' दु:ख तितलियों की तरह होते हैं, जो कुछ देर के लिए कंधे पर बैठकर उड़ जाते हैं।'


आर. वेणुगोपाल वाणिज्य एवं उद्योग विभाग में पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पीईएसओ) के तेलंगाना में उप-मुख्य नियंत्रक हैं। नियामक के रूप में वे बड़े सख्त अधिकारी माने जाते हैं। उन्होंने कर्नाटक, तमिलनाडु, राजस्थान और भंडारा (नागपुर) में विभिन्न पदों पर कार्य किया है। उनका पूरा नाम वेणुगोपाल राघवन पिल्लै है, लेकिन वे आर. वेणुगोपाल के नाम से जाने जाते हैं। उनका जन्म 15 मई, 1964 को केरल के पंदलम गाँव में हुआ, जो संत अय्यप्पा की जन्मस्थली के रूप में लोकप्रिय है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा त्रिवेंद्रम में हुई। उन्होंने कोच्चि से इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की। वे मेकॉनिकल इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर की उपाधि रखते हैं। वे केरल सरकार में फैक्टरीज और ब्वॉयलर्स के इंस्पेक्टर रह चुके हैं। बाद में उन्हें यूपीएससी की परीक्षाओं में उद्योग एवं वाणिज्य विभाग की सेवाओं के लिए चुना गया। शिवकाशी जैसे पटाखा निर्माण केंद्र में उन्होंने सजग अधिकारी के रूप में दुर्घटनाओं की दर शून्य पर लाने का महत्वपूर्ण काम किया। दीपावली के दौरान हैदराबाद और तेलंगाना में पटाखों से लोगों को किसी प्रकार का नुकसान न हो और पटाखा विक्रेता नियमों का पालन करें, इसके लिए वे जिला प्रशासन विशेषकर पुलिस एवं जिला कलेक्टर के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि चुनौतियाँ, समस्याएँ और दु:ख तितलियों की तरह होते हैं, जो कुछ देर के लिए कंधे पर बैठकर उड़ जाते हैं।  उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश इस प्रकार हैं...

क्या पहले से तय था कि आप सरकार की सेवा में काम करेंगे या फिर आप किसी और क्षेत्र में जाने की इच्छा रखते थे?
मेरे दौरान बहुत कम विकल्प हुआ करते थे। नौकरियाँ भी कम ही थीं। दरअसल मैं इंजीनियर नहीं बनना चाहता था। मेरी अंग्रेज़ी बहुत अच्छी है। एसएससी में अंग्रेज़ी में मैंने 100 में से 98 अंक प्राप्त किये थे। मैं चाहता था कि अंग्रेज़ी साहित्य के क्षेत्र में आगे बढ़ूँ, लेकिन वह पिता लोगों का ज़माना था और उनके कहे को टालना मुश्किल था। पिता व्यापार में थे। उन्हें लगता था कि यह अंग्रेज़ी पढ़कर किसी कॉलेज में पढ़ाने के अलावा क्या करेगा, इसलिए उन्होंने इंजीनियर बनने पर ज़ोर दिया। उस समय केरल में मुश्किल से 6 इंजीनियिरंग कॉलेज थे, जहाँ प्रवेश मुश्किल था, लेकिन मेरे पिता को विश्वास था कि मुझे प्रवेश मिल जाएगा और हुआ भी ऐसा ही। स्नातकोत्तर के अंतिम वर्ष में मैंने राज्य सरकार के फैक्टरीज और ब्वॉयलर विभाग में आवेदन दाखिल किया और मेरा इंस्पेक्टर के रूप में चयन कर लिया गया। यह बिल्कुल नया विभाग था। यहाँ आपदा प्रबंधन योजनाएँ बनाने और गंभीर जोखिमभरे उद्योगों में केमिकल और विस्फोटक सामग्री के सुरक्षित उपयोग आदि विषयों पर काफी काम करने का मौका मिला। इस सेवा में प्रोबेशनरी के रूप में मेरी नियुक्ति हुई, इसलिए मैंने यूपीएससी परीक्षा लिखने का विचार बनाया। वर्ष 1997 में केंद्र की सेवा में मैं चुना गया।

