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Showing posts from November, 2016

खुद को साबित करने पर ही मिलता है सम्मान : रवींद्र गुप्ता

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रवींद्र गुप्ता दक्षिण मध्य रेलवे के महाप्रबंधक हैं। रेल मंत्रालय ने पदोन्नति देकर उन्हें रेलवे बोर्ड सदस्य बनया है। वे 1975 बैच के स्पेशल क्लास अपेरेंटिस (एससीआरए) अधिकारी हैं। इलाहाबाद में जन्मे, पले-बढ़े रविंद्र गुप्ता ने इससे पूर्व पश्चिमी रेलवे के चीफ मेकॉनिकल इंजीनयर, जमालपुर वर्कशॉप के मुख्य प्रबंधक सहित रेलवे के विभिन्न जोनों में महत्वपूर्ण पदों पर सेवाएँ दी हैं। उन्होंने तेज़ रफ्तार ट्रेनों तथा रेलवे सुरक्षा के मामलों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशिक्षण प्राप्त किया है। रेलवे में होने के बावजूद जल संरक्षण तथा तालाबों के पुनरुद्धार में उनकी खास दिलचस्पी है। कई स्थानों पर उन्होंने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण उप्लब्धियाँ प्राप्त की हैं। सप्ताह के साक्षात्कार में उनके साथ हुई बातचीत के कुछ अंश इस प्रकार हैं... रेलवे में आना इत्तेफाक रहा या योजनाबद्ध तरीके से सेवा में प्रवेश किया? इसे आप लक्षित ही कह सकते हैं। अगर मैं समय में कुछ पीछे जाऊँ, तो मुझे याद आता है कि मैं आईआईटी  से इंजीनियरिंग करना चाहता था, लेकिन रास्ता दूसरी ओर मुड़ गया। पिताजी उन दिनों गोरखपुर में थे। वे राज्

विकलांगों के मसीहा और जादुई कहानिकार अली बाक़र

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(अली बाक़र से मेरी मुलाक़ात 2007 में हुई थी। शायद वह उनकी आख़री भारत यात्रा थी। उसके बाद उनके दुनिया से चले जाने की खबर आयी। उन दिनों उर्दू समाचार पत्र 'एतेमाद' के लिए लिया गया उनका साक्षात्कार  पेश है। इसमें बहुत सी पुरानी यादें हैं और उन यादों में बसा हैदराबाद और लंदन भी।) हैदराबाद के एक प्रतिष्ठित घराने में आँखें खोलीं। पिता उन्हें अपनी ही तरह वकील बनाना चाहते थे, लेकिन में वकालत की शिक्षा अधूरी छोड़कर उन्होेंने मानव जाति के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उसमें शोध के नये पहलू तलाश किये कि जिससे न सिर्फ हिन्दूस्तान व यूरोप, बल्कि यू एन ओ में भी अपनी शख़ि्सयत का असर छोड़ा। साठ और सत्तर के दशक में। विकलांग बच्चों की कल्याण के लिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार के लिए काम किया और अपने देेेश के लिए जब इसी काम की ज़रूरत पड़ी तो उन्होंने अपने आपको पेश किया। एनआईएमएच `नेशल इंस्टीट्यूट आफ मेन्टल्ली हैंडिकैप, को हैदराबाद में स्थापित करने और विकलांगो के अधिकारों  के लिए क़ानून बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।। उर्दू साहित्य में एक कहानीकार के रूप में भी उनका नाम सम्मा

अपने लक्ष्य के साथ टीम को जोड़ना बड़ी चुनौती : आईपीएस एम. रमेश

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अतिरिक्त उप-महानिरीक्षक (पुलिस महानिदेशक कार्यालय, तेलंगाना) एम. रमेश का जन्म महबूबनगर जिले में मस्तीपुर नामक गाँव में हुआ। अब यह गाँव नये वनपर्ती जिले में है। उनकी प्राथमिक शिक्षा यहीं से हुई। वे माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए हैदराबाद आये। यहाँ से फिर नागार्जुना रेसिडेंशिनल स्कूल में इंटर की शिक्षा प्राप्त की। स्नातक के लिये वे दिल्ली चले गये। स्नातकोत्तर की शिक्षा के दौरान उन्हें तत्कालीन आंध्र-प्रदेश में ग्रुप-1 अधिकारी के रूप में डीएसपी बनाया गया। डीएसपी गोदावरी खन्नी के रूप में तीन साल तक उन्होंने काम किया। वरंगल के ओएसडी और मुख्यमंत्री के मुख्य सुरक्षा अधिकारी के रूप में भी उन्हें सेवा का अवसर प्राप्त हुआ। प्रदेश की पुलिस सेवा में कई सारे पदों पर कार्य करते हुए आईपीएस के रूप में वे पदोन्नत हुए। अब वे पुलिस महानिदेशक कार्यालय में अतिरिक्त पुलिस उप-महानिरीक्षक पद पर सेवारत हैं। रमेश लिखने का शौक रखते हैं। वे हमेशा खुश रहते हैं। उनका मानना है कि प्रसन्न रहने के लिए दूसरों की मदद करना जरूरी है। वे सिनेमा का शौक भी रखते हैं। उन्होंने तेलंगना पुलिस पर एक डाक्युमेंटरी फिल्म भी

