दो दशक पूर्व। सारे किन्तु-परंतु को पार करते हुए अपनी इच्छाओं के अनुरूप श्रुति मशरू ने न केवल घर की चारदीवारी से बाहर क़दम रखा , बल्कि अपने शौक़ को पहचाना , क्षमताओं को आँका और नयी दुनिया बसाने में जुट गयीं। आज वह शहर की जानी-मानी कॉर्पोरेट ट्रेनर्स में अपना स्थान रखती हैं। व्यत्तित्व विकास प्रशिक्षण के क्षेत्र में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ उनकी सेवाएँ परप्त करती हैं। श्रुति मशरू का जन्म जीरा , सिकंदराबाद के एक पारंपारिक गुजराती परिवार में हुआ। पिता का संबंध इलेक्ट्रॉनिक व्यापार से है। श्रुति ने बी.कॉम. की शिक्षा पूरी करने के बाद एयरटिकटिंग का कोर्स किया और ट्रैवेल एजेंसी से जुड गयीं। कुछ वर्ष बाद वह बीपीओ की दुनिया में आयीं। इसके बाद प्रबंधक स्तर की नौकरी छोड़कर व्यत्तित्व विकास के क्षेत्र में अपने कौशल को आज़माया और इसमें सफल रहीं। इस बीच उन्होंने मानव संसाधन के क्षेत्र में प्रबंधन की डिग्री

लड़कियों का चुंबकीय आकर्षण हमेशा बना रहेगा-

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असीमा भट्ट के साथ ऐतिहासिक चारमीनार के पास घूमते हुए बतियाते हुए गुज़री एक शाम की याद में... हिंदी के मंचों पर चर्चित शख़्सियत असीमा भट्ट पिछले दिनों हैदराबाद में थीं। एक शाम चारमीनार के पास घूमते हुए ईरानी चाय और उस्मानिया बिस्कुट का स्वाद चखने के दौरान उनसे कई सारे विषयों पर गुफ्तगु हुई।   आम तौर पर वह बड़ी सी बिंदी लगाये और साड़ी पहनने के लिए मशहूर हैं ,  लेकिन उस दिन वह कुर्ता सलवार पहने हाथ में एक छोटा-सा पर्स थामे पुराने शहर की सैर करने निकल पड़ी थीं। हो सकता है वह इससे पहले भी हैदराबाद आयी हों ,  लेकिन शाम के बाद चकाचौंध रोशनी में चारकमानें ,  गुलज़ार हौज़ और चारमीनार के आस- पास का माहौल देखने का आनंद अलग ही होता है। जिसके बारे में उन्होंने खुलकर कहा भी। बात उनके एक नाटक   ‘ ये न थी हमारी किस्मत ’  पर भी हुई। कहने लगीं ,  लड़कियाँ शादियों के ख़्वाब बुनती हैं। ऐसे या वैसे व्यक्ति से शादी करूँगी.. के खयालों में जो कुछ वह सोचती हैं या जिस ख़्वाब के धारे में दूर तक बहती चली जाती हैं। उस सबके पीछे हैप्पी एंडिंग की भावना होती है ,  लेकिन असकर यह एक फेरी

हिन्दी का अपना कोई समाज नहीं - डॉ. अरुण देव

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डॉ. अरुण देव हिन्दी के समकालीन लेखकों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। अरुण देव बिजनौर जिले के नजीबाबाद के एक सरकारी डिग्री कॉलेज में असोसिएट परेफेसर हैं, लेकिन वेब पत्रिका `समालोचन' के संपादन के ज़रिए उन्होंने हिन्दी साहित्य के पाठकों में अपनी खास जगह बनायी है। उनका जन्म 16 फरवरी, 1972 को उत्तर-प्रदेश के कुशीनगर में हुआ। जेएनयू से स्नातकोत्तर की शिक्षा परप्त करने के बाद उन्होंने पीएचडी की उपाधि परप्त की। उनकी `क्या तो समय, कोई तो जगह हो' जैसी कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं। राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से उन्हें सम्मानित किया गया। अरुण देव क से कविता के वर्षगाँठ कार्यक्रम में भाग लेने हैदराबाद आए, तो उनसे कुछ खास मुद्दों पर बातचीत हुई। प्रस्तुत है बातचीत के कुछ अंश ः- समालोचन वेब पत्रिका के बारे में कुछ बताइए? समालोचन वेब पत्रिका का संपादन गत 6 वर्षों से कर रहा हूँ, जो इस समय हिन्दी ही नहीं, बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं में भी अच्छी पत्रिका मानी जाती है। कई समाचार-पत्रों और टीवी चैनलों ने भी उसका जिक्र किया है। मराठी में जब सैराट फिल्म आयी, तो मराठी में तो उस पर काफी लिखा गय