राज्य से केंद्र की सेवा में आने के अनुभव कैसे रहे?
यह 118 साल पुराना विभाग है। पूर्व में इसे एक्सप्लूजिव डिपार्टमेंट कहा जाता था। बाद में यह वाणिज्यिक एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले विभिन्न विभागों में से एक हुआ। मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी सरकार की कई महत्वपूर्ण योजनाओं का काम इसी मंत्रालय के अंतर्गत होता है। मेरी पहली नियुक्ति मंगलुरू में उप-नियंत्रक के रूप में हुई। फैक्टरीज कानून की सुरक्षा और श्रमिकों के कल्याण के लिए मुझे काम करने का मौका मिला। नयी जगह, नया माहौल और कई सारे नये कानून। उन्हीं दिनों भोपाल कांड भी हुआ था। उसे देखते हुए नये कानून बनाये गये थे। इसके बाद भंडारा (नागपुर) में डिफेंस की फैक्टरी में मेरी नियुक्ति हुई और चेन्नई स्थानांतरित करते हुए शिवकाशी में मुझे जिम्मेदारी सौंपी गयी।

शिवकाशी पटाखा निर्माण का केंद्र माना जाता है। यहाँ आपको काफी चुनौतीपूर्ण कार्य करने पड़े होंगे?
बिल्कुल, यहाँ तीन ज़िलों के क्षेत्र में 650 फैक्टरियाँ और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दो से ढाई लाख कर्मचारी हैं। वर्ष 2012 में जिस दिन मैं वहाँ पहुँचा था, उसके दूसरे दिन ही एक बहुत बड़ी दुर्घटना घटी। हादसे में 56 लोगों की मौत हुई थी और 110 लोग झुलस गये थे। मुझे इस घटना का जाँच अधिकारी नियुक्त किया गया। यह मेरे लिए बड़ी चुनौती थी। जो कुछ तथ्य सामने आये, वह आँख खोलने वाले थे। बिरधा नगर, तिरुमलकेली और मदुराई जिलों में फैले इस औद्योगिक इलाके में प्रतिवर्ष औसतन 65 दुर्घटनाएँ होती थीं और सैकड़ों लोगों की जान जाती थी। मुझे यहाँ जीवन का एक लक्ष्य मिल गया। लापरवाही से होने वाली दुर्घटनाओं को रोकना और लोगों को इसके लिए जागरूक कर उनकी जान बचाना महत्वपूर्ण कार्य और चुनौतीपूर्ण कार्य था। कर्मचारी जागरूक नहीं थे और मालिकों की इच्छाशक्ति नहीं थी। मृतक परिवारों को कुछ मुआवजा देकर समझ लिया जाता था कि जान की कीमत दे दी, लेकिन यह मेरे लिये दु:खद था। वहाँ कई सारे असोसिएशन थे। मैंने उनकी एक बैठक बुलाई। साथ ही उन्हें सुरक्षा नियमों के पालन के बारे में दिशा-निर्देश दिये, लेकिन लगा कि इतने से काम नहीं चलेगा। कुछ ऐसा करना होगा, जिससे स्थिति में बदलाव हो।

