रंग और मूरतों का मिश्रित कमाल- शिवरामाचारी और आनंद गडपा
बंजारा हिल्स के `गैलरी कैफ' में शिवरामाचारी और आनंद गडपा से बातचीत के दौरान महसूस हुआ कि ये दोनों अगर एक-दूसरे से न मिलते तो रंगों, चित्रों और मूरतों की दुनिया कला की एक नयी जादूगरी से महरूम हो जाती। दोनों कलाकार अपनी-अपनी दुनिया में नयी संभावनाओं को तलाशने का काम कर रहे हैं। लगभग दो दशक तक साथ में रहने के बाद उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि साथ-साथ तो वे चलते रहे हैं, लेकिन अब एकसाथ चल कर देखते हैं और फिर परिणामस्वरूप रंग और मूरतों की कला का एक संगम सामने आया।
ये रंग-बिरंगी दुनिया हर आदमी के लिए अपना अलग रूप पेश करती है। किसी के लिए बहुत खूबसूरत तो किसी के लिए बदरंग, किसी के लिए संभवानाओं से भी अधिक खुशी का ठिकाना तो किसी के पास न खत्म होने वाले ग़म की दास्तान, लेकिन इस जहान ने उन्हीं लोगों को अपने ख़जानों से मालामाल किया है, जो खुद हासिल करने और फिर इसके लिए कुछ कर गुज़रने की प्रबल इच्छा शक्ति रखते हैं। वरना कई लोग इस दुनिया ए फानी से ऐसे ही गुज़र जाते हैं, जो अपने लिए एक अच्छा दोस्त, एक जीवन-साथी, एक अच्छा आलोचक भी नहीं ढूँढ पाते, बल्कि यह भी नहीं जान पाते कि वो इस दुनिया में क्यों भेजे गये हैं और उनके अपने भीतर कौन-सा खज़ाना छुपा हुआ है, जो वो दुनिया को दे सकते हैं। बंजारा हिल्स के `गैलरी कैफ' में शिवरामाचारी और आनंद गडपा से बातचीत के दौरान महसूस हुआ कि ये दोनों अगर एक-दूसरे से न मिलते तो रंगों, चित्रों और मूरतों की दुनिया ही कला की एक नयी जादूगरी से महरूम हो जाती। दोनों कलाकार अपनी-अपनी दुनिया में नयी संभावनाओं को तलाशने का काम कर रहे हैं। लगभग दो दशक तक साथ में रहने के बाद उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि साथ-साथ तो वे चलते रहे हैं, लेकिन अब एकसाथ चल कर देखते हैं और फिर परिणामस्वरूप रंग और मूरतों की कला का एक संगम सामने आ गया।
ये रंग-बिरंगी दुनिया हर आदमी के लिए अपना अलग रूप पेश करती है। किसी के लिए बहुत खूबसूरत तो किसी के लिए बदरंग, किसी के लिए संभवानाओं से भी अधिक खुशी का ठिकाना तो किसी के पास न खत्म होने वाले ग़म की दास्तान, लेकिन इस जहान ने उन्हीं लोगों को अपने ख़जानों से मालामाल किया है, जो खुद हासिल करने और फिर इसके लिए कुछ कर गुज़रने की प्रबल इच्छा शक्ति रखते हैं। वरना कई लोग इस दुनिया ए फानी से ऐसे ही गुज़र जाते हैं, जो अपने लिए एक अच्छा दोस्त, एक जीवन-साथी, एक अच्छा आलोचक भी नहीं ढूँढ पाते, बल्कि यह भी नहीं जान पाते कि वो इस दुनिया में क्यों भेजे गये हैं और उनके अपने भीतर कौन-सा खज़ाना छुपा हुआ है, जो वो दुनिया को दे सकते हैं। बंजारा हिल्स के `गैलरी कैफ' में शिवरामाचारी और आनंद गडपा से बातचीत के दौरान महसूस हुआ कि ये दोनों अगर एक-दूसरे से न मिलते तो रंगों, चित्रों और मूरतों की दुनिया ही कला की एक नयी जादूगरी से महरूम हो जाती। दोनों कलाकार अपनी-अपनी दुनिया में नयी संभावनाओं को तलाशने का काम कर रहे हैं। लगभग दो दशक तक साथ में रहने के बाद उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि साथ-साथ तो वे चलते रहे हैं, लेकिन अब एकसाथ चल कर देखते हैं और फिर परिणामस्वरूप रंग और मूरतों की कला का एक संगम सामने आ गया।
