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अत्याचार और ट्राफिकिंग से पीड़िताओं के लिए निडरता से काम करने वाली प्रज्ञा परमीता

पिछली सदी के प्रारंभिक दशक में जब प्रेमचंद ने क़लम उठायी थी तो उन्होंने लिखा था कि समाज में सबसे पीड़ित अगर कोई है तो वह नारी है। उन्होंने बहुत से मुद्दे अपने उपन्यासों और कहानियों में उठाये थे, उन्हीं में से एक वेश्यावृत्ति भी था। इस समस्या ने आज एक सदी बाद विकराल रूप लिया है और वह मानव तस्करी में परिवर्तित हो गया है। सबसे अधिक प्रभावित वो बालिकाएं और युवतियाँ हैं, जिन्हें बहला-फुसला कर अथवा ज़ोर-ज़बर्दस्ती जिस्मफरोशी के कारोबार में धकेल दिया जाता है। इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए, बहुत से लोग इसके लिए काम कर रहे हैं। उन्हीं में से एक ओडीशा की प्रज्ञा प्रमीता भी हैं।  पिछले दोनों अमेरिकी कॉन्सिलेट में परमीता से मुलाकात हुई। अमेरिका ने उन्हें महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष करने हेतु किये जाने वाले कार्यों के अध्ययन के लिए चुना था। वह अपना अमेरिकी दौरा पूरा कर वापस लौट चुकी हैं। उन्होंने आंध्र-प्रदेश, ओडीशा और पश्चिम बंगाल में वेश्यावृत्ति और ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार महिलाओं के जीवन-सुधार का काम किया है। दूर-दराज़ के इलाकों में ट्रकों में बैठ कर उन अड्डों तक पह