नीली आँखों वाले साहब टॉम अल्टर का जाना...



हिंदी-उर्दू की नफ़ासत को जीने वाली गोरी शख़्सियत
नहीं रहे... ये दो शब्द शायद उनके लिए केवल शारीरिक उपस्थिति तक सीमित हो सकता है। टॉम अल्टर ने कैन्सर से जूझते हुए 29 सितंबर 2017 को अंतिम सांस ली। उन्होंने अपनी 67 साला ज़िंदगी में कलात्मक कर्मठता से कुछ ऐसे पदचिन्ह छोड़े हैं, कि यह पहचान हिंदी सिनेमा और रंगमंच के इतिहास में बरसों तक अमिट रहेगी।
हैदराबाद टॉम अल्टर के लिए अपने शहर जैसा था। वे थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद यहाँ आते थे। हिंदी मिलाप की ओर से आईएएस असोसिएशन, बेगमपेट में उनके नाटक ए.के. सहगल का मंचन किया गया था। उसी समय उनसे पहली मुलाक़ात हुई थी। वे इस नाटक के सूत्र धार थे। नाटक के बाद साक्षात्कार के दौरान उनसे कई सारे मुद्दों पर बातचीत हुई थी। यूँ तो उन्हें हिंदी फिल्मों के अंग्रेज़ी किरदारों में देखा था, लेकिन रंगमंच पर उनकी हिंदी और उर्दू भाषा उन किरादारों की भाषा से बिल्कुल अलग थी। विकीपीडिया अभी उतना आम नहीं हुआ था, इसलिए उनके बारे में अधिकजानकारी नहीं थी, सो पूछ लिया और इतनी अच्छी उर्दू और हिंदी कैसे बोल लेते हैं? जबाव बड़ा दिलचस्प था। कहने लगे, भई मेरे पिताजी बाइबल उर्दू में पढ़ते थे और फिर जब 1964 में हिंदी को अपनाया गया तो उनके आश्रम में इबादत हिंदी में होती थी।

