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Showing posts from 2016

लेखक, कवि, शायर और शोध सुधारक डॉ.गिरिराज शरण अग्रवाल से एक मुलाकात

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गिरिराज शरण अग्रवाल हिन्दी के जाने-माने साहित्यकार और विद्वान हैं। उन्होंने देश भर में हिन्दी की शोध प्रक्रिया की खामियों को उजागर करने और उसे नयी दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे शोध दिशा जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका के संपादक हैं। डॉ. गिरिराज का जन्म 14 जुलाई, 1944 को संभल (मुरादाबाद, उत्तर-प्रदेश) में हुआ। एम.ए. और पीएच.डी. की शिक्षा उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से पूरी की। वे कुछ दिनों पत्रकारिता में रहे और विभिन्न कॉलेजों में शिक्षक की भूमिका भी निभाई। सेवानिवृत्ति के बाद वे स्थायी रूप से लेखन और संपादन से जुड़ गये। खास बात यह है कि वे अपने दौर के विख्यात हास्य व्यंग्य कवि काका हाथरसी के छोटे दामाद हैं। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में उनके नाम हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि शोध के क्षेत्र में चोरी और सीना जोरी की परंपरा को बेनकाब करने में उनकी बड़ी भूमिका रही। इन दिनों शोध दिशा नाम से एक पत्रिका का संपादन भी करने लगे हैं।  हाल ही में मंगलूर में प्रेमचंद के साहित्य के पुनर्मूल्यांकन पर आयोजित संगोष्ठी में उनसे मुलाकात हुई। इस दौरान उनके अनुभवों पर खुलकर बातचीत करने का मौका मि

बेटियों को बेचने-खरीदने वाला मर्द कैसा ... अनुराधा कोईराला

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      सााहिर लुधयानवी ने कहा था `औरत ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया, जब जी चाहा मसला कुचला, जब जी चाहा दुत्कार दिया।' सामान्य शिक्षिका अनुराधा कोईराला जिस्मों फरोशी का व्यापार करने वालों के खिलाफ लड़ने वाली महिला है। उन्होंने दुनिया भर से 35 हज़ार से अधिक नेपाली महिलाओं, बालिकाओं एवं बच्चों को मानव तस्करों से मुक्त कराया। इतना ही नहीं, बल्कि समाज में उनकी वापसी का मार्ग भी प्रशस्त किया। अनुराधा का जन्म भारतीय सेना में कर्नल रहे नेपाली अधिकारी के घर हुआ। उनके दादा नेपाल के ग्राम प्रमुख थे। चार साल की उम्र में उनका दाखिला कान्वेंट स्कूल में हुआ। 18 साल की उम्र तक अनुराधा दार्जिलिंग और कोलकाता में रहीं। इसके बाद वे नेपाल चली गयीं। यहाँ पर उनका विवाह (प्रेम) मशहूर कोईराला परिवार में हुआ, लेकिन अधिक समय तक परिवार के साथ नहीं रह पायीं। अपने छोटे से बेटे को लेकर उन्होंने अपनी अलग जिंदगी बसायी। एक दिन नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर के पास टहलते हुए उन्होंने कुछ महिलाओं से भीख माँगने का कारण जाना, तो उन्हें आश्चर्य हुआ। उन औरतों के बारे में जब कुछ करने का मन बनाया, तो कदम पीछे

परिवार से टूटकर नहीं निखरते नेतृत्व के गुण: ममता बिनानी

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ममता बिनानी इंस्टीटयूट ऑफ कंपनी सेक्रेट्रीज़ ऑफ इंडिया (आईसीएसआई) की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उनका नाम चार्चित महिला व्यवसायियों में आता है। आईसीएसआई के इतिहास में वह दूसरी राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष हैं। कॉर्पोरेट एवं पेशेवर मुद्दों पर एक अच्छी वक्ता के रूप में उन्हें पहचाना जाता है। ममता बिनानी का जन्म कोलकाता के एक राजस्थानी परिवार में हुआ। उनके पिता कास्ट अकाउंटेंट हैं। कॉमर्स में डिग्री के बाद उन्होंने सीएस की परीक्षा लिखी, लेकिन परिणाम आने से पहले ही उनका विवाह हो गया। ससुराल में प्राथमिक रूप से उनके आगे पढ़ने की संभावनाएँ शून्य हो गयीं थीं, लेकिन जब परीक्षा परिणाम आया, तो उन्होंने महिला उम्मीदवारों में प्रथम स्थान परप्त किया। इससे उनके भविष्य में नयी रोशनी पैदा हुई। उन्होंने कंपनी सेक्रेट्री के पेशे में एक स्वतंत्र व्ययवसायी के रूप में कई बड़े उद्योगों को अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। मुख्य प्रबंधक स्तर के अधिकारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रशिक्षक के रूप में उनका नाम कई कंपनियों की सूची में शामिल है। वर्ष 2010 में उन्हें आईसीएसआई की पूर्व प्रांतीय काउंसिल का चेयरपर्सन चुना गया। य

अदनान सामी के 160 किलो वजन घटाने का राज क्या है?

