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गुज़रे जो हम यहाँ से... मीनारों का स्मारक चारमीनार

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एक्कीसवीं सदी के अठारह साल गुज़र चुके हैं और हम दूसरे दशक के अंतिम पायदान पर खड़े हैं। बीते बीस-पच्चीस बरसों में आस-पास के वातावरण में तेज़ी से परिवर्तन आया है। कुछ चीज़ें हैं, जो धीमे-धीमें बदल रही हैं और कुछ लगातार नया आकार ले रही हैं। आइए पड़ताल करते हैं कि हमारे आस-पास गली , मुहल्ले , सड़कें चौराहे और ऐतिहासिक , सांस्कृतिक , सामाजिक एवं कलात्मक महत्व के स्थलों के आस-पास किस तरह का बदलाव हो रहा है। शुरूआत हैदराबाद के चारमीनार से ही करते हैं। ............................ परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है मीनारों का स्मारक चारमीनार मित्र अरशद और अज़हर के साथ शिल्प , इतिहास , संस्कृति और समाज को अपने ही रंग में रंगने वाला स्थल , बाग़ों , तालाबों और नवाबों के शहर का मुख्य आकर्षण और मीनारों का यह प्रतीक चारमीनार इन दिनों तेज़ी से परिवर्तनों के दौर से गुज़र रहा है। दुनिया के उन बहुत कम स्थलों में से एक , जहाँ शायद ही कोई ऐसा पल रहा हो जम कोई हलचन न रही हो। चौबीसों घंटे , साल के बारह महीने यहाँ चहल-पहल बनी रहती है। आज भी जब वाहनों का अवागमन बंद हो गया है , लोगों का इस इमार