दर्द के बिना कला में नहीं आती गहराई- अनुराधा काबरा



सप्ताह का साक्षात्कार
अनुराधा काबरा सिंगापुर में रहती हैं और पिछले तीन-चार वर्षो में चित्रकला के क्षेत्र में सिंगापुर के भारतीय चित्रकारों में ख्याति अर्जित कर चुकी हैं। वह अपने दौर के ख्यातिप्राप्त संगीतकार बृजभूषण काबरा की पुत्री हैं। 24 सितंबर 1963 को जोधपुर में उनका जन्म हुआ और अहमदाबाद में पली बढ़ीं। कभी अहमदाबाद में फर्नीचर के व्यापार में सक्रिय थीं, सिंगापुर में भी वह कुछ दिन तक व्यापारिक क्षेत्र में जुटी रहीं, लेकिन बाद में वह रंगों का आमंत्रण अस्वीकार नहीं कर सकीं और अपने आप को पूरी तरह से रंगों और चित्रों की दुनिया को समर्पित कर दिया। उनके रंगों की दुनिया के भीतर भी एक दुनिया है, वह है पशु पक्षियों की। संस्कृतियों और परंपराओं के बीच समन्वय एवं एकात्मता की तलाश भी उनके चित्रों के विषय रहे हैं। हैदराबाद की कलाकृति आर्ट गैलरी के आमंत्रण पर वह हैदराबाद आयीं और यहाँ लोगों ने उनकी पेंटिंग को खूब सराहा। हालाँकि उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से चित्रकला की शिक्षा या प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया है, लेकिन रंगों से उन्हें बहुत प्यार है। सप्ताह के साक्षात्कार के लिए उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं-
कला से आपका संबंध बचपन से रहा है या फिर इत्तेफाक़ से इसकी शुरूआत हुई?
पुराना भी है और नया भी। दर असल कला हमारी परंपराओं में थी। पिताजी बृजभूषणलाल काबरा संगीतकार थे। जोधपुर के राजघराने में काफी आना जाना था। उस समय अलाउद्दीन खान साहब जोधपुर के राजा के शाही संगीतकार थे। वहाँ अकबर अली खान साहब और बहुत सारे मशहूर कलाकार थे। पिता मशहूर गिटारिस्ट रहे थे। पिताजी बताते हैं कि एक वार वे कलकत्ता गये। वहाँ से उन्होंने एक गिटार ख़रीदी। दादा ने इस बारे में पूछा कि यह तो हिंदुस्तानी वाद्ययंत्र नहीं है। पिताजी ने उनसे कहा कि इस पर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत बजाकर दिखाओ, पिताजी ने ऐसा ही किया और फिर आगे चलकर उन्होंने गिटार को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संगीत ख़ानदान में था। जहाँतक मेरा मामला है, यह शौक मेरे साथ पचास पार के बाद आया। पहले मेरी इसमें कोई रूची नहीं थी। लगभग तीन चार साल पहले मैंने अचानक ड्राइंग बनाने शुरू किये। पति ने भी एक दिन कह ही दिया कि व्यापार की झंझटों में पड़ने के बजाय पूरा समय अपनी कला को निखारने में क्यों नहीं लगातीं? और फिर एक न रुकने वाला सिलसिला शुरू हो गया। एक और आश्चर्य की बात यह है कि मेरी मम्मी ने पसाच की उम्र में ही चित्रकला शुरू की थी।

मैंने देखा है कि आपके चित्रों में रंग एक ओर फीके होने के और दूसरी ओर वे गहरे होते गये हैं। क्या राज़ है इसमें। कहीं ऐसा तो नहीं कि कला के तत्व व्यक्तित्व में लंबे समय तक पलते रहे हों और मौक़ा देखकर बाहर निकल आये हों?
