अपने लक्ष्य के साथ टीम को जोड़ना बड़ी चुनौती : आईपीएस एम. रमेश


अतिरिक्त उप-महानिरीक्षक (पुलिस महानिदेशक कार्यालय, तेलंगाना) एम. रमेश का जन्म महबूबनगर जिले में मस्तीपुर नामक गाँव में हुआ। अब यह गाँव नये वनपर्ती जिले में है। उनकी प्राथमिक शिक्षा यहीं से हुई। वे माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए हैदराबाद आये। यहाँ से फिर नागार्जुना रेसिडेंशिनल स्कूल में इंटर की शिक्षा प्राप्त की। स्नातक के लिये वे दिल्ली चले गये। स्नातकोत्तर की शिक्षा के दौरान उन्हें तत्कालीन आंध्र-प्रदेश में ग्रुप-1 अधिकारी के रूप में डीएसपी बनाया गया। डीएसपी गोदावरी खन्नी के रूप में तीन साल तक उन्होंने काम किया। वरंगल के ओएसडी और मुख्यमंत्री के मुख्य सुरक्षा अधिकारी के रूप में भी उन्हें सेवा का अवसर प्राप्त हुआ। प्रदेश की पुलिस सेवा में कई सारे पदों पर कार्य करते हुए आईपीएस के रूप में वे पदोन्नत हुए। अब वे पुलिस महानिदेशक कार्यालय में अतिरिक्त पुलिस उप-महानिरीक्षक पद पर सेवारत हैं। रमेश लिखने का शौक रखते हैं। वे हमेशा खुश रहते हैं। उनका मानना है कि प्रसन्न रहने के लिए दूसरों की मदद करना जरूरी है। वे सिनेमा का शौक भी रखते हैं। उन्होंने तेलंगना पुलिस पर एक डाक्युमेंटरी फिल्म भी बनायी है।
सप्ताह के साक्षात्कार में उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश इस प्रकार हैं...
 इस सेवा में आना इत्तेफाक रहा या फिर योजनाबद्ध तरीके से इसमें प्रवेश किया?
यह इत्तेफाक ही समझा जाएगा, क्योंकि मैंने 1996 में ग्रुप- 1 की परीक्षा लिखी और डीएसपी के रूप में चुना गया। पहली बार परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद किसी और दिशा में जाने का मन नहीं हुआ। स्नातक की शिक्षा के लिए मैं दिल्ली चला गया। दिल्ली यूनिवर्सिटी में स्नातकोत्तर की शिक्षा के दौरान ही मैंने यूपीएससी की प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी। इस दौरान मैंने तत्कालीन आंध्र-प्रदेश में ग्रुप-1 की परीक्षा लिखी और चुन लिया गया। इसके बाद यूपीएससी की ओर जाना नहीं हुआ। इसके लिए कोई अफसोस भी नहीं रहा।
ग्रुप्स की परीक्षाएँ लिखते समय आपके मन में क्या बनने का सपना था?
राज्य की सेवाओं में सबसे ऊँचा पद यही होता है। आरडीओ बनकर जिलाधीश पद तक पहुँच सकते हैं। दरअसल पिताजी चाहते थे कि मैं कलेक्टर बनूँ। वो किसान थे और बहुत छोटी उम्र में उन्होंने मुझे यह सपना दिया। उनका यही ख्वाब मुझे ग्रुप-1 तक ले गया। यह अलग बात है कि मैं राजस्व सेवाओं की ओर न जाकर पुलिस सेवा में रहा, लेकिन इस विभाग ने मुझे काम करने का संतोष दिया।
अधिकतर लोग स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए दिल्ली जाते हैं, लेकिन आप तो डिग्री स्तर की शिक्षा के लिए दिल्ली चले गये?
स्कूल के जमाने में एक बार स्कूली यात्रा में भाग लेकर मैं दिल्ली और नेपाल गया, तभी दिल्ली को देखकर मेरे मन में यह ख्याल आया कि मुझे यहाँ पढ़ना चाहिए। मैं इंटर में प्रथम आया और मुझे छात्रवृत्ति मिल गयी। इस तरह पढ़ने के लिए दिल्ली जाने का ख्वाब पूरा हो गया।
शिक्षा के दौरान की कुछ प्रेरक घटनाएँ?
ऐसी कोई विशेष घटना नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि हर दिन कुछ नया सीखने को मिलता था। दिमाग में हमेशा यह बात रही कि सीखने के लिए कोई उम्र या पद नहीं होता। मैं हर किसी से मुलाकातों में भी कुछ सीखा करता था।