टॉम अल्टर के साथ होटल पार्क हयात मेंं 
बातचीत की एक यादगार तस्वीर
टॉम के पुर्वजों का संबंध तो अमेरिका के ओहायो शहर से था, लेकिन 1916 में उनके दादा अमेरिका से हिंदुस्तान आये थे। उनके पिता अंग्रेज़ी और इतिहास के शिक्षक थे और मिशनरी परिवार से होने के कारण उन्होंने राजपुर में एक आश्रम स्थापित किया था, जिसका नाम मसीही ध्यान केंद्र था। टॉम का जन्म मसूरी में हुआ था, लेकिन बचपन इलाहबाद, सहारनपुर, राजपुर और मसूरी में बीता। राजपूर जहाँ एक ओर गंगा और दूसरी ओर यमुना बहती है। उनके पिता ने यहाँ बसने कारण उन्हें बताया था कि यह काफी पवित्र इलाक़ा है।
टॉम से दूसरी मुलाक़ात सीसीएमबी में हुई थी, जहाँ वो मौलाना आज़ाद के नाटक का मंचन कर रहे थे। यह पूरी तरह से मोनोलॉग था। नाटक के मंचन काफी प्रभावित करने  वाला था। नाटक से मौलाना आज़ाद की ज़िंदगी के कई पहलू उसमें उजागर किये गये थे। 
दर असल टॉम की कलात्मक जीवन यात्रा हरियाणा के शहर जगाधरी से शुरू हुई थी, जहाँ शिक्षक होने के दौरान उन्होंने राजेश खन्ना की फिल्म अराधना देखी थी। फिल्म में राजेश खन्ना के अभिनय ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्हें फिल्मों में अभिनय करने का शौक़ पैदा हुआ और उन्होंने दो साल के मंथन के बाद नौकरी छोड़कर फिल्म इंस्टीट्यूट (एफटीआईआई ) में दाखला ले लिया, जहाँ औमपुरी नसीरुद्दीन शाह उनके जुनियर और शबाना आज़मी सीनियर हुआ करती थी।
 इंस्टीट्यूट से निकलकर उन्होंने जहाँ कई फिल्मों में अभिनय किया, वहीं नसीरुद्दीन शाह, बेंजामिन गिलानी तथा रत्नापाठक के साथ मिलकर मोट्ली थिएटर ग्रूप की स्थापना की। उन्होंने साहेब बहादुर, चरस, राम भरोसे, हम किसी से कम नहीं, परवरिश, शतरंज के खिलाडी, क्रांति,  नौकरी सहित कई फिल्मों और धारावाहिकों में अभिनय किया।
टॉम अल्टर से अगली मुलाक़ात तारामती बारहदरी में हुई थी, जहाँ उन्होंने बहादुरशाह ज़फर की जिंदगी पर नाटक का मंचन किया था। यह नाटक पूर्व मंत्री सलमान खुर्शीद ने लिखा था। उसके बाद दो और मुलाक़ाते रहीं। एक हैदराबाद पब्लिक स्कूल के प्रिंस्पल कार्यालय में और दूसरी मुलाक़ात होटल पार्क हयात में दोनों बार भी बहुत ही दिलचस्प गुफ्तगू रही। हैदराबाद पब्लिक स्कूल में एचएलएफ के दौरान उन्होंने साहिर लुधियानवी पर एक नाटक का मंचन किया था, तो गुफ्तगू का विषय अधिकतर साहिर पर रहा। साहिर और अमृता की प्रेम कहानी को बड़ी ही खूबसूरती से इस संगीत नाटक में पिरोया गया था। पिछले साल 2016 में नवंबर प्रथम सप्ताह में वो क़ादिर अली बेग थिएटर फाउण्डेशन के रंगमंच उत्सव में आये थे। यहाँ पर उन्होंने दिलचस्प नाकट डॉ. खन्ना का मंचन किया था। मंचन से पूर्व काफी देर तक गुफ्तगु हुई थी। इस अवसर पर उन्होंने अपने चुनौतीपूर्ण किरदारों के बारे में बताया था। गांधी का किरदार उन्हें सबसे चुनौतीपूर्ण लगा था। उन्होंने कहा था,..  मौलाना आज़ाद पर जो नाटक किया, वह पात्र मेरे दिल के काफी नज़दीक है, लेकिन गांधीजी का पात्र मेरे लिए चुनौतीपूर्ण रहा। यह इसलिए भी कि नाटक में यदि गांधीजी न मरते तो.. पर बहस की गयी है। किसी पात्र को इतिहास में ढूँढ़कर उसे मंचित करना आसान होता है, लेकिन एक महान व्यक्तित्व के न होने पर उनके होने के समय से जोड़कर देखना काफी कठिन होता है। गांधीजी की जिंदगी की बारिकियों को समझना और कलाकार के रूप में उन मानकों पर उतरना आसान नहीं।
टॉम को एक तरह से इस बात पर काफी दुख था। उन्होंने कहा था, 'हमने गांधीजी के असूलों को छोड़ा नहीं, तोड़ा है। वे आज़ादी के बाद सिर्फ साढ़े पाँच महीने तक जिये। हमने एक बड़ा अपराध किया कि सबकी एकता के समर्थक उस महान हस्ती को मार दिया। मुझे लगता है यह अपराध हम सबने मिलकर किया है और हमें उसके लिए माफी माँगनी होगी।'
टॉम का न रहना, हिंदी और उर्दू के उस रंगमंच के लिए एक अपूर्णीय क्षति है, जिसमें देश की मिली जुली संस्कृति के किरदार सांस लेते  हैं। टॉम अल्टर इस गंगा जमुनी तहज़ीब के घोर समर्थक थे, क्योंकि दोनों नदियों की जलधार के बीच वो पले बढ़े थे।

Comments

  1. Tom Alter badi hi aatmeeyata ke sath Urdu aur Hindi bolte the. Unke talaffuz ki shiddat ko samajhne wale samajhte hi nahi mahsoos bhi kiya karte the.Aap Urdu ko Urdu ya Farsi rasmul khat mein banaye rakhne ke himayati the. Ve use uski khoobsoorati ki zamanat batate the. Is silsile mein ve ye daleel diya karte the, "Agar Sanskrit ya Hindi ko Persian script mein likha jaye to kya Persian script mein Sanskrit ya theth ( ठेठ)
    Hindi ki lataafat aa payegi ??? Tom Alter ka hamse juda hona hamare Ganga-Jamuni aur secular muaashre ka bada nuqsan hai.

    Abdul Hameed Khan

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  2. बहुत अच्छा संस्मरण है, सर. यह भी जाना कि वह रंगमंच के कलाकार भी थे.

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  3. बहुत हि सराहनिय लेख

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