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Showing posts from April, 2015

तीसरी आँख

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भला हम कितने दिन जीते हैं? किसी के लिए भी इसके बारे में ठीक-ठीक बताना शायद मुश्किल होगा, लेकिन यह तो पूरे विश्वास के साथ बताया जा सकता है कि एक न एक दिन इस नश्वर शरीर का अंत होना है। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण होगा कि हमने इस जीवन में न शरीर के बारे में कुछ जाना और न ही आत्मा के बारे में। न ही ऐसे लोगों से मिले जो हमें इनमें छुपी शक्तियों के बारे में बता सकें। शरीर और आत्मा पर पड़े राज़ के पर्दों को हटा सकें। जीवात्मा के गंतव्य का ज्ञान दे सकें। चेतना के चक्षु उघाड़ सकें। उस सर्वश्रेष्ठ को प्राप्त करने की चाह जगा सकें, जिसका हिस्सा आत्म में छुपा है। उस साधक को जगा सकें, जो कहीं भीतर छुपा बैठा है। उस तीसरी आँख से देखने की क्षमता को बलवान बना सकें, जो हमारे भीतर रहकर भी जागफत नहीं है।  यह सब किसी गुरू की कफढपा से ही हो सकता है। कोई महा आत्मा ही सच्चे मार्ग पर अग्रसर कर भीतरी शक्तियों को उजागर करने का मंत्र प्रदान कर सकती है।

अलग पहचान की राह में बिखरे रंग

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  आर्ट   एट   तेलंगाना     हम तेज़ी से ग्लोबल होते जा रहे है। सारा संसार एक वैश्विक गांव में परिवर्तित होता जा रहा है। इस में कोई दो राय है भी नहीं , लेकिन क्या हम इस वैश्विक दौड़ में अपना घर , अपनी गली , मोहल्ला , अपनी स़ड़क , अपना शहर , प्रांत और प्रदेश , अपनी संस्कृति जैसे शब्द बेमानी हो जाएँगे ? `आर्ट एट तेलंगाना ' इसी प्रश्न के इर्द गिर्ध घूमती दुनिया है। तेलंगाना राज्य के गठन और उसके बाद बनी सरकार द्वारा अपने इतिहास की खोज के लिए जिन स्रोतों की खोज , पहचान , संरक्षण और संग्रहण का काम शुरू किया गया , उसमें ` आर्ट एट तेलंगाना ' भी एक रास्ता है। राज्य की स्थापना के बाद मनाए गये पहले स्वतंत्रता दिवस समारोह के आयोजन स्थल की तलाश से ही इस भावना का मार्ग प्रशस्त हुआ। सरकार चाहती थी कि जहाँ यह जश्न मनाया जाए , उस धरती में स्थानीयता की पहचान हो। भला गोलकोंडा से अच्छा स्थान और क्या हो सकता था। इसी बीच तेलंगाना के कलाकारों