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Showing posts from April, 2017

भाषा और संस्कृति का दौर लौट आएगा : प्रो.बी.एस. सत्यनारायण

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प्रो.बी.एस. सत्यनारायण हीरो ग्रुप के बीएमएल मुंजाल विश्वविद्यालय, गुड़गाँव के कुलपति हैं। वे बहुत ही दिलचस्प इंसान हैं। उन्होंने बचपन के आठ-दस साल लगभग जंगलों में गुज़ारे हैं। कन्नड़ के साथ-साथ हिन्दी, अंग्रेज़ी, पंजाबी, मलयाली, तमिल, तेलुगु और बांगला भाषाओं का अच्छा ज्ञान रखते हैं। उनके पिता हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी में कर्मचारी थे। उन्हें पिता के साथ ही, जहाँ नयी परियोजना पर काम शुरू हो, जाना पड़ता था। उनका जन्म राजस्थान के कोटा जिले में हुआ, लेकिन बाद में केरल और अन्य राज्यों में उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। सत्यनारायण देश के प्रमुख भौतिक वैज्ञानिकों में स्थान रखते हैं। उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय, यूके से वैक्यूम नैनो इलेक्ट्रॉनिक्स में डॉक्टरेट की है। वे राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव रखते हैं। एक दर्जन से अधिक बड़े पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। कोल्ड कैथोड लैम्प आधारित विश्व का पहला रूम टेंप्रेचर ग्रोन नैनोकार्बन बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। देश की पहली इंटीग्रेटेड अमोर्फस सिलिकन सोलार

खत्म नहीं हो सकती किताब पढ़ने की संस्कृति : असग़र वजाहत

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असग़र वजाहत हिन्दी के मशहूर लेखक हैं। उन्होंने नाटक, उपन्यास, कहानी और आलोचना के अलावा फिल्में भी लिखी हैं। वे 20 से अधिक पुस्तकों के रचनाकार हैं। 5 जुलाई, 1946 को उत्तर-प्रदेश के फतेहपुर में जन्मे असगर वजाहत ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और जामिया मिल्लिया में हिन्दी के प्रोफेसर रहे। `जिन लाहौर नई वेख्या, ते जन्म्या नई' जैसे मशहूर ज़माना रचना के नाटककार असगर वजाहत ने डाक्युमेंट्री फिल्में भी बनायी हैं। उन्होंने धारावाहिक भी लिखे हैं और चित्रकार के रूप में रंगों के साथ खेला है।   उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश इस प्रकार हैं... बचपन से ही लिखने का शौक रहा या इत्तेफाकिया तौर पर आपने लेखन के क्षेत्र में कदम रखा? आप कह सकते हैं कि इत्तेफाक रहा। मुझे पढ़ने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी, बल्कि फूल-पत्तों, पेड़-पौधों और पक्षियों में अधिक दिलचस्पी हुआ करती थी। मैं सोचता था कि फलाँ रंग की चिड़िया को कैसे पकड़ा जाए। मैं गुलाब के फूल को कागज़ पर रगड़ता और उसका लाल रंग देखकर खुश होता था। कमल के फूल कहाँ खिलते हैं, ये ढूंढ़ने निकल जाता था। बचपन में गोंद खाने का बहुत शौक़ था, इसल