...औरों का तड़पना देखकर तड़पा किये





शहर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर हैदराबाद से श्रीशैलम मार्ग पर स्थित प्रज्वला ने जो सुधार-सह-पुनर्वास-गृह बनाया है, उसे देख अनायास ही डॉ. सुनीता कृष्णन के कार्यों को सराहने को जी चाहता है। दरअसल, आज़ादी के लगभग 68 वर्ष गुजर जाने के बाद भी सुधार की जो असली तस्वीर हमारी सरकारें खोज ही नहीं पायीं, उसे सुनीता ने अपने बुलंद हौसलों एवं इन्सानी जज़्बे से साकार करने की कोशिश की है। ऐसा लगता है कि सुनीता ने जो कुछ अपने प्रारंभिक जीवन में भोगा है, उन अनुभवों के आधार पर जोखिम भरे कामों को बड़ी सरलता से करती गयी हैं। वेश्यालयों से बचाकर लड़कियों एवं औरतों को जिन जगहों पर आम तौर पर रखा जाता है, वे किसी बंदीगृह से कम नहीं होतीं, लेकिन प्रज्वला का शेल्टर होम उनसे बिल्कुल अलग है। यहाँ कुछ देर बिताकर हम महसूस कर सकते हैं कि दुनिया भर से पीड़ित, दुःखी, लूट, खसोट, धोखेबाज़ी तथा विश्वासघात से आहत अविश्वास की परतें ओढ़ें, जो औरतें और युवतियाँ यहाँ आती हैं, उनमें फिर से ज़माने के प्रति विश्वास जगाने का काम किया जाता है। बच्चों के लिए एक बहुत ही खूबसूरत, रचनात्मक गतिविधियों से भरा स्कूल, किशोरियों, युवतियों एवं महिलाओं के लिए अलग-अलग सुधार-गृह, प्रशिक्षण केंद्र, रोज़ सुबह व्यंजनों के लिए अपनी ही उगायी हुई सब्जियों का स्वाद, अपने ही सींचे हुए पेड़ों के फल, स्वच्छ एवं भरपूर मनोरंजन के लिए एम्फी थियेटर, बहुत ही शांत और खूबसूरत प्रार्थना-स्थल और शारीरिक तथा मानसिक चोटों पर मरहम लगाने, उनका उपचार करने के लिए एक छोटा-सा चिकित्सा केंद्र, अदालत द्वारा आदेशित अवधि समाप्त होने के बाद अपनी इच्छानुसार निवास करने और नया जीवन शुरू करने के लिए हर संभव सुविधा.. शेल्टर होम की कुछ खास विशेषताएँ हैं।
साफ है कि जब तक पीड़िताएँ यहाँ रहती हैं, उन जख़्मों को भरने का प्रयास किया जाता है, जो समाज ने उन्हें दिये हैं। इसके लिए निश्चित ही उनकी तकलीफ को दूर करने का सामान वहां होना चाहिए और वह है भी।
आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के हाथों में पड़कर हो या फिर सामाजिक, आर्थिक मजबूरी के कारण, जो औरतें वेश्यावृत्ति की ज़िल्लत भरी ा़जिन्दगी में आती हैं, उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ना आसान काम नहीं है। उससे भी मुश्किल काम उन बालिकाओं एवं बच्चों को नया जीवन प्रदान करना है, जो मानव तस्करी का शिकार होते हैं, लेकिन कहते हैं कि ...
अपना दर्दे दिल समझने की यहाँ फुर्सत किसे
हम तो औरों का तड़पना देखकर तड़पा किये
शेल्टर होम में अपराजिता टीम के सदस्यों को देखकर यह एहसास और भी मज़बूत होता जाता है, कि जिन्होंने इस अन्याय को सहा है, वे अपने ह़क की लड़ाई और अधिक वीर-भावना से लड़ सकते हैं। यही काम डॉ. सुनीता कृष्णन अपने अभियान में कर रही हैं।
-एफ.एम. सलीम



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