पुलिस की सेवाओं में आने के बाद क्या चुनौतियाँ आपके सामने थीं?
पुलिस की ट्रेनिंग ही चुनौतीपूर्ण थी। जो कुछ इसके बारे में सुना था, वह सब नहीं था। काफी कड़े परिश्रम से ट्रेनिंग के दौरान गुज़रना पड़ा। बेसिक ट्रेनिंग के बाद जब जंगल की ट्रेनिंग तक पहुँचा, तो वह सोच से परे था। पुलिस स्टेशन से आगे कभी नहीं कुछ नहीं जाना, लेकिन मैंने ट्रेनिंग पूरी की। कभी-कभी ऐसा लगता था कि कहाँ आ गया हूँ, लेकिन दूसरे ही पल अपने आपको संभालकर आगे बढ़ जाता था। लगता था कि यह सब जिंदगी का हिस्सा है।
पहली पोस्टिंग की कुछ यादें?
आदिलाबाद में पहली पोस्टिंग हुई। उस दौरान नक्सली आंदोलन अपने चरम पर था। ब्लास्टिंग होती थी। बहुत से साथियों को मैंने इस दौरान खोया। मौत को नज़दीक से देखा। मुझे एक अधिकारी के रूप में ही नहीं, बल्कि इंसान के तौर पर ज़िंदगी में अगर सबसे मुश्किल और दु:खद काम कुछ लगा, तो वह था, अपने साथी पुलिसकर्मी के शहीद होने पर उसका पार्थिव शरीर उसके घर और रिश्तिेदारों को सौंपना। उनके परिवार के सामने जाने के बाद जो मानसिक हालत होती है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। मुझमें हिम्मत है कि बड़े से बड़े अपराधी को पकड़ लाऊँ, किसी भी तरह की कानून व्यवस्था की स्थिति पर काबू पा सकूँ, लेकिन मुझे अपने साथी की शहादत के बाद उसके पार्थिव शरीर के साथ उनके रिश्तेदारों के सामने पहुँचना बहुत मुश्किल स्थिति में पहुँचा देता है। आदिलाबाद से वरंगल आया, तो यहाँ भी कुछ उसी तरह के हालात थे।
एक पुलिस अधिकारी के रूप में आप खुद को दूसरे विभागीय अधिकारियों से किस तरह अलग समझते हैं?
मैं पुलिस को दूसरे विभागीय अधिकारी से अलग नहीं समझता। मुझे लगता है कि मैं समाज का हिस्सा हूँ। समाज के लिए ही पैदा हुआ हूँ और समाज के हित में काम करता रहूँगा।
आपके हिसाब से पुलिसिंग में क्या परिवर्तन आया है?
काफी बड़े परिवर्तन पुलिसिंग में आये हैं। आज पुलिसकर्मी अपने काम को सेवा समझने लगा है, जो बड़ी बात है। यह फोर्स नहीं, बल्कि सर्विस है। बदलाव आया है और आ रहा है और काफी कुछ आना है। यह नज़रिया बदलना है कि हम कुर्सी पर बैठकर कुछ भी कर सकते हैं। हम मंज़िल तक तो नहीं पहुँचे, लेकिन हम उसके रास्ते पर ज़रूर है। हमें काम के नियंत्रण के लिए तकनीकी और साधन चाहिए। सूचनाएँ बढ़ रही हैं। अधिकारियों को रोज़ाना अपटेड होने की ज़रूरत है कि किस तरह काम हो रहा है। अभी यह नहीं हो पा रहा है। साधनों की कमी है, जिसे दूर करने के प्रयास किये जा रहे हैं। किसी भी अधिकारी को अपने पीए से मिलने वाली सूचनाओं पर निर्भर नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे खुद भी संबंधित विषय पर काफी कुछ जानकारी होनी चाहिए। हम समाज के सेवक हैं, तो हमें समाज की उम्मीदों पर खरा उतरना होगा और समाज की ज़रूरतों को पूरा करना होगा।
समाज की उम्मीदों पर खरा उतरने का काम किस हद तक हो रहा है?
आपने देखा कि पिछले दिनों जब भारी वर्षा हुई, तो अन्य विभागीय मिशनरी के साथ पुलिसकर्मी सड़कों पर उतरे और लोगों की सेवा कर रहे थे। सोशल मीडिया पर लोगों ने पुलिस की तारीफ की। यह इसलिए भी हुआ कि पुलिस ने लोगों की समय पर सहायता की।
आपको नहीं लगता कि नयी पीढ़ी में सरकारी नौकरियों में आने का ट्रेंड कम होता जा रहा है? यदि आपसे यह पूछा जाए कि युवाओं को सरकारी नौकरियों में क्यों आना चाहिए, तो आप क्या कहेंगे?
