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Showing posts from January, 2018

कोई माँ अपने बच्चे को नफरत करना नहीं सिखाती- नाज़िया इरम

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नाज़िया इरम ने यूँ तो विकासात्मक परियोजनाओं पर संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ काम किया है, मीडिया में भी रही हैं। एक फैशन स्टार्टअप की मालिक हैं।  यूपी मूल के एक परिवार में जन्मी और पली बढ़ी हैं। हालाँकि उनका जन्म असम में हुआ है, लेकिन शिक्षा दिल्ली विश्विविद्यालय में हुई है। वे मीडिया मेें स्नातकोत्तर की उपाधि रखती हैं। आज कल उनकी पुस्तक `मदरिंग ए मुस्लिम' चर्चा का विषय है। एक लेखिका के रूप मेें यह उनकी पहली पुस्तक है। तीन तलाक और मुस्लिम महिलाओं से संबंधित विषय पर पुरुष सत्तात्मक समाज पर कुछ बोल्ड टिप्पणियों के लिए भी उनका नाम सामने आया है। नाज़िया का मानना है कि 2014 के चुनावों के दौरान उन्होंने देश के कई इलाक़ों मेें नफरत का माहौल देखा। मुसलमानों को आतंकवादी के रूप मेें देखे जाने का नज़रिया बढ़ रहा था। उसी दौरान वह माँ बनी थी और उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि क्या एक मुसलमान की माँ होना ग़लत है। अपने बच्चे को अमन और शांति का माहौल देने की चिंता मेें उन्होंने कॉर्पोरेट स्कूलों का एक सर्वेक्षण किया और उसी को आधार बनाकर यह पुस्तक लिखी। हाल ही मेें मंथन ने उन्हें व्याख्यान के लिए हैदर

ख़्वाब आधे देखे, वो भी पूरे नहीं कर पाया- मुज़फ्फर अली

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फिल्मकार , चित्रकार , शायर और डिज़ाइनर मुज़फ्फर अली देश की उन चंद हस्तियों में से एक हैं , जिन्होंने अपनी शर्तों पर कार्य किया और महान कहलाए। हालाँकि उन्होंने कई फिल्में बनाई , लेकिन ` उमराव जान ' ने उनको कालजयी लोकप्रियता प्रदान की। उनका जन्म 21 अक्तूबर 1944 को लखनऊ में हुआ। पिता साजिद हुसैन अली कोटवारा के राजा थे और माँ का संबंध भी मशहूर नवाबी घराने से था। प्रारंभिक शिक्षा ल-मार्टिनियर लखनऊ में हुई और अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी से बी.एससी. के बाद वे विज्ञापन फिल्मों के काम के लिए कोलकाता चले गये। शुरू में सत्यजीत रे के सहायक के रूप में काम करने के बाद कुछ दिन तक उन्होंने श्याम बेनेगल और अज़ीज़ मिर्जा के साथ भी काम किया और फिर एयर इंडिया से जुड़ गये। यहाँ भी उनका काम विज्ञापन फिल्में बनाना ही था। उन्हें बचपन से ही चित्रकला से प्रेम था , यही कारण था कि वे फिल्मों में भी कलात्मकता की तलाश करते रहे। 1978 में उनकी पहली फिल्म ` गमन ' रिलीज़ हुई। इसके बाद उन्हें फिल्म और एयर इंडिया में से एक को चुनना था। उन्होंने फिल्मों को चुना और फिल्म ` उमराव जान ' बनायी। उनकी

कोई ओढ़ के सोता है थकन, कोई उतार कर आराम फरमता है

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देखना मेरी ऐनक से हाल ही में एक रिपोर्ट पढ़ी थी कि दुनिया में थकान बढ़ती जा रही है। लोगों को आगे बढ़ना है, बड़ा बनना है, इतना बड़ा कि उनके आस-पास कोई उनकी बराबरी का न रहे। इतने बड़े होने के बाद पता नहीं फिर वो किस के साथ हँस बोल लेंगे। ख़ैर ! आगे बढ़ने के लिए लोग जी तोड़, बल्कि जिस्मतोड़ कर ख़ूब काम कर रहे हैं। दिन रात का फर्क भी उनके लिए कोई मायने नहीं रहा है। काम के साथ उनकी थकान बढ़ती जा रही है। कभी-कभी इस थकान से उन्हें नींद भी नहीं आ रही, जिसके चलते उन्हें गोलियाँ खानी पड़ रही हैं। याद आया कि कॉलेज के दिनों में  एक शेर सुना था।- फुटपाथ पे सो जाते हैं अख़बार बिछाकर   मज़दूर कभी नींद की गोली नही खाते बात मज़दूरों की थी। वो तो सो जाते होंगे। जब थकन बढ़ जाती होगी अख़बार बिछाकर तो सोते होंगे या फिर काम की थकान में यह भी भूल जाते होंगे कि कुछ बिछा है या नहीं। डाक्टरों की मानें तो थकान बहुत काम करने के कारण होती है या फिर किसी बीमारी के कारण। तनाव बढ़ना और शारीरिक ऊर्जा कम होना भी डाक्टर की निगाह में थकान के कारण हो सकते हैं।   ' थकान '  शायरों के लिए भी बड़ा

शैक्षणिक विफलताओं को हराकर सफल फिल्मकार बने थे विजय मरूर

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विजय मरूर हैं तो एक व्यक्ति , लेकिन कई किरदार उनमें जीते हैं। वे फिल्मकार , रंगमंच कर्मी , गीतकार , लेखक , फूड क्रिटिक और आवाज़ की दुनिया की लोकप्रिय शख़्सियत हैं। हर काम में माहिर नज़र आते हैं। शहर के थिएटरों में चलने वाली अधिकतर विज्ञापन फिल्मों में उनकी दमदार आवाज़ सुनने वाले को अपनी ओर आकर्षित करती है , और दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ती है। उनका जन्म 19 नवंबर 1956 को कड़पा में हुआ। यहाँ रहमत अली स्ट्रीट में उनके नाना रहा करते थे। प्रारंभिक शिक्षा कोलकता में हुई। जब उनका परिवार हैदराबाद स्थानांतरित हुआ तो वे हाई स्कूल में थे। यहाँ उन्होंने हैदराबाद पब्लिक स्कूल में प्रवेश लिया। पिता उन्हें आईएएस अधिकारी बनते देखना चाहते थे , लेकिन ऐसा नहीं हो सका। इलेक्ट्रॉनिक्स में काफी दिलचस्पी होने के कारण मामा समझते थे कि वे इंजीनियर बनेंगे , लेकिन वो भी नहीं हो सका। पढ़ने-लिखने में उत्तम होने के बावजूद उनकी शिक्षा का क्रम डिग्री से आगे नहीं बढ़ सका , लेकिन आज़ाद तबियत ने उनको अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने का मौक़ा दिया। विज्ञापन फिल्मों के क्षेत्र में उन्होंने बड़ा नाम कमाया। मुंबई , चेन्नई