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Showing posts from 2014

बी. नर्सिंग राव से हैदराबाद की पुरानी यादों पर गुफ्तगू

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हैदराबाद के पहले मुंतख़ब चीफ़ मिनिस्टर बी राम कृष्णा राव के भतीजे बी. नर्सिंग राव उर्दू को अपनी दूसरी मादरी ज़बान मानते हैं। अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू के लंबे अर्से तक रुक्न रहे हैं । मख़दूम मुहीयुद्दीन और राज बहादुर गौड़ के साथ मुख़्तलिफ़ तहरीकों में हिस्सा ले चुके हैं। हैदराबाद में पहले स्टूडैंट लीडर और बाद में कम्यूनिस्ट पार्टी के क़ाइद के तौर पर उन्होंने काम किया। इब्तिदाई ज़िंदगी में टीचर भी रहे। हैदराबादी तहज़ीब की नुमाइंदा शख़्सियत के तौर पर लोग उन्हें पहुंचानते हैं। राज बहादुर गौड़ ने अपने मकान का नाम मख़दूम की उर्दू नज़्म से मुतास्सिर हो कर चम्बेली का मंडवा रखा तो नर्सिंग राव साहब ने मख़दूम के ड्रामे फूलबन का नाम अपने मकान की तख़्ती पर लिखवाया। हैदराबाद जो कल था के लिए एफ़ एम सलीम के साथ हुई गुफ़्तगु के इक़तिबासात पेश हैं। गांव में गुज़रा बचपन मेरा बचपन महबूबनगर के शाद नगर के पास वाक़े बोरगुल गांव में गुज़रा। 9 साल की उम्र तक में वहां रहा। वो बादशाहत का दौर था। जागीरदाराना राज में ज़मीन सर्फ़े ख़ास,  ज़मींदारों और जागीरदारों में बटी हुई थी। जागीरदारों के तहत मक़्तेदार हुआ करते थे, जो गांव

इतिहास केवल तिथियाँ नहीं होतीं -इतिहासकार नरेंद्र लूथर से बातचीत

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`इतिहास केवल तिथियाँ नहीं होतीं , बल्कि तिथियों के आस - पास ही मुख्य धारा से हटकर गली , कूचों एवं मुहल्लों कुछ घटनाएँ भी मिलती हैं। मैंने हैदराबाद के उसी इतिहास को संग्रहित किया हैं , जिसमें तिथियाँ भी हैं और रोचक घटनाएं भी। ' यह विचार विख्यात लेखक व आन्ध्र प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव नरेंद्र लूथर के हैं। नरेंद्र लूथर मूल रूप से हास्य व्यंग्यकार हैं , लेकिन उनका यह हास्य लेखन हैदराबाद के इतिहास में खो गया है , जिससे शहर का इतिहास रोचक हो गया है। उनकी नयी पुस्तक `लेजेन्डोट्स ' प्रकाशित हो चुकी है और आगामी 30 जनवरी को इसका लोकार्पण बेगमपेट स्थित आईएएस असोसिएशन के हाल में प्रस्तावित है। हैदराबाद विश्वविद्यालय में इतिहास के आचार्य डॉ . आलोक पाराशर सेन विमोचन करेंगे। उल्लेखनीय है कि हैदराबाद के इतिहास पर लूथर साहब ने दस से अधिक किताबें लिखी हैं और यह नई किताब हैदराबाद की लगभग 70 ऐसी दंतकथाएँ प्रस्तुत करती हैं , जिसके ऐतिहासिक पहलू भी भी हैं। इसलिए उन्होंने अंग्रेज़ी के दो शब्द `लेजेंड्स ' और `एनेक्डोट्स ' का मिश्रित करके एक नया शब्द `लेजेंडोट्स '

सब ग़ुलाम -(लघु कथा)

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जैसे ही उसकी आँख खुली, उसे शॉक-सा लगा। रेलवे प्लेट फार्म की बैंच पर लेटे-लेटे पता नहीं उसकी आंख कैसे लग गयी थी। हालाँकि उसका हाथ जेब पर ही था, लेकिन उसे पता नहीं चल पाया कि यह कैसे हुआ। उसे लगा कि उसकी जेब से पर्स ग़ायब हो गया है। इस अहसास से जैसे उसकी जान ही निकल गयी। वह हक्का बक्का रह गया। उसे यक़ीन ही नहीं हुआ। उसने जीन्स की जेब में हाथ डाला तो राहत महसूस की। पर्स जेब में ही था, लेकिन ये क्या ..पर्स बिल्कुल खाली। उसे ताज्जुब हुआ कि आखिर उसकी पर्स से किसने पैसे चुरा लिये। उसने दिल में ठान लिया कि वह पुलिस में इसकी शिकायत करेगा और इस इरादे से वह फट से रेलवे स्टेशन से बाहर निकला। स्टेशन के बाहर की बस्ती में जब लोगों पर उसकी नज़र पड़ी तो, उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं। सामने जो लोग इधर उधर आ जा रहे थे, बस का इन्तज़ार कर रहे थे। उन सब के चेहरे चौंका देने वाले थे। ऊपर से सिर का आधा हिस्सा ग़ायब था। यह सोचते हुए कि कहीं अभी वह नींद में तो नहीं है। उसने कई बार अपनी आँखें मली। सामने लोगों को देखकर उसे लगा कि वह किसी और दुनिया में आ गया है। सारे लोगों के सिर पिचके हुए थे, बल्कि लगता थ

