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Showing posts from October, 2016

वायलिन से गिटार पर आये और जम गये... नीरज कुमार

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 जब उनकी उंगलियाँ गिटार पर चलती हैं, तो सुनने वाला संभल कर बैठ जाता है। उसके कानों में कुछ अलग सुर घुलने लगते हैं। लगता है कि ऐसा कुछ उनकी उंगलियों में है, जो जादू का काम करता है। बात ए.आर. नीरज कुमार की है। नीरज बहुत कम बोलते हैं, लेकिन बहुत अच्छा बजाते हैं। बहुत साल पहले रेल्वे के एक कार्यक्रम में उन्हें गिटार बजाते हुए देखा था, बाद में जब कुछ निजी कार्यक्रमों विशेषकर `स्वर संगम' और `आलाप' की महफिलों में उन्हें सुना तो लगा कि वे भीड़ से अलग हैं। उनके कुछ हट कर होने का राज़ गिटार में नहीं वायलिन में है। उन्होंने अपनी शुरूआत अपने पिता और गुरू ए. रामांजुलु  की छत्रछाया में की थी। रामांजुलु नज़िाम के दरबारी संगीतकारों में से एक थे। उन्होंने एक बैंड भी बनाया था। हैदराबाद से बहुत सारे कलाकार उस बैंड के कारण गायन के क्षेत्र में उभरे और विशेषकर हैदराबाद में छोटी-छोटी महफिलों और आर्केस्ट्रा के माहौल को सजाते रहे। पिता की विरासत को संभालने का काम नीरज ने बहुत सलीके से किया। अपने बारे में वह बताते हैं, `संगीत तो विरासत में मिला है, लेकिन उसे पेशा बनाने की अनुमति नहीं थी। पिताजी चाहत

मुसुई और मइया की कहानी राधाकृष्णन की ज़बानी

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शांतिनिकेतन में सड़क पर चलते हुए, उस कलाकार को अचानक एक चेहरा दिखाई दिया। वह चेहरा सामान्य नहीं था, बल्कि भीख मांगते हुए भी उस चेहरे पर दयनीयता या उदासी नहीं थी, बल्कि एक अजीब-सी मुस्कुराहट थी। यह चेहरा था, एक 18-19 साल के युवक का और उस समय उस कलाकार की उम्र भी इसके लगभग ही थी। कलाकार को लगा कि यह चेहरा आम चेहरों से हट कर है। एक चमक है, जो देखते ही बनती है और यही चेहरा उस कलाकार का मॉडल बन गया। शांतिनिकेतन की सड़क पर मिले उस चेहरे का नाम था- मुसुई, और वह कलाकार हैं आज के विख्यात मूर्तिकार के. एस. राधाकृष्णन। राधाकृष्णन ने उसी चेहरे से एक और चेहरा बनाया-मइया और यह दोनों चेहरे आज राधाकृष्णन की मूरतों में ढल कर लंबा जीवन पा गये हैं। कलाकृति आर्ट गैलरी में कांस्य और विभिन्न धातुओं से बनी काले रंग की असंख्य मूरतों का अवलोकन करते हुए, जो खास चीज अपनी ओर आकर्षित कर रही थी, वह दो पात्र थे, जो हर जगह किसी न किसी रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। ये दोनों पात्र मुसुई और मइया के थे। राधाकृष्णन, मुसुई और मइया की बड़ी दिलचस्प कहानी है। राधाकृष्णन मूल रूप से केरल के हैं। शांतिनिकेतन ने उ

दुश्मन को कलेजे से लगाने वाले अनवर जलालपुरी नहीं रहे

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(अनवर जलालपुरी नहीं रहे। कल(2 जनवरी 2018 को)  उन्होंने लखनऊ के ट्रामा सेंटर में इस दुनियाए फानी को अलविदा कहा। हैदराबाद से उनका गहरा रिश्ता रहा है। जब भी वे हैदराबाद आते। मुशायरे में और उसके बाद या  पहले होटल के कमरे में उनसे ज़रूर मुलाक़ात होती। लगभग डेढ़ साल पहले उनके बारे में लिखा यह ब्लॉग फिर से पेश है।) कला की विभिन्न विधाओं में मंच का संचालन भी शामिल है। विशेषकर कवि-सम्मेलनों और मुशायरों का संचालन करने के लिए एक विशेष कलात्मक प्रतिभा की आवश्यकता होती है। उर्दू मुशायरों के संचालन के इतिहास में सक़लैन हैदर के बाद एक बड़ा नाम उभरता है- अनवर जलालपुरी का। आज अनवर जलालपुरी न केवल मुशायरों के संचालक बल्कि एक अच्छे शायर, विद्वान तथा गीता और गीतांजलि जैसी पुस्तकों को उर्दू शायरी से जोड़ने वाले रचनाकार के रूप में जाने जाते हैं। अंग्रेज़ी पढ़ाते हैं, उर्दू में शायरी करते हैं और संस्कृत, फारसी तथा अरबी पर भी अपना अधिकार रखते हैं। बीते दो दशकों में हैदराबाद में होने वाले हर बड़े मुशायरे के संचालक के रूप में पहला नाम अगर कोई उभरता है तो वह अनवर जलालपुरी का ही है। उनसे कई मुलाक़ातें हुईं, ल