यह सही है कि मुझमें कला के जीन्स पहले से मौजूद थे, लेकिन मैंने इसको प्रदर्शित करने की कोशिश नहीं की। अहमदाबाद में बिज़नेस चलाती थी। जोधपुर से फर्नीचर डिज़ाइन कर निर्यात करती थी। लगभग 15 साल मैंने यह व्यापार किया। दर असल छोटी उम्र में ही शादी हो गयी थी। शादी के बाद मैंने ग्रैज्वेशन की शिक्षा पूरी की थी। उस समय चाहे संगीत हो या चित्रकला उसकी तारीफ कर लेते थे, लेकिन खुद से कभी कोशिश नहीं की। ज़िंदगी में एक और चीज़ हुई। मेरी पहली शादी अधिक दिन तक टिक नहीं सकी। तलाक़ के बाद जीवन में कुछ दिन दुःख और पीड़ा के रहे। तीन बच्चों के साथ मैंने अपना जीवन फिर से शुरू किया, हालाँकि 2002 में दूसरी शादी की और 2007 में हम सिंगापुर स्थानांतरित हुए। जिंदगी में ऐसा समय भी था, जो नीरस और तकलीफदेह था। मुझे लगता है कि ज़िंदगी में बहुत सारी चीज़ें होती हैं हमारे जज़्बात बाहर निकल आते हैं, चाहे वे मानवीय संबंध ही क्यों न हो। इससे ज़िंदगी के कई पहलू सामने आते हैं। आप जिस चित्र का विशेष रूप स ज़िक्र कर रहे हैं, उसमें एक पुरुष और दूसरी स्त्री दो ऊर्जाएँ हैं और चित्र उस में एक संतुलन की तलाश करता है। मेरे अपने जीवन में भी लंबा समय रहा, जब मैं संतुलन को तलाश कर रही थी। संतुलन हुआ तो रचना सामने आयी। यह पहली श्रृंखला के चित्रों में है। मैंने यह दर्शाने की कोशिश की है कि जहां नाकारात्मकता है, वहाँ सकारात्मकता भी होती है। दुख के साथ सुख खड़ा होता है। हालाँकि हम अच्छा-अच्छा ही चाहते हैं,जबकि उसके साथ हाथ पकड़कर कुछ ख़राब भी आता है। जहाँ तक गहरे रंगों की बात है, मुझे लगता है कि जब तक आप दर्द से न गुज़रे हों गहराई की समझ नहीं पैदा होती।
चित्रों में पशु पक्षियों और प्राणियों को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है, इसके पीछे क्या प्रेरणा रही है?
जो हमारे आस-पास होता है, हम उसी से प्रेरणा लेते हैं। मुझे बचपन से पालतु जानवर और पक्षी पालने का शौक़ था। मेरे पास कुत्ते, बंदर, चिड़िया और कछुवे थे। मुझे जानवर इसलिए भी अच्छे लगते हैं कि वे जब दूसरों से प्यार करते हैं तो सवाल नहीं करते। मैंने लगभग साठ के आस पास चित्र बनाए हैं, जिनमें पशु पक्षियों के जोड़े हैं और अगली चित्र श्रृंखला के बारे में भी मैं पक्षियों के बारे में ही सोच रही हूँ।
कुछ चित्रों में चीनी पात्र आते हैं!
मैंने सिंगापुर जाने के बाद चीन की पौराणिक कथाओं, इतिहास और परंपराओं का अध्ययन शुरू किया। वे लोग भी पशु पक्षियों से प्रेम के बारे में बिल्कुल हमारी तरह ही विचार रखते हैं। उन्हें अपने बुजुर्गों से काफी लगाव है, पुरखों का सम्मान है। वहाँ के एक दार्शनिक का विचार था कि आप यदि अपने माता-पिता का आदर नहीं करोगे तो राजा का आदर कैसे करोगे। वहाँ गौतम बुद्ध को ममत्व भाव में ढाल लिया गया है। मैं इस बात की तलाश करती रहती हूँ कि हम सब में ऐसा क्या है, जो हमें जोड़ता है। दर असल हम एक दूसरे से सूपिरियर और अलग अस्तित्व रखने के बारे में अधिक सोचते हैं, एक दूसरे को छोटा दिखाने की कोशिश करते हैं। यही कारण है कि एक दूसरे को समझ नहीं पाते हैं। आपस में जुड़ नहीं पाते। जबकि हम सबकी सृष्टि में पांच तत्व शामिल हैं।
क्या आपको लगता है कि अधिकतर लोगों को अपनी ज़िंदगी में बिखरे रंगों का एहसास नहीं होता?
