'तुर्रेबाज़ खान' ...जब 1857 की आवाज़ हैदराबाद तक पहुँची थी

उनके पास हैदराबादी का अर्थ केवल हैदराबादी बोली नहीं है, बल्कि हैदराबाद की संस्कृति, उसका इतिहास और हैदराबादियत से जुड़े बहुत सारे विषय हैं। यहाँ बात मुहम्मद अली बेग की है। मुहम्मद अली बेग बीते एक से डेढ़ दशक में रंगमंच की दुनिया में हैदराबाद से उठा एक ऐसा नाम है, जिसे बहुत तेज़ी से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक खास पहचान मिली है। वे हाल ही में स्कॉटलैंड के एडिनबरा शहर में आयोजित रंगमंच महोत्सव में भाग लेकर लौटे हैं। वे बताते हैं कि यह दुनिया का सबसे बड़ा रंगमंच उत्सव माना जाता है। इस उत्सव के दौरान एडिनबरा शहर में 290 स्थानों पर रंगमंच खेला गया, जिसमें 15 से 20 लोगों से लेकर 800 से 1000 दर्शकों ने भाग लिया। 3000 मंचन हुए। इन मंचों में न केवल बड़े-बड़े प्रेक्षागृह थे, बल्कि स्कूल और कॉलेज परिसरों के अलावा किसी चर्च का परिसर और किसी घर का आंगन भी था। 2 मिलियन से अधिक लोगों ने इसे देखा। ऐसे में हैदराबाद से क़ादर अली बेग थियेटर फाउण्डेशन के दो नाटकों का वहाँ मंचन किया जाना उनके लिए गर्व का विषय रहा।
मुहम्मद अली बेग हैदराबाद से अपने दो नाटक लेकर एडिनबरा गये। नाटकों में एक था, `कुली दिलों का शहज़ादा' और दूसरा `तुर्रेबाज़ा खान'। कुली क़ुतुब शाह को तो लगभग सब जानते हैं, लेकिन तुर्रेबाज़ा खान का नाम पहली बार उस समय इतिहास के पन्नों से बाहर निकल कर सामने आया था,  जब देश 1857 की क्रांति के डेढ़ सौ वर्ष मना रहा था। तुर्रेबाज़ खान ने हैदराबाद में अंग्रेज़ों के दोस्त रहे नज़िाम प्रशासन की बग़ावत करते हुए, अंग्रेज़ों की कोठी (वर्तमान में कोठी वुमेंस कॉलेज) पर हमले की योजना बनायी थी। बेग बताते हैं कि उन्होंने इस नाटक का अंतर्राष्ट्रीय प्रीमियर एडिनबरा में किया और वे शीघ्र ही दिल्ली में इसका भारतीय प्रीमियर करने जा रहे हैं।
इस नाटक के बारे में वे बताते हैं कि तुर्रेबाज़ खान ने मौलवी अलाउद्दीन खान और चीदा खान
के साथ 500 रोहिल्ला आर्मी को लेकर ब्रिटिश रेसिडेंसी (अंग्रेज़ों की कोठी) पर हमला करने की तैयारी कर ली थी। कोठी के सामने बब्बन खान और जयगोपाल दास ने उनकी मदद के लिए अपने मकान खाली कर दिये थे, लेकिन नज़िाम के प्रधानमंत्री सालारजंग ने इसकी सूचना ब्रिटिश रेसिडेंसी को दी और उन्होंने इस क्रांति को नाकाम बनाते हुए, उन मकानों को उड़ा दिया और तुर्रेबाज़ खान को गिरफ्तार कर लिया। वे जेल तोड़कर फरार हो गये, लेकिन बाद में कुछ साल बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया। बेग का मानना है कि वे इस नाटक के द्वारा 1857 की क्रांति में हैदराबाद की भूमिका को दुनिया के सामने पेश करना चाहते थे, क्योंकि इतिहासकारों ने इस अध्याय में हैदराबाद के नाम की हमेशा उपेक्षा की है। वे बताते हैं कि `कुली दिलों का शहज़ादा' हालाँकि एक राजकुमार की प्रेम-कहानी है। ये कहानी इसलिए भी कनाडा, अमेरिका और यूरोप में काफी पसंद की गयी, क्योंकि इसमें हैदराबाद तो है ही साथ ही अंतर्राष्ट्रीय कहानी के तत्व भी मौजूद हैं।
मुहम्मद अली बेग को रंगमंच विरासत में मिला। बचपन में अपने पिता क़ादर अली बेग के साथ रंगमंच का काम करते रहे, लेकिन करिअर की शुरुआत में उन्होंने रंगमंच के बजाय विज्ञापन फिल्मों का रुख किया और फिर लौट कर रंगमंच की ओर आये। वे मानते हैं कि रंगमंच को क़रीब से देखने वाला किशोर, दूर रह कर आलोचनात्मक दृष्टि रखने वाला युवा तथा अपने पिता को श्रद्धांजलि देने के लिए अपने शहर में रंगमंच के पुनरुत्थान के उद्देश्य से लौटने वाला प्रौढ़ उनमें मौजूद है।
बेग कहते हैं, `मेरे थियेटर में रहने के दो कारण हैं- एक, पिताजी को श्रद्धांजलि और दूसरा, हैदराबाद और हैदराबादियत को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच पर प्रस्तुत करना। यही वजह है कि एक ओर देश और दुनिया की रंगमंचीय शख्सियतों को हैदराबाद से जोड़ा तो दूसरी ओर हैदराबादी विषयों पर रंगमंच खेला। हैदराबादी हीरोज़ के बारे में दुनिया को बताया, चाहे वह क़ुली हो या तुर्रेबाज़ खान। हमने एक ऐसे दौर में काम शुरू किया था, जब हैदराबाद में साल भर में दो-चार प्रोडक्शन ही होते थे,जबकि आज मुझे खुशी है कि हर हफ्ते एक नया प्रोडक्शन सामने आ रहा है।'
मुहम्मद अली बेग बताते हैं कि अभिनय सिखाया नहीं जा सकता, लेकिन उसे निखारा ज़रूर जा सकता है। साथ ही उनका कहना है कि रंगमंच उदास विषयों पर, उदास जगहों पर, कुछ गिने-चुने लोगों के सामने प्रस्तुत करने की कला नहीं है, बल्कि कला को सही ढंग से प्रस्तुत करने की योग्यता रखने वाले लोग वाणिज्यिक रूप से भी इसे बड़ी सफतला के साथ जी सकते हैं। वे कहते हैं, `मैं चाहता हूँ कि नाटक को खुशहाल बनाऊँ और ऐसा हो भी रहा है। लोग महंगे टिकट खरीद कर नाटक देखने आ रहे हैं। चाहे वह नाटक गंभीर विषयों पर हों या फिर हास्य पर, उनका लक्ष्य दर्शक होने चाहिए। नाटककार के लिए यह समझना ज़रूरी है कि शेक्सपियर के नाटक संग्रहालय या पुस्तकालय में रखने के लिए नहीं थे, बल्कि उन नाटकों से वे अपने बिल अदा करते थे।'

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