क्या नियमों का पालन करने के लिए कड़े दिशा-निर्देश जारी करना काफी नहीं है?
दुर्घटना की जाँच के दौरान परिस्थितियों की सच्चाई मैं जान चुका था। हालात सुधारना इतना आसान नहीं था। मैंने जिला कलेक्टरों, पुलिस और मेरे विभाग के अधिकारियों के साथ संयुक्त टीमें बनायीं। इन टीमों की रिपोर्ट में पता चला कि बड़े पैमाने पर अवैध गतिविधियाँ चल रही हैं। नियमों का उल्लंघन धड़ल्ले से किया जा रहा है। इसके बाद तत्काल प्रभाव से चार एक्सप्लूजिव फैक्टरियों के लाइसेंस रद्द कर दिये गये। कुछ अधिकारियों को निलंबित भी किया गया। यह उन सब के लिए एक संदेश था, लेकिन इतने से भी काम नहीं चलने वाला था। लाखों लोगों की सुरक्षा का सवाल था। उस दौरान मैंने सुरक्षा जागरूकता सप्ताह (2013) आयोजित करने का निर्णय लिया। सभी संघों की बैठक बुलायी गयी। इसमें सेफ्टी स्लोगन बनाए गये। लगभग 3,500 करोड़ रुपये का यह व्यापार, जिनमें 10 बड़ी कंपनियाँ थीं। इनका कारोबार 300 करोड़ रुपये का था। इन सभी फैक्टरियों को सुरक्षा सप्ताह का हिस्सा बनाया गया। इसके उद्घाटन समारोह में स्थानीय सांसद और विधायकों को आमंत्रित किया गया। फैक्टरियों में प्रतिदिन सुबह काम शुरू करने से पहले शपथ लेने का सिस्टम बनाया गया कि वे नियम और सुरक्षा तत्वों का पालन करेंगे। इसके अलावा शपथ के अवसर पर संबंधित कंपनियों के डॉयरेक्टरों का रहना अनिवार्य किया गया। फैक्टरियों में सुरक्षा नियमों का प्रदर्शन करना तथा उस पर हस्ताक्षर करने का भी नियम बनाया गया। कार्यक्रम में आईआईएम, आरईसी तथा आस-पास के इंजीनियरिंग कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों से विशेषज्ञों को आमंत्रित कर प्रतिदिन एक अलग विषय पर व्याख्यान आयोजित किया जाने लगा। दूसरी ओर नियमों का उल्लंघन करने वालों की जाँच जारी रखी गयी। इस दौरान 156 फैक्टरियों में गंभीर उल्लंघन पाये गये। उन्हें सुधरने अथवा कार्रवाई का सामना करने का विकल्प रखा गया। हमारी संयुक्त टीमें इस तरह सीधे हज़ारों कर्मचारियों तक पहुँचीं और केमिकल व विस्फोटक के सुरक्षित उपयोग के बारे में कर्मचारियों को समझाया गया। महिला मज़दूरों ने फैक्टरी परिसर में रंगोली द्वारा सुरक्षा निमयों के पालन का संदेश दिया। बाइस रैलियाँ निकाली गयीं। प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सुरक्षा नियमों पर क्वज़ि, चित्रकला एवं निबंध प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। ग्रामों में नाटकों का मंचन किया। हमारी टीमें कॉलेज के विद्यार्थियों के साथ मंच की तरह बने वाहनों में जाते और फ्लड लाइट में नाटकों का मंचन करते। सुरक्षा नियमों को आधार बनाकर कई नाटक विशेष रूप से लिखे गये। कई लोक कलाकार भी हमारे साथ आ गये। एक नाटक बहुत दिलचस्प था। यमराज बुलेट पर बैठकर आता है और लोगों को अपने साथ चलने को कहता है। जब उससे इसका कारण पूछा जाता है, तो वह कहता है कि जो भी काम के दौरान मोबाइल फोन पर बात करेगा, सिगरेट पिएगा या किसी तरह की लापरवाही करेगा, वह उसे अपने साथ ले जाएगा।

इन सभी गतिविधियों के क्या परिणाम सामने आये?
जहाँ प्रतिवर्ष औसतन 65 दुर्घटनाएँ होती थीं, उसे उस वर्ष शून्य पर लाने में सफलता मिली। पत्र-पत्रिकाओं में भी इसे गंभीरता से लिया गया। यह सही है कि ऐसा करने में कुछ बाधाएँ होती हैं। दोस्त कम दुश्मन अधिक हो जाते हैं, लेकिन जहाँ लाखों लोगों की सुरक्षा का मामला हो, वहाँ कुछ ठोस कदम उठाने पड़ते हैं। एक स्थनीय पत्रिका ने उस वर्ष `मैन ऑफ दि इयर' का अवॉर्ड मेरे नाम घोषित किया। यह अलग बात है कि मैं उसे ग्रहण करने के लिए नहीं गया, क्योंकि मुझे लगा कि मैंने तो बस एक जिम्मेदार अधिकारी के रूप में अपना काम किया है।
हैदराबाद में आप किस तरह की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं?
शिवकाशी के बाद मैंने दो वर्ष जयपुर में भी काम किया था। जून, 2015 में मेरा स्थानांतरण हैदराबाद हुआ। यहाँ भी हमारे विभाग की जिम्मेदारी मूल रूप से पेट्रोलियम और एक्सप्लूजिव सामग्री के निर्माण एवं उपयोग क्षेत्र में सुरक्षा मानकों पर अमलावरी को अनिवार्य बनाना है। तेलंगाना में रंगारेड्डी, मेदक और नलगोंडा में बड़ी फैक्टरियाँ हैं, जहाँ माइनिंग उद्देश्य से एक्सप्लूजिव तैयार किया जाता है। लगभग 11 ग्रेनाइट फैक्टरियाँ हैं। इसके अलावा पेट्रोल पंप तथा क्रॉस कंट्री पाइप लाइन और 4 ऑयल डिपोट हैं। 4 एलपीजी बॉटलिंग सेंटर हैं। इसके अलावा फार्मास्युटिलक उद्योग हैं, जहाँ सुरक्षा मानकों की जाँच का काम होता है। 