उस्ताद विट्ठल राव की विरासत में जी रहे हैं सुनिल राव

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कभी-कभी लोग विरासत में ऐसी चीज़ें छोड़ जाते हैं, जिन्हें पाने के लिए उनकी बाद की नसलों को झगड़ा, विवाद या अदालतों के चक्कर काटने की ज़रूरत नहीं होती, बल्कि उल्टे उन्हें पाने और उनकी हफ़िाज़त करने के लिए पूरी प्रतिबद्धता के साथ उन्हें ज़िंदगी भर के लिए समर्पित हो जाना पड़ता है। अपनी रातों की नींद कुर्बान करनी पड़ती है, तब भी कहीं लगता है कि कुछ अधूरा-सा है। सुनिल राव से मिल कर हम इस बात को बड़ी शिद्दत से महसूस करते हैं कि विख्यात ग़ज़ल गायक उस्ताद विट्ठल राव की छोड़ी हुई विरासत को बनाए रखने के लिए उन्हें बड़ी जद्दोजहद का सामना करना पड़ रहा है। विट्ठल राव के तीन भतीजे सुनील  राव, अनिल राव और दीपक राव छोटी-छोटी महफ़िलों में ताज़गी बनाए रखने की परंपरा को निभा रहे हैं। सुनील और अनिल तो ग़ज़लें और सूफी गाते हैं, जबकि दीपक ने तबले को अपना साथी बनाया है। सुनील का बस एक ही सपना है, वह अर्थ के लिए होने वाली भागदौड़ के बीच एक ऐसा रास्ता निकालें, जिससे वे अपने गायन में सुधार करने के साथ-साथ अपने बड़े पिताजी की यादों को ज़िंदा रखें, क्योंकि इस विरासत को उन तक पहुँचाने में उनके पिता गणपत राव और

एक जल-थल यात्रा की कुछ यादें....

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(हाल ही में आईआईआईटी में क से कविता के एक कार्यक्रम में मीनाक्षीजी से बातचीत के दौरान अपनी पुरानी कृष्णा यात्रा याद आयी। उस यात्रा का 29 अक्तबूर 2014 का लिखा हुआ एक यात्रावृत्तांत पेश है।) ऊँची-ऊँची दूर तक फैली लंबी पहाडी चोटियों के बीच से नदिया की धार पर उलटे सफर करने का रोमांच अलग ही होता है और ऐसे में अगर बादल घिर आएँ , बारिश की बूंदें बौछार में बदल जाएँ और शाम से   पहले ही अंधेरा घिर आये तो फिर उस यात्रा का आनंद दुग्ना हो जाता है। हुआ कुछ ऐसा ही। दर असल तीन दिन पहले ही तय हो गया था कि महाबलेश्वर के निकिट पश्चिमी घाटों से निकलने वाली कृष्णा नदी के दीर्घदर्शन करने हैं। नवंबर 2014 के एक बुधवार की सुबह 6 बजे पर्टयक भवन , बेगमपेट में पर्टयन विभाग की बसें तैयार खड़ी थीं।   यूँ मीडिया प्रतिनिधियों के पहुँचते-पहुँचते यात्रा के प्रारंभ में कुछ देर ज़रूर हुई , लेकिन लगभग ग्यारह बजे नागार्जुन सागर का विशाल बांध नज़रों के सामने था। बांध की सीमाएं जहाँ आन्ध्र-प्रदेश के गुंटुर जिले को तेलंगाना के नलगोंडा जिले से जोड़ती हैं , सड़क परिवहन के लिए बनाये गये छोटे पुल से नागार्जु

दुश्मनी के बाद ही हुई थी मोदी से दोस्ती- ज़फ़र सरीशवाला

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ज़फर यूनुस सरीशवाला मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति हैं। उनका जन्म 9 दिसंबर , 1963 को गुजरात के व्यापारी घराने में हुआ इंजीनियरिंग की शिक्षा पूरी करने के बार उन्होंने व्यापार में कदम रखा। कई प्रकार के उद्यम किये। कुछ में नाकामी हाथ लगी , लेकिन बाद में वे बीएमडब्ल्यू जैस कीमती कार के डीलर के रूप में उभरे गुजरात दंगों के बाद उन्होंने तत्कालीन् मुख्यमंत्री नरेंद्रमोदी के खिलाफ मोर्चा खोला। विरोध प्रदर्शन किये। ज़फर सरीशवाला के बारे में कहा जाता है कि 2002 के दंगों में उनकी कंपनी पारसोली को 3.3 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। एक समय ऐसा भी था , जब उनका परिवार भारत छोड़ने की सोच रहा था , लेकिन उन्होंने अपने व्यापार को पुनः स्थापित किया और आगे बढ़े। इस दौरान अचानक वे मोदी के हितचिंतकों की सूची में आ गये। आज उनका शुमार मोदी के निकटतम मुस्लिम व्यक्तियों में होता है। वे स्वयं को राजनीतिज्ञ नहीं मानते , लेकिन बताया जाता है कि मोदी ने उन्हें एक उद्देश्य दिया है और इसके लिए वे अपने काम (मानूकुलाधिपति) को अपने उद्योग पर थमिकता देते हैं। हाल ही में वे मानूके दौरे पर आये थे। एक साक्षात