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Showing posts from March, 2017

क्या घर मुझसे प्रेम करता है...

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देखना मेरी ऐनक से.... मैं अकसर सोचता हूँ कि मैं घर क्यों जाता हूँ , मुझे घर क्यों जाना चाहिए ? घर में क्या है , जो मुझे बुलाता है , आकर्षित करता है ? ऑफिस का काम पूरा करने के बाद ऐसा क्या है जो मुझे सीधे घर की ओर खींचता है , बेचैन करता है कि मुझे कहीं और जाने के बारे में न सोचकर जल्द से जल्द घर की ओर जाना चाहिए। फिर मैं सोचता हूँ कि बहुत सारे लोग हैं , जो घर जाकर भी घर नहीं जाते , घर के पास की किसी पान की दुकान या चाय खाने पर बैठकर गप्पे मारते हैं , चबूतरे पर बैठकर रात का काफी सारा हिस्सा घर के बाहर ही बिताते हैं , तो फिर घर क्यों जाना चाहिए। जब शहर की पुलिस ने चबूतरा अभियान शुरू किया था , तब भी मैं सोचता रहा कि क्यों लोगों को घर अपने अंदर नहीं समाता , क्यों नहीं वह अपने भीतर रहने वालों को इतना प्यार करता कि एक बार जब थके हारे लौट आयें तो फिर से बाहर जाने के बारे में न सोचें।   उसमें रहने और उसका प्यार पाने के लिए बेचैनी बढ़ती रहे और अदमी दफ्तर से घर की दूरी के लंबे लंबे रास्ते तय करता, ट्राफिक के अंतहीन समंदरों में तैरता , मैदानों में दौड़ता और पहाड़ों और वादियों को चीरता

हिन्दी को बनाना चाहता हूँ फैशन : मनीष गुप्ता

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इस संसार में हज़ारों लोगों ने लाखों करोड़ों लड़ाइयाँ लड़ी हैं। कहते हैं, ज्यादातर लड़ाइयाँ जर, जोरू और ज़मीन के लिए लड़ी गयीं। लगता है, यह बात कहने वालों ने एक और `ज़' छोड़ दिया था। यह है ज़बान का `ज'। पता नहीं इसके लिए कितने लोगों ने कितनी लड़ाइयाँ लड़ीं और क्या हासिल किया, लेकिन एक जंग मनीष गुप्ता भी लड़ रहे हैं। हालाँकि, उनकी यह जंग किसी भाषा के खिलाफ नहीं हैं और वो खुद भी इसे लड़ाई नहीं मानते, बल्कि उनका यह आंदोलन निज भाषा से अपनी ज़िंदगी खूबसूरत बनाने के लिए है। यह आंदोलन केवल दिमाग और जेब का नहीं, बल्कि दिल का भी है। मनीष गुप्ता दिल और दिमाग की संपत्ति अर्थात समझ को विकसित करने के लिए बोलने, सुनने और सुनाने की प्रवृत्ति को उत्साहित करने की ऐसी धाम यात्रा पर निकल पड़े हैं, जिसे निज भाषा के अलावा किसी और साधन या उपकरण से पूरा नहीं किया जा सकता है। फिल्मकार और चित्रकार मनीष गुप्ता कविता में डिजिटल क्रांति के प्रवर्तक माने जाते हैं। वे हिन्दी कविता और उर्दू स्टूडियो यू-ट्यूब चैनल के संस्थापक हैं। कुछ विश्वविद्यालयों में वे पर्यटन प्रबंधन के अतिथि प्रोफेसर भी हैं। दस-पंद्रह