सरकारी सेवाएँ सभी तरह के लोगों के लिए है। यहाँ हर तरह की प्रतिभा रखने वालों की ज़रूरत है। आरक्षण इसीलिए रखा गया है, ताकि समाज के हर वर्ग की भागीदारी इसमें हो। यहाँ आने वाले को यह बताने का अवसर मिलता है कि सरकार लोगों के लिए है। यहाँ आकर लोगों को बता सकते हैं कि हम आपके लिए हैं। मैं चाहता हूँ कि जन हित में काम करने के लिए विभिन्न विभागों में प्रतिस्पर्धा बढ़नी चाहिए।
एक विभाग के मुखिया के रूप में आप अपने मूल्य और अपने विचारों को अन्य कर्मियों तक पहुँचाने में किस मुश्किल का सामना करते हैं?
बहुत मुश्किल होती है। बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पहले मुझे अपने संगठन के मूल्यों के साथ अपने मूल्यों का समन्वय करना होता है। एक ऐसी स्थिति से गुज़रना पड़ता है, जहाँ मेरा और संगठन का मूल्य समान है। इस चुनौती से गुज़रकर जब मैं अपने साथ काम करने वालों तक पहुँचता हूँ, तो चाहता हूँ कि मैं जिस तरह काम करता हूँ, वे भी मेरे उद्देश्य की पूर्ति के लिए काम करें। मैं मेरिट को प्रोत्साहित करता हूँ कि उनके पास जो प्रतिभा है, उसका भी उपयोग करें, लेकिन संगठन के मूल्य काफी महत्वपूर्ण होते हैं। मैं जब भी अपने लोगों से बात करता हूँ, तो मुझे खुशी होती है कि वे मेरी बात समझ रहे हैं। इससे मेरा विश्वास और बढ़ जाता है। इस मामले में मुझे लगता है कि मुझे उनकी भाषा में बात करना चाहिए, ताकि वे मुझे और बेहतर तरीके से समझ सकें। मैंने अपने इस व्यवहार से महसूस किया कि मैं एक अच्छा टीचर बन सकता हूँ।
अगर आप अपने में शैक्षणिक गुण पाते हैं, तो क्या वर्तमान शिक्षण व्यवस्था पर कुछ टिप्पणी करना चाहेंगे?
मैं शिक्षा व्यवस्था पर कोई आलोचनात्मक टिप्पणी नहीं करना चाहूँगा, लेकिन सच यह है कि लोग शिक्षक बनना नहीं चाहते। शिक्षकों का प्रशिक्षण जिस तरह का होना चाहिए, वैसा नहीं है। यही कारण है कि शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। गुरु को एक अच्छा मार्गदर्शक होना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि शिष्य को गुरु ही गुरु दिखाई दे, उसी की बात को वह सुनें। शिष्यों को उनके मूल्यों के साथ आगे बढ़ने में उनकी क्षमताओं को बढ़ाने व प्रतिभाओं को निखारने में गुरु को अपनी भूमिका निभानी होगी। वह बच्चों की कमियाँ तलाश कर उसे दूर करने का प्रयास करे।
आपका पसंदीदा खाना क्या है?
मैं शाकाहारी हूँ या कहिये, तो बन गया हूँ। एक साल से मैंने नॉनवेज खाना छोड़ दिया है।
यह परिवर्तन कैसे हुआ?
बस मुझे लगा कि मटन खाने का मेरा कोटा समाप्त हो गया है, इसलिए इसे छोड़ने का निर्णय मैंने लिया। शाकाहारी खाना शरीर को बेहतर बनाता है। पाचन के लिए शरीर को अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ता है।
युवाओं के लिए कोई संदेश?
खुद पर विश्वास करो और समाज के साथ रहो। विकास अकेले चलने का नाम नहीं है, बल्कि समाज के साथ समाज के हित में आगे बढ़ने का नाम विकास है। समाज में अकेलेपन के कारण आत्महत्याओं और अपराध की प्रवृत्ति बढ़ रही है। युवाओं को समाज के साथ संपर्क बढ़ाना होगा और समाज को चाहिए कि वह नई पीढ़ी से अपना संवाद बढ़ाए। आज परिवार छोटे हो रहे हैं और रिश्तेदारों का एक-दूसरे के घर आना-जाना भी कम हो रहा है। ऐसे में जो सामाजिक मूल्य युवाओं को अंजाने में मिला करते थे, वे कम हो गये हैं। इसकी चिंता समाज को करनी चाहिए

Comments

Popular posts from this blog

बीता नहीं था कल

सोंधी मिट्टी को महकाते 'बिखरे फूल'

कहानी फिर कहानी है