... जब उनके लिए इधर की खिड़कियाँ खुलती हैं



दुनिया चाहे गोल हो, लंबी चौड़ी या ऊंची नीची। लोग गोरे, सांवले, काले चाहे जिस रंग के हों। कुछ लोगों को मिलकर लगता है कि बिल्कुल अपने जैसे हैं। अपनी ही तरह सोचते हैं। दुनिया और दुनिया वालों से मुहब्बत करते हैं। नफरत के लिए उनके पास वक़्त नहीं है। पिछले दिनों ग्लोबल एंत्रप्रेन्युअर सम्मीट के दौरान इसी तरह के कुछ लोगों से मुलाक़ात हुई। खासकर हेलेना, परवरिश ओरेखेल, मीना शीराज़ी, अफ़साना रहीमी और सोना महमूदी से काफी यादगार मुलाक़ातें रहीं।

हेलेना डब्लू व्हाइट अमेरिकी सरकार के लंदन इंटरनेशनल मीडिया हब की दक्षिण एशियाई अधिकारिक प्रवक्ता हैं। हैदराबाद में सेंट फ्रांसिस कॉलेज के अमेरिकी कॉर्नर में मीडिया स्पेशलिस्ट अनवर हसन के साथ उनसे मुलाकात हुई। बडी दिलचस्प बातचीत रही। भारत, भरतीयों और भारतीय भाषाओं के बारे में उनका नज़रिया बड़ा अच्छा लगा। कहने लगीं..भारत में रिश्तों का महत्व पश्चिम की तुलना में काफी अधिक है। यहाँ की परिवार व्यवस्था, परंपराएँ और संस्कृति की संपन्नता की ओर पश्चिम के लोग आकृष्ठ हो रहे हैं।
हेलेना काफी अरसे तक भारत में रही हैं और उन्होंने विश्वविद्यालयीन शिक्षा के दौरान हिंदी और उर्दू सीखी और बाद में अमेरिकी विदेश सेवा में नियुक्त हुईँ। हेलेना सोचती हैं कि दक्षिण एशिया पूरे विश्व के लिए काफी महत्वपूर्ण है। यहाँ के विभिन्न देशों के बीच किसी भी प्रकार का तनाव विश्व के दूसरे हिस्सों को भी प्रभावित करता है।
हेलेना लगभग 20 वर्ष पूर्व जब वह 20 वर्ष की थीं तो विश्वविद्यालयीन शिक्षा के दौरान हिंदी सीखने के लिए राजस्थान आयी थीं। उन्हें भारत और भारतीयों में काफी रुचि थी। इसी तरह उन्होंने उर्दू सीखने के लिए लखनऊ का सफर किया। वह कहती हैं कि उर्दू और हिंदी दोनों भाषओं को सीखने के दौरान उन्हें रिश्तों का महत्व समझ में आया कि यहाँ मौसी, बुआ, मामा, चाचा, यहाँ तक कि देवरानी और जेठानी की भी अलग-अलग पहचान  क्यों है। इसलिए भी कि यहाँ हर रिश्ते का अलग महत्व है। वह कहती हैं- हम अपने छोटे-छोटे बच्चों को भी अलग कमरों में सुलाते हैं, जबकि यहाँ परिवार होने का अर्थ उनके रहन सहन में भी साफ देखा जा सकता है।
हिंदुस्तानी भाषा के दो शब्द ज़िंदगी और मुहब्बत उन्हें बहुत आकर्षित करते हैं। यह भाषा उन्हें न केवल ज़िंदगी के अर्थ तलाशने में सहयोग करती है, बल्कि वह चाहती हैं कि इस भाषा में सोचें और ख़्वाब देखें।
हेलेना बताती हैं,-  भारत में बड़ी संख्या में दो तीन भाषाएँ बोलने वाले लोग मिल जाते हैं। अधिक भाषाएँ जानने के कारण उनके विचारों में विस्तार होता है, दूसरों को समझने की क्षमता बढ़ती है और सहनशीलता में वृद्धि होती है। पश्चिम में अधिक भाषाएं जानने का मौका सभी को नहीं मिलता। क्योंकि भाषा ज़रूरत या शौक़ से ही सीखी जा सकती है।
हैदराबाद इंटरनेशनल कंवेंशनल सेंटर में ग्लोबल सम्मीट के दौरान घूमते हुए कुछ अफ़ग़ानी महिलाओं से मुलाकात हुई। अफ़ग़ान रूढ़ी वादी विचारधारा वाले समाज का देश माना जाता है। वहाँ आज भी महिलाओं क पुरुष के समान अवसर उपलब्ध नहीं हैं। महिला सुरक्षा के मामले में भी काफी चिंताएँ हैं, इसके बावजूद वहाँ की उद्यमी महिलाएँ अपने आपको मनवा रही हैं। बताया जाता है कि एक ओर लड़कियाँ अपने पिता के कारोबार में हाथ बंटाने के लिए सामने आ रही हैं तो दूसरी ओर प्रथम पीढ़ी की महिला उद्यमी भी बड़ी संख्या में अपनी किस्तम आज़मा रही हैं।
भारत की तुलना में वहाँ महिला उद्यमी का आगे बढ़ना काफी चुनौतीपूर्ण है। कॉफी की चुस्कियों के बीच मीना शेराज़ी, सोना महमूदी, परवरिश ओरेखेल और अफ़साना रहीमी ने अपने अनुभव बताये। वो सब हिंदुस्तानी में बहुत ही सहज ढंग से बात कर रही थीं।
सब की अलग अलग कहानी होते हुए भी एक खास बात यह थी कि सब अपनी अपनी ज़िंदगी में कुछ ऐसा करना चाहती थीं, जिससे उन्हें खुशी मिले। वो खुशी जो अपने और अपनों के लिए कुछ करने पर होती है। वो हिंदुस्तानी बोल रही थीं। हिंदुस्तान और हिंदुस्तानियों में उन्हें काफी दिलचस्पी है। मैं सोचने लगा कि काश मैं भी अफ़ग़ानी, पश्तु और आस पास की दूसरी भाषाएँ बोल पाता। हो सकता है कि उन देशों और वहाँ रहने वालों को बेहतर तरीके से समझ पाता। इसलिए भी कि भाषाएँ नयी-नयी खिड़कियाँ और दरवाज़ें खोलती हैं।

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