गुज़रे जो हम यहाँ से... मीनारों का स्मारक चारमीनार

एक्कीसवीं सदी के अठारह साल गुज़र चुके हैं और हम दूसरे दशक के अंतिम पायदान पर खड़े हैं। बीते बीस-पच्चीस बरसों में आस-पास के वातावरण में तेज़ी से परिवर्तन आया है। कुछ चीज़ें हैं, जो धीमे-धीमें बदल रही हैं और कुछ लगातार नया आकार ले रही हैं। आइए पड़ताल करते हैं कि हमारे आस-पास गली, मुहल्ले, सड़कें चौराहे और ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं कलात्मक महत्व के स्थलों के आस-पास किस तरह का बदलाव हो रहा है। शुरूआत हैदराबाद के चारमीनार से ही करते हैं।

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परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है मीनारों का स्मारक
चारमीनार
मित्र अरशद और अज़हर के साथ
शिल्प, इतिहास, संस्कृति और समाज को अपने ही रंग में रंगने वाला स्थल, बाग़ों, तालाबों और नवाबों के शहर का मुख्य आकर्षण और मीनारों का यह प्रतीक चारमीनार इन दिनों तेज़ी से परिवर्तनों के दौर से गुज़र रहा है। दुनिया के उन बहुत कम स्थलों में से एक, जहाँ शायद ही कोई ऐसा पल रहा हो जम कोई हलचन न रही हो। चौबीसों घंटे, साल के बारह महीने यहाँ चहल-पहल बनी रहती है। आज भी जब वाहनों का अवागमन बंद हो गया है, लोगों का इस इमारत से प्यार बढ़ ही रहा है।
हैदराबाद शहर के संस्थापक क़ुली क़ुतुबशाह की कलात्मक सोच के प्रतीक स्वरूप बीते 428 साल से यह इमारत लगभग एक सदी पहले के शहर के बीचो बीच खड़ी है। आज हज़ारों पर्यटकों की भीड़ के बीच बारह-पंद्रह साल से लेकर सत्तर-अस्सी वर्ष के लोग चारमीनार के साये में रोज़गार तलाश करते दिखाई देते हैं। पिछली 3 जनवरी 2019 की सुबह मैं जब इस इमारत के सामने खड़ा था, एक म्युनिसिपल टैंकर आस-पास पानी का छिड़काव कर रहा था। यह छिड़काव लगभग सत्तर से अस्सी बरस पहले तब भी हुआ करता था, जब अंतिम निज़ाम या राजप्रमुख की सवारी यहाँ से गुज़रा करती थी। हालाँकि कुछ खास अवसरों पर पानी का छिड़काव बाद में भी जरी रहा।  
जिन आँखों ने पैंतीस-चालीस बरसों में चारमीनार और आस-पास के माहौल को देखा है, वो जानते हैं कि आज जो पत्थर यहाँ बिछे हैं, वहाँ कभी तो सिमेंट सड़क और उसके बाद ब्लैक टॉप की सड़क हुआ करती थी। बल्कि सड़क काफ़ी नीचे हुआ करती थी और सीढ़ियाँ चढ़कर इमारत के भीतर प्रवेश करना पड़ता था। भीतर एक बहुत ही खूबसूरत हौज़ और फव्वारा भी हुआ करता था। लोगों की यादों में वह चारमीनार भी है, जहाँ बहुत कम ठेला बंडिया हुआ करती और कुछ साइकिल रिक्शे यहाँ-वहाँ खड़े हुआ करते। आज के जितनी भीड़ और पुटपाथी व्यापारी तो एक साल पहले तक भी यहाँ नहीं थे।
लोगों को वो दिन भी याद हैं, जब गुलज़ार हौज़ की ओर से बसें प्रवेश कर बाईँ ओर बस स्टॉप पर रुका करतीं, जिनमें डबल डेकर बसें भी हु करतीं और पास में जूस की बंडियों पर लगे टेप रिकार्डरों में हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय गीत बजा करते थे। जब बसें आनी बंद हो गयीं तो यहाँ छोटा-सा पार्क बना था, अब वह भी नहीं रहा।

इन्तेज़ार है उन दिनों का जब यह स्थल फुटपाथी व्यापारियों की भीड़ से मुक्त होकर एक स्वच्छ और वैश्विक मानकों के अनुसार ऐतिहासिक स्थल में परिवर्तित होगा...और अब जब यह जगह स्थायी कब्ज़ों से खाली हो गयी है तो एक पार्क का निर्माण होगा, ताकि लोग अपना बेहतरीन समय यहाँ गुज़ार पाएँ औ पर्यटक कुछ खूबसूरत यादें समेट कर ले जाएँ।

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