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ट्रायल रिंग से बाहर

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कुछ लोग होंगे , जो दूसरों की जेब काटकर खुश होते हों , लेकिन कुछ तो ऐसे भी मिलेंगे, जो जेब कटवाकर भी खुश होते हों। इतना ही नहीं, कभी तो हम स्वेच्छा से जेब कटाकर भी अंजाने में अपने नुक़सान के भागीदार बनते हैं। दूसरे की क्या सोचें , हो सकता है , कभी अपने पर भी ऐसा कोई लम्हा आया हो। पिछले दिनों आरटीए लायसेंस परीक्षा के ट्रायल रिंग का अवलोकन करने का मौका मिला। यहाँ हर उस व्यक्ति के जीवन के डेढ़ दो घंटे का समय गुज़रता ही है , जिसे दुपहिया या चौपहिया वाहन चलाने का लायसेंस प्राप्त करना हो। आज कल सत्तर से अस्सी प्रतिशत लोग यहाँ जाते ही हैं। ट्रायल रिंग में उतरने वाले उम्मीदवारों को देखना दिलचस्प नज़ारा होता है। यहाँ कुछ लोग सीधे सरकारी फीस भरकर रिजेक्ट होने की संभावना के साथ आते हैं तो और कुछ पूरे विश्वास के साथ अपने एजेंट के साथ होते हैं। यदि आपकी नज़र दुपहिया के ट्रायल रिंग पर पड़ती है तो हैरत ही होगी। गड्ढों और पानी से भरे इस रिंग को देखकर एहसास होता है कि इसे नियंत्रण के साथ पार करने के लिए काफी महारत चाहिए। इसे देखकर लगा कि जो व्यक्ति इस परीक्षा को पास कर ले , उसे ही लायसेंस दिया