शिवरामाचारी बताते हैं कि मूर्तिकला और चित्रकला के अलग-अलग नमूने तो एक साथ प्रदर्शित किये जाते रहे हैं, लेकिन एक ही कृति में दो विधाओं के कलाकार किस तरह मिल कर काम कर सकते हैं, यह उन्होंने इस श्रृंखला में बताने का प्रयास किया है। उन्होंने टेर्राकोटा और कांस्य की शीटों पर जो मूरतें गढ़ी हैं, आनंद गडपा ने जलरंगों, एक्रेलिक और कैनवास के भिन्न रंगों से उन मूरतों का आकर्षण बढ़ाया है।
शिवरामा बताते हैं कि साथ में प्रैक्टिस करते हैं तो आपस में कला को लेकर विचारों का आदान-प्रदान तो होता ही है, लेकिन एक दिन सोचा कि दोनों के विचार यदि एक साथ एक ही कलाकृति में आयें तो फिर एक नया फ्युजन शुरु हो जाएगा।
आनंद बताते हैं, स्त्री-पुरुष, जीवन में एक साथ रहते हुए, अपनी-अपनी पोजिशन से रिश्ता निभाते हैं। सोचते तो यही हैं कि रिश्ते में दोनों की भागीदारी एक साथ निभाएँ, लेकिन हमेशा उन्नीस-बीस होता रहता है। एक तरह से हमारी यह भागीदारी भी इसी तरह की है, हमने अपना-अपना शत-प्रतिशत उसमें देने की कोशिश की है। शिवरामाचारी ने मूर्ति कला में अनेक तजर्बे किये हैं। वो कहते हैं कि कई बार जिस पात्र की वे रचना करने लगते हैं, उसी पात्र से संवाद होता है और काम में सौंदर्य पैदा होता है। उनका मानना है कि बिना संवाद के कला को अगली मंजिल तक नहीं ले जाया जा सकता। उल्लेखनीय है कि स्त्री-पुरुष सम्बन्धों पर उनकी मूर्तिकला के नमूने काफी चर्चित रहे हैं।
शिवरामा बताते हैं कि साथ में प्रैक्टिस करते हैं तो आपस में कला को लेकर विचारों का आदान-प्रदान तो होता ही है, लेकिन एक दिन सोचा कि दोनों के विचार यदि एक साथ एक ही कलाकृति में आयें तो फिर एक नया फ्युजन शुरु हो जाएगा।
आनंद बताते हैं, स्त्री-पुरुष, जीवन में एक साथ रहते हुए, अपनी-अपनी पोजिशन से रिश्ता निभाते हैं। सोचते तो यही हैं कि रिश्ते में दोनों की भागीदारी एक साथ निभाएँ, लेकिन हमेशा उन्नीस-बीस होता रहता है। एक तरह से हमारी यह भागीदारी भी इसी तरह की है, हमने अपना-अपना शत-प्रतिशत उसमें देने की कोशिश की है। शिवरामाचारी ने मूर्ति कला में अनेक तजर्बे किये हैं। वो कहते हैं कि कई बार जिस पात्र की वे रचना करने लगते हैं, उसी पात्र से संवाद होता है और काम में सौंदर्य पैदा होता है। उनका मानना है कि बिना संवाद के कला को अगली मंजिल तक नहीं ले जाया जा सकता। उल्लेखनीय है कि स्त्री-पुरुष सम्बन्धों पर उनकी मूर्तिकला के नमूने काफी चर्चित रहे हैं।
आनंद बताते हैं कि कुछ नया काम करने के लिए ज़रूरी नहीं है कि भाषा भी नयी हो, अगर भाषा नयी हो भी तो वो लोगों की समझ तक पहुँचने में सहज नहीं होगी। इसलिए उसी भाषा में नया अंदाज़ पैदा किया जाना चाहिए। आनन्द कला और कलाकार के बीच के रिश्ते को रेखांकित करते हुए कहते हैं कि कला को कलाकार के नाम और प्रसिद्धि के नज़रिए से न देखा जाये। इससे अच्छी प्रतिभा वाले कलाकार की उपेक्षा होती है।
`डिंग ट्वीट' शीर्षक से यह प्रदर्शनी 2 जनवरी तक `कलाकृति आर्ट गैलरी' में जारी रहेगी।
`डिंग ट्वीट' शीर्षक से यह प्रदर्शनी 2 जनवरी तक `कलाकृति आर्ट गैलरी' में जारी रहेगी।
कुछ और खूबसूरत चित्र ....
रंगों का अनोखा जादू...
बढ़िया लेख। नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteधन्यवाद ड़ॉ. बालाजी
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