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भारत की नागरिकता प्राप्त करने वाले पाकिस्तानी कलाकार अदनान सामी केवल अपने गायन को लेकर ही ख्याति नहीं रखते, बल्कि अपने 160 किलो वज़न घटाने के विश्व रिकॉर्ड को लेकर भी शोहरत रखते हैं। उनके अधिकतर प्रशंसकों को यह नहीं मालूम कि उन्होंने अपना वज़न क्यों और कैसे घटाया। कैसे का जवाब तो वो कई मौकों पर दे चुके हैं, लेकिन आज अपने लज़ीज़ और चटखारेदार व्यंजनों के लिए मशहूर शहर हैदराबाद में उन्होंने बताया कि वज़न घटाने के पीछे की वजह स्वास्थ्य से अधिक अध्यात्म थी। इसके अलावा उनके पिता भी इसका मुख्य कारण रहे। पिता ने उनसे कहा था कि वे जब इस दुनिया से अलविदा कहें, तो उनका पुत्र (अदनान समी) उनके सामने जिंदा रहे। मोटापे और अस्वस्थता के कारण वह उन्हें मरता नहीं देखना चाहते थे। अदनान सामी वाईएफएलओ के वेलनेस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए हैदराबाद आये थे। समारोह के बाद बातचीत के दौरान अदनान ने अपनी ज़िंदगी से जुड़ी कई स्मृतियों को ताजा किया। उन्होंने खासकर अपने 160 किलो वज़न घटाने की घटना पर कहा कि एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए वे लंदन गये थे। पिताजी को कैन्सर था, इसलिए वे अपनी स्वास्थ्य जाँच के ल

मुझसे बहुत प्रेम करती थीं महादेवी वर्मा- जसराज

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संगीत मार्तंड पंडित जसराज आज भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में दिग्गज संगीतज्ञ माने जाते हैं। जब अपने दौर के बड़े संगीतकारों में वे युवा थे, संगीत की दुनिया में उभरते सितारे थे, संगीत रसिकों को अपनी प्रतिभा से प्रभावित कर रहे थे, तभी हिन्दी साहित्य की समरज्ञी मानी जाने वाली महादेवी वर्मा से उनकी मुलकात हुई। महादेवी वर्मा उन्हें अपना अनुज मानती थीं। पंडितजी जब भी इलाहबाद जाते, उनसे मिलना नहीं भूलते। एक दौर ऐसा भी था, जब महादेवी वर्मा ने लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दिया था। इसके बावजूद जब उनके अनुज (पंडित जसराज) उनसे मिलने जाते थे, तो वह ज़रूर मिलती थीं। आज पंडित जसराज 86 वर्ष के हो चुके हैं। आज भी उन्हें महादेवी वर्मा से हुई मुलाक़ातें याद हैं। वे कहते हैं, `महादेवी वर्माजी मुझे बहुत प्रेम करती थीं और मुझे अपना अनुज मानती थीं।' पंडित जसराज ने 2 दिसंबर को हैदराबाद मे विशेष बातचीत के दौरान अपनी बहुत सारी यादों को ताज़ा किया। वर्ष 1960 की एक घटना का उल्लेख करते हुए संगीत मार्तंड ने कहा कि ग्वालियर के तानसेन महोत्सव में उन्हें पहली बार बुल