हैदराबाद जो कल था- डॉ. राम प्रशाद

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एफ़ एम सलीम-डॉ. राम प्रशाद  माहिर-ए-तिब्ब , अदब के प्रुस्तार और हैदराबाद की गंगा जमुनी तहज़ीब की मुजस्सम शख़्सियत का नाम डॉ. राम प्रशाद राय है। हालाँकि उनका क्लीनिक मिले पली में है, लेकिन उनके चाहने वाले हैदराबाद के इलावा शहर के अतराफ़ व अकनाफ़ दूर-दूर तक पाए जाते हैं। जिन लोगों ने ज़िंदा दिलाने हैदराबाद की अदबी महफ़िलें ख़ुसूसन महफ़िले लतीफ़ा में शिरकत की है , वो डाक्टर साहब को एक लतीफ़ा गो की हैसियत से भी जानते हैं । मूसीक़ी और उर्दू अदब के शौक़ को उन्होंने इस क़दर अपनाया है कि ख़ुद शामे ग़ज़ल के कन्वीनर बन गए हैं। हैदराबाद की क़दीम रिवायती तहज़ीब के बारे में ख़ूब वाक़िफ़ हैं और नई तहज़ीब के बदलते रंग रूप पर भी नज़र रखते हैं । हैदराबाद जो कल था में उन के साथ हुई गुफ़्तगु का ख़ुलासा पेश है। सरकारी क़ंदील की रोशनी में पढ़ने वाले लड़के का डेवढ़ी में दाख़िला हैदराबाद में शुमाली हिंद से आए लोगों की दो बिरादरियां थीं कायसथ और खत्री। खत्रियों में मशहूर आला हज़रत निज़ाम के सदरुल महाम सर किशन प्रशाद थे। कायसथों को डेवढ़ियां नवाज़ी गईं। इनमें राजा शिवराज बहादुर और राजा राम करण की काफ़ी शोहरत थी। मेरे वालिद

मैंने वो सब देखा है .....बी एन रामन से बातचीत

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हैदराबाद की तरक़्क़ी में जिन शख़्सियतों का ख़ास रोल रहा है, उन में हुकमरानों के साथ - साथ हुक्काम के तौर पर मुख़्तलिफ़ ओहदों पर काम करने वालों की नुमायां ख़िदमात से भी इनकार नहीं किया जा सकता - चाहे वो सुकूते हैदराबाद से पहले हों या बाद में। हुकूमत के अहम शोबों की कमान जिनके हाथों में थी, इन में पहले हैदराबाद सिवल सर्विस के लोग रहे और बाद में हिंदुस्तानी सिविल सर्विस (आई ए एस) के ओहदेदारों ने उन की जगह ली। बी. एन. रामन साहिब हैदराबाद की नई और पुरानी एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस के बीच पुल माने जाते हैं। वो हैदराबाद से चुने जाने वाले पहले आई ए एस ओहदेदारों में से एक हैं, जिन्हें साबिक़ा हैदराबाद रियासत के निज़ाम और उन के ओहदेदारों की दूर अंदेशी से क़ायम किया गया ढांचा विरासत में मिला था। और जिन्हों ने बाद की हुकूमतों के काम भी देखे। रामन साहिब चादर घाट हाई स्कूल के तालिब-ए-इल्म रहे। निज़ाम कॉलिज से आला तालीम हासिल की और 1948 में बनी पहली एच ए यस सर्विस और बाद में आई ए ऐस मुंतख़ब हुए। उनके वालिद निज़ाम की हुकूमत में मेडिकल सर्विस में बरसरे ख़िदमत रहे। रामन साहिब उर्दू, अंग्रेज़ी और तेलुगू के साथ-साथ

सय्यद तुराबुल हसन से बातचीत-

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एफ़ एम सलीम साबिक़ आई ए एस ओहदेदार तुराब उल-हसन साहब हैदराबाद के एक मशहूर-ओ-मुअज़्ज़िज़ ख़ानदान से ताल्लुक़ रखते हैं। एक ओहदेदार के तौर पर उन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख़्तलिफ़ शोबों में नुमायां ख़िदमात अंजाम दी हैं। गुज़िशता साठ , सत्तर बरसों में बदलते हैदराबाद और उसकी तहज़ीब को उन्होंने बहुत क़रीब से देखा है। उनके वालिद ग़ुलाम पन्जतन साहब साबिक़ हैदराबाद रियासत में जज के ओहदे पर फ़ाइज़ रहे। बड़े भाई आबिद हुसैन साहब (आई ए एस) अमरीका में हिंदुस्तान के सफ़ीर रहे। तुराब साहब की अपनी शख़्सियत भी काफ़ी दिलचस्प है। अदब का आला ज़ौक़ रखते हैं। शहर की अदबी और सक़ाफ़्ती महफ़िलों में ख़ाह वो किसी भी हलक़े या ज़बान से ताल्लुक़ रखती हों, तुराब उल-हसन नज़र आ ही जाते हैं। उनसे बातचीत के दौरान जहाँ हैदराबाद की अदबी , तहज़ीबी-ओ-समाजी ज़िंदगी के मुख़्तलिफ़ पहलू सामने आते हैं, वहीं एक ख़ास हैदराबादियत का चेहरा खुलकर सामने आता है। उनसे गुफ़्तगु का ख़ुलासा यहाँ पेश है। दरगाह हज़रत तुराब उल-हक़ का वाक़िया मेरा बचपन आबिड्स के आस पास बीता। आबिद मंज़िल हमारा ख़ानदानी मकान हुआ करता था। मेरे सारे दोस्त भी यहीं थे। डाक्टरों ने मेर