रातों में जागता है शहर

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(यह लेख बीते रम़जान के दौरान पुराना शहर हैदराबाद के दौरे के बाद विचारों को संकलित करते हुए लिखा गया था।) दुनिया के सारे शहर हो सकता है कि शहरीकरण में एकरूपता रखते हों, लेकिन हर शहर की अपनी अलग सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक विशेषताएं होती है, जो उसे दूसरे शहर से अलग रखती हैं। हैदराबाद भी इस मामले में भिन्न होने की पहचान रखता है। हालांकि यह अन्य ऐतिहासिक शहरों की तुलना में बहुत पुराना शहर नहीं है, लेकिन देश में बीती चार-पांच सदियों में जितने शहर में बसे हैं, उनमें हैदराबाद को विशेष स्थान प्राप्त है। शायद यही वज्ह है कि पर्यटकों को इसका आकर्षण अपनी ओर खींच लाता है। वे यहाँ घूम फिर कर अपनी तरह की अलग यादें लेकर चले जाते हैं, लेकिन कभी-सभी ऐसा भी होता है के हम ही इस शहर की उन विशेषताओं को क़रीब से देख और महसूस नहीं कर पाते। दो दिन पहले एक मित्र ने मुंबई से फोन पर बातों बातों में हैदराबाद की तारीफ करते हुए कहा कि इन दिनों तो आपका शहर रातों में जाग रहा होगा। बड़ी रौनक़ और चहल पहल होगी। बात तो बिल्कुल सही थी। उत्सवों के दिनों में रमज़ान में हैदराबाद खासकर पुराने शहर की रातों को जैसे चार चा

' दु:ख तितलियों की तरह होते हैं, जो कुछ देर के लिए कंधे पर बैठकर उड़ जाते हैं।'

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आर. वेणुगोपाल वाणिज्य एवं उद्योग विभाग में पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पीईएसओ) के तेलंगाना में उप-मुख्य नियंत्रक हैं। नियामक के रूप में वे बड़े सख्त अधिकारी माने जाते हैं। उन्होंने कर्नाटक, तमिलनाडु, राजस्थान और भंडारा (नागपुर) में विभिन्न पदों पर कार्य किया है। उनका पूरा नाम वेणुगोपाल राघवन पिल्लै है, लेकिन वे आर. वेणुगोपाल के नाम से जाने जाते हैं। उनका जन्म 15 मई, 1964 को केरल के पंदलम गाँव में हुआ, जो संत अय्यप्पा की जन्मस्थली के रूप में लोकप्रिय है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा त्रिवेंद्रम में हुई। उन्होंने कोच्चि से इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की। वे मेकॉनिकल इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर की उपाधि रखते हैं। वे केरल सरकार में फैक्टरीज और ब्वॉयलर्स के इंस्पेक्टर रह चुके हैं। बाद में उन्हें यूपीएससी की परीक्षाओं में उद्योग एवं वाणिज्य विभाग की सेवाओं के लिए चुना गया। शिवकाशी जैसे पटाखा निर्माण केंद्र में उन्होंने सजग अधिकारी के रूप में दुर्घटनाओं की दर शून्य पर लाने का महत्वपूर्ण काम किया। दीपावली के दौरान हैदराबाद और तेलंगाना में पटाखों से लोगों को किसी प्रकार का नुकसान न

रक्तबीज के किरदारों में जान डालतीं पूनम गोलछा

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रं गधारा के 125 वें प्रोडक्शन में एक नया चेहरा नज़र आया - पूनम गोलेछा। दरअसल रंगधारा और सूत्रधार ने कई कलाकार दिये। यहाँ से निकल कर कई कलाकारों ने अपनी प्रतिभाओं को अलग - अलग मंच पर मनवाया। रंगधारा की इस नयी प्रस्तुति ` रक्तबीज ' के नारी पात्रों को निभाने के लिए पूनम ने रसिकों से सराहना पायी है। पूनम को हालाँकि स्कूल और कॉलेज के ज़माने से ही रंगमंच एवं अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का काफी शौक रहा। उन्होंने विभिन्न मंचों से संचालक एवं एंकर के रूप में अपनी प्रतिभा प्रकट की , लेकिन नाटक की दुनिया में वह लंबे अंतराल के बाद आयी हैं। पिछले दिनों जब दूरदर्शन केंद्र , हैदराबाद पर एक कार्यक्रम के दौरान पूनम से मुलाकात हुई तो बातचीत के दौरान पाया कि उनमें रंगमंच के प्रति न केवल लगाव है , बल्कि कला के क्षेत्र में आगे बढ़ने की ललक भी मौजूद है। अपने प्रारंभिक दौर के बारे में वह बताती हैं कि शौक के तौर पर मस्ती करने के ल