संगीत महोत्सव और पंडित जसराज की यादें

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ये फ़न ज़रा आगे की चीज़ है, इसे हमेशा आगे की मंज़िलों में पा सकते हैं।  ................ फतेह मैदान से सीसीआरटी तक की यात्रा (पंडित जसराज फिर अपने शहर आये हैं। अपने पिता और बड़े भाई की यादें ताज़ा करने और खूब सारे कलाकारों के साथ हैदराबाद के संगीतप्रेमियों को मंत्रमुग्ध करने के लिए । दो साल पहले इसी सीसीआरटी में पंडित मोतिराम पंडित मणिराम संगीत समारोह था और इसी दौरान यानी नवंबर 2014 में पंडितजी से हुई बातचीत की एक फाइल हाथ लगी है। आप के लिए पेश है।) फ़तेह मैदान क्लब में बैठे-बैठे पिता की याद में कुछ करने की सोच साकार रूप लेगी और उसकी उम्र में चार दशक से अधिक जुडेंगे साल जुड़ेंगे शायद पंडित जसराज ने नहीं सोचा था, लेकिन आज पंडित मोतिराम पंडित मणिराम संगीत महोत्सव हैदराबाद की सांस्कृतिक रगों में खून बनकर दौड़ता है। यह बिल्कुल अतिशयोक्ति नहीं है कि लोग इस महोस्तव का इन्तेज़ार करते हैं। इस बार का इन्तेज़ार भी समाप्त हुआ। गुरुवार की दोपहर किशन राव साहब को फोन किया तो पता चला कि पंडितजी हैदराबाद आ चुके हैं और तीन बजे पर्यटक भवन में मुलाक़ात होगी। बस कुछ ही मिनट में मैं उस हॉल मे

खुद को साबित करने पर ही मिलता है सम्मान : रवींद्र गुप्ता

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रवींद्र गुप्ता दक्षिण मध्य रेलवे के महाप्रबंधक हैं। रेल मंत्रालय ने पदोन्नति देकर उन्हें रेलवे बोर्ड सदस्य बनया है। वे 1975 बैच के स्पेशल क्लास अपेरेंटिस (एससीआरए) अधिकारी हैं। इलाहाबाद में जन्मे, पले-बढ़े रविंद्र गुप्ता ने इससे पूर्व पश्चिमी रेलवे के चीफ मेकॉनिकल इंजीनयर, जमालपुर वर्कशॉप के मुख्य प्रबंधक सहित रेलवे के विभिन्न जोनों में महत्वपूर्ण पदों पर सेवाएँ दी हैं। उन्होंने तेज़ रफ्तार ट्रेनों तथा रेलवे सुरक्षा के मामलों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशिक्षण प्राप्त किया है। रेलवे में होने के बावजूद जल संरक्षण तथा तालाबों के पुनरुद्धार में उनकी खास दिलचस्पी है। कई स्थानों पर उन्होंने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण उप्लब्धियाँ प्राप्त की हैं। सप्ताह के साक्षात्कार में उनके साथ हुई बातचीत के कुछ अंश इस प्रकार हैं... रेलवे में आना इत्तेफाक रहा या योजनाबद्ध तरीके से सेवा में प्रवेश किया? इसे आप लक्षित ही कह सकते हैं। अगर मैं समय में कुछ पीछे जाऊँ, तो मुझे याद आता है कि मैं आईआईटी  से इंजीनियरिंग करना चाहता था, लेकिन रास्ता दूसरी ओर मुड़ गया। पिताजी उन दिनों गोरखपुर में थे। वे राज्

विकलांगों के मसीहा और जादुई कहानिकार अली बाक़र

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(अली बाक़र से मेरी मुलाक़ात 2007 में हुई थी। शायद वह उनकी आख़री भारत यात्रा थी। उसके बाद उनके दुनिया से चले जाने की खबर आयी। उन दिनों उर्दू समाचार पत्र 'एतेमाद' के लिए लिया गया उनका साक्षात्कार  पेश है। इसमें बहुत सी पुरानी यादें हैं और उन यादों में बसा हैदराबाद और लंदन भी।) हैदराबाद के एक प्रतिष्ठित घराने में आँखें खोलीं। पिता उन्हें अपनी ही तरह वकील बनाना चाहते थे, लेकिन में वकालत की शिक्षा अधूरी छोड़कर उन्होेंने मानव जाति के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उसमें शोध के नये पहलू तलाश किये कि जिससे न सिर्फ हिन्दूस्तान व यूरोप, बल्कि यू एन ओ में भी अपनी शख़ि्सयत का असर छोड़ा। साठ और सत्तर के दशक में। विकलांग बच्चों की कल्याण के लिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार के लिए काम किया और अपने देेेश के लिए जब इसी काम की ज़रूरत पड़ी तो उन्होंने अपने आपको पेश किया। एनआईएमएच `नेशल इंस्टीट्यूट आफ मेन्टल्ली हैंडिकैप, को हैदराबाद में स्थापित करने और विकलांगो के अधिकारों  के लिए क़ानून बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।। उर्दू साहित्य में एक कहानीकार के रूप में भी उनका नाम सम्मा