....और पिता के लिए दरवाज़ा खोलने वाली बेटी का जश्न


जब हम कला की बात करते हैं तो अक्सर इस बात पर बहस करने लगते हैं कि कला केवल कला के लिए है मनोरंजन के लिए या फिर कला और साहित्य समाज के लिए भी है।  विद्वानों ने जमकर इस मुद्दे पर चर्चा की है। अधिकतर लोगों का मानना है कि कला का मनोरंजन पक्ष प्रबल हैलेकिन कुछ लोग हैंजो इस बहस से परे अपनी कला को पूरी तरह से समाज को समर्पित किए हुए हैंजो अपनी कलात्मक प्रतिभा से समाज को जागरूक करने में लगे हुए हैं। बात भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के गीत और नाटक विभाग में काम करने वाले कलाकारों की है। इस विभाग की हैदराबाद शाखा ने इस सप्ताह  स्वच्छ भारत पखवाड़े की शुरूआत की है। इस कार्यक्रम के उद्घाटन कार्यक्रम में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ विषय पर अपने विचार रखने का मौका मिला। इस विषय पर सोचते हुए मुझे अचानक एक कहानी याद आई।  कहानी बहुत पुरानी भी नहीं है। बिल्कुल नई भी नहीं।

कहानी कुछ इस तरह है कि शादी के बाद पहली रात में नये नवेले जोड़े ने  तय किया कि आज की रात वह अपने कमरे का दरवाजा बंद करने के बाद चाहे किसी की आवाज़ आये नहीं खोलेंगे। थोड़ी देर बाद  दूल्हे के मां बाप नये जोड़े को बधाई देने के लिए आये और उन्होंने दरवाज़ा खटखटाया  दूल्हे ने फैसले के अनुसार दरवाज़ा नहीं खोला। कुछ देर बाद दुल्हन के माता-पिता नये जोड़े को मुबारकबाद देने के लिए वहाँ आये। उन्होंने भी दरवाज़ा खटखटाया। जैसा की फैसला किया गया था, पहले तो लड़की ने सोचा के वह भी दरवाज़ा नहीं खोलेंगेलेकिन उसके दिल में ख्याल आया कि वह अपने मां बाप के साथ ऐसा कैसे कर सकती है और फिर उसने फैसले की परवाह किए बगैर दरवाज़ा खोल दिया। रात गुज़र गई। कई साल गुज़र गये। इस जोड़े को चार लड़के हुए और जब पांचवीं बार लड़की का जन्म हुआ तो बाप ने एक बड़ी पार्टी रखी और अपने सारे रिश्तेदारों और दोस्तों को बुलाया। पत्नी हैरान थी कि चार बेटों के जन्म पर पति ने कोई पार्टी या बड़ी दावत नहीं की थी और अब बेटी पैदा होने पर उसने पार्टी की। जब उसने अपने पति से इसके बारे में पूछा तो उसने बड़ी ही प्रसन्नता से कहा कि पार्टी क्यों न करुँ, जश्न क्यों न मनाऊँ मेरे लिए दरवाज़ा खोलने वाली का जन्म हुआ है।


जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा के एक पिता से प्रेरणा लेकर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की थी तो  देश की बेटियों को बचाने का और पढ़ाने का मिशन उनके सामने था। आज उस मिशन को साल होने जा रहे हैं और देशभर में इस विषय पर काम हो रहा है सरकार का गीत और नाटक विभाग इस कार्यक्रम के लिए कई सारे कार्यक्रम बना रहा है। हैदराबाद में भी यहाँ के कलाकारों ने काफी अच्छे कार्यक्रम बनाए हैं। पखवाड़े के उद्घाटन समारोह पर इन कलाकारों ने कई रूपक और छोटे-छोटे नाटक तेलुगु में प्रस्तुत किये।  नाटकों का आशय लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरुकता लाना और बेटी का महत्व बताना है। गीत और नाटक विभाग के लगभग 10 कलाकारों ने बहुत ही सुंदर ढंग से तनिकेला भरनी के तेलुगू नाटक का संक्षिप्त रूप बनाया हैजिसमें बेटी की शिक्षा आत्मनिर्भरता और फिर बेटी के जन्म पर समाज में व्याप्त विचारधारा  तथा कुरीतियाँ और नकारात्मक सोच और रवैये पर चोट की है। एक नाटक के दो दृष्य काफी प्रभावित करने वाले रहे। एक दृष्य में लड़की का पिता प्रश्न उठाता है कि यदि वह इंटर की शिक्षा पूरी करेगी तो उसे डिग्री पढ़ा लिखा लड़का तलाश करना पड़ेगा और यदि वह स्नातकोत्तर तक पढेगी तो पीएचडी करने वाले लड़के को उसके विवाह के लिए ढूंढ़ना पड़ेगा और अगर बेटी पीएचड़ी करे तो फिर उसके विवाह के लिए लड़का ही नहीं मिलेगा।
बेटी इस बात का उत्तर कुछ यूँ देती है कि उसके विवाह पर जो रुपया खर्च करने के लिए रखा गया है वह रुपया उसकी शिक्षा पर खर्च करे। सारी समस्याओं का हल निकल आएगा। दूसरे दृष्य में एक पिता को अपना वंश चलाने के लिए बेटे की ज़रूरत है और वह इसके लिए कानून के विरुध बच्चे के लिंग की पहचान करवाता है और बालिका की पहचान होने पर उसके भ्रूण हत्या पर भी तैयार हो जाता है जिसे अपने लिए अच्छी पत्नी चाहिएउसे अपने घर में बेटी नहीं चाहिए... ऐसे समाज पर चोट करते हुए स्त्री का किरदार उस समाज का तिरस्कार करने की हिम्मत पैदा करता हैजो बेटी की हत्या करने पर विचलित नहीं होता।
स्वच्छता के रखरखाव तथा नारियों की सुरक्षा पर कलाकारों के इस ग्रूप ने काफी अच्छी नाटिकाओं का मंचन किया। यह मंचन राज्य भर में किया जाएगा।

विभाग के प्रबंधक कुलदीप सागर के निर्देशन में इस कार्यक्रम में डॉ. सूरभी लक्ष्मी शारदा,  हर्षितामृणालिनी,  रविंद्र तेजस्वीडॉ. विजय कुमारश्रीधररंगन्नाहर्षवर्धनसत्यनारायण एवं अन्य कलाकारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


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