दीपावली को देखते हुए आपका विभाग किस तरह से काम कर रहा है?
पुलिस और स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर स्थायी और अस्थायी पटाखा विक्रेताओं की बैठक बुलाकर उन्हें आवश्यक दिशा-निर्देश दिये जा रहे हैं। दरअसल इस बार कड़े निर्देश दिये गये हैं कि अस्थायी पटाखों की दुकानें मैदानों में ही लगायी जाएँ। एक मैदान में 50 से अधिक दुकानें नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा आमने-सामने दुकान नहीं होनी चाहिए। बिजली का प्रबंध वॉयरिंग केबल द्वारा किया जाना चाहिए। प्रत्येक दुकान पर 2 ड्राइप केमिकल पॉउडर, 2 वॉटर  और 2 रेत के बकेट तथा मैदान में एक फॉयर टेंडर उपलब्ध रहे। हैदराबाद में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 1 लाख लोग इस कारोबार जुड़ते हैं। उनकी और वहाँ आने वालों की सुरक्षा अनिवार्य है। इस संबंध में जोनल स्तर पर सभी उच्च पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक की जा रही है, ताकि नियमों को प्रभावी रूप से अमल में लाया जा सके। लोगों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वे फुटपाथों तथा भीड़-भाड़ वाले बाज़ारों में पटाखे खरीदने और बेचने को प्रोत्साहित न करें।

आपको नहीं लगता कि यह सेवा जोखिम भरी है, जहाँ हर समय लोगों से पंगा लेना पड़ता है?
यह बात सही है कि इस कारोबार में काफी प्रभावशाली लोग हैं, लेकिन हर काम की अपनी चुनौतियाँ हैं। जब सरकारी सेवा में काम कर रहे होते हैं, तो किसी भी स्थिति से बाहर निकलने का पैशन होना चाहिए। जब आप पर लाखों लोगों की सुरक्षा का भार हो, तो चुनौतियों का मुकाबला करना आना चाहिए। मेरा उद्देश्य यही है कि लापरवाही से होने वाली दुर्घटनाओं को शून्य तक ले जाऊँ, ताकि श्रमिक खुशी के साथ काम करें और उसके श्रम का अच्छा परिणाम मिले। वह अपनी बूढ़ी माँ का ख्याल रख सके तथा उसकी पत्नी असामयिक वैधव्य का सामना न करे। कोई बच्चा अपने पिता के प्यार-दुलार को न तरसे। 

युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?
यही कि जोखिम भरे काम में अगर हों, तो निडरता का दामन न छोड़ें। यदि हम डरेंगे, तो कभी आगे नहीं बढ़ेंगे। कुछ रचनात्मक करना है, तो अकेले से नहीं होगा। काम करने वालों की एक टीम बनाएँ। ईमानदारी और पैशन से काम करें। हर क्षेत्र में दोस्त भी होंगे और दुश्मन भी, लेकिन पूरी क्षमता के साथ आगे बढ़ना चाहिए। हमारी मेहनत के दम पर सभी रास्ते खुलते जाएँगे।

Comments

  1. Saleem...... Excellent interview..
    Write one everyday on any subject which help society.
    ....jainkamal. editor.. Mumbai...

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    1. शुक्रिया कमल भाई कोशिश कर रहा हूँ।

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