ज़िंदगी को समझने की प्रक्रिया में जो मैंने प्रारंभ में चित्र बनाए, सभी ब्लैक एण्ड व्हाइट ही थे। इसमें मैं रंगों का उपयोग नहीं करती थी। एक दिन मेरी बेटी ने मुझसे कहा, माँ क्या तुम्हारी ज़िंदगी में रंग नहीं हैं? सवाल विचारों को नया प्रवाह देने का काम कर गया। मुझे लगता है कि ज़िंदगी के रंगों को समझने के प्रयास में हमारा कायापलट होता है। बहुत सारी चीज़ें हमारे नियंत्रण से बाहरे होती है, और हम उन्हें उन्हें अपने हाल पर छोड़ने के बजाय नियंत्रित करने लगते हैं। ज़िंदगी में जहाँ ब्लैक एण्ड व्हाइट है, वहाँ रंग भी बहुत हैं। मारा मारी तो सब कि जिंदगी में है, उसी में से खुशियों को चुनना है।
आप सिंगापुर में रहती हैं, जहाँ रहने वाले अधिकतर भारतीय और दूसरे देशों के लोग निश्चित रूप से धन कमाने के लिए गये होते हैं या संपन्न होते हैं, ऐसे में चित्रों में कलाकार की ऊर्जा और प्रेरणा समझे जाने वाले ग़रीबी, भूख जैसी समस्याओं के विषयों का अभाव रहता होगा?
हिंदी मिलाप की क्लिप
इस बात पर सोचती हूँ तो याद आता है कि मैंने सिंगापुर की कुछ चित्र प्ररदर्शनियो में मैंने स्थानीय चित्रकारों के चित्र देखे और महसूस किया कि उनमें वैसी गहराई नहीं है, जैसे भारतीय चित्रकारों में मिलती है। हाँ वियतनामी चित्रकारों के पास आपको उनकी समस्याओं का प्रतिबिंब मिलता है। वहाँ रहने वाले भारतीय कलाकारों के जीवन में उतना संघर्ष नहीं है, जितना भारत में है। कलात्मक अभिव्यक्ति में कलाकार की आर्थिक स्थिति भी काफी मायने रखती है।
आप एक मारवाडी परिवार से हैं। सिंगापुर में भी मारवाडी समाज अपनी सांस्कृतिक पहचान के साथ रहता होगा?
यूँ सिंगापुर में दीवाली, ईद और चीनी नववर्ष धूम से मनाया जाता है। जहाँ तक मारवाडी संस्कृति की बात है, मुझे लगता है कि दुनिया भर में फैले मारवाडियों में अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम है। संस्कृति को तत्काल कोई ख़तरा नहीं है, लेकिन भाषा को ज़रूर ख़तरा महसूस हो रहा है। इसलिए भी कि इस हम मारवाडी भाषा में घर में बातचीत में भी शर्म महसूस कर रहे हैं। मेरी बुआ नीला बाई की याद आ रही है, उन्होंने घरेलू समारोहों में गाये जाने वाले मारवाडी गीतों को संगीतबद्ध किया था और वे गाँव गाँव जाकर लोगों को सिखाती थीं। खुद भी गाती थीं। यह संस्कृति को बचाए रखने का प्रयास ही था।

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