कहानी फिर कहानी है



मेरा आपका जन्मों का रिश्ता है। सब मानते हैं, मैं मनुष्य के साथ ही पैदा हुई हूँ। मैं कहानी हूँ। वही, जिसके कहने सुनने-सुनाने और पढ़ने-पढ़ाने में आपको बड़ा आनंद आता है। अंग्रेज़ी में मुझे स्टोरी, बांग्ला में गल्प और अरबी में क़िस्सा कहा जाता है। मैं मानव के आदिम स्वभाव का हिस्सा हूँ। इंसान चाहे सभ्य हो या असभ्य, मैं उसके साथ यात्रा करती रहती हूँ। वह बचपन से बुढ़ापे तक मुझे अपने भीतर पालता, पोसता, बड़ा करता, बल्कि कभी-कभी खींचतान कर अपनी सुविधा के अनुसार मेरी लंबाई-चौड़ाई को कम-ज्यादा भी करता रहता है।
आप भी यही मानेंगे कि कहानी की शुरूआत बिल्कुल परियों से ही होती है, फिर उसमें राजा, रानी, राजकुमारी के साथ एक दुष्ट आत्मा भी शामिल हो जाती है, जिसे नये ज़माने की भाषा में विलन कहा जाता है। किसी ने पूछा था कि बचपन में दादी-नानी ही क्यों कहानियाँ सुनाती हैं, दर असल दादी नानी बच्चों के साथ अपना बचपन जीना चाहती हैं, इसलिए कहानी कहते-कहते खुद उसमें खो जाती हैं। जब बच्चे स्कूल जाते हैं तो वहाँ भी शौर्यप्रेमन्यायज्ञानवैराग्य और साहस की कहानियाँ सुनाकर उन्हें प्रेरित करने का प्रयास किया जाता है।
प्रेमचंद आपको याद होंगे, भला उनके बिना मेरी कहानी कैसे पूरी हो सकती है। उन्होंने मेरे बारे में कहा था, - कहानी वह ध्रुपद की तान हैजिसमें गायक महफिल शुरू होते ही अपनी संपूर्ण प्रतिभा दिखा देता हैएक क्षण में चित्त को इतने माधुर्य से परिपूर्ण कर देता हैजितना रात भर गाना सुनने से भी नहीं हो सकता।
कुछ लोग इस बात में फंसे रहते हैं कि मैं कोरी कल्पना हूँ या सच्चाई। सच्ची या झूठी होने के इल्ज़ाम भी मुझी पर आते हैं। मेरा मानना है कि आदमी ऐसी कोई कल्पना नहीं कर सकता, जिसका अस्तित्व ना हो। बच्चे जब बड़े होने लगते हैं तो तोता-मैना की कहानी उनके लिए पुरानी होने लगती है। वे चाहते हैं कि एक ना एक दिन उनकी भी कोई कहानी बने। पहले तो यह मुश्किल से होती है और जब होती है तो फिर दो लफ्ज़ों में बयाँ नहीं हो पाती। मुझे प्यार के नग़मों और मौजों की रवानी में तलाश किया जाता है। फिर तो कहानी के किरदार भी जन्म लेने लगते हैं। भला किसे याद नहीं होगा कि प्रेम कहानी में एक लड़का होता है, एक लड़की होती है, कभी दोनों हंसते हैं और कभी दोनों रोते है।...इस तरह भावनाओं का जन्म भी मुझ में हो जाता है।
मुझे लिखने वाले की भी अपनी कहानी होती है, वह अपनी ज़िंदगी बदले या ना बदले, लेकिन किरदारों की ज़िंदगी में हलचल मचा देता है। लोग मेरे अंजाम के बारे में बहुत सोचते हैं, हो सकता है कि फिल्मों की तरह अच्छा ही हो, लेकिन याद रखें मेरा शुरू होना ही काफी है, अंजाम चाहे जो हो होता रहेगा।

Comments

  1. कहो ना मनुष्य है।मनुष्य की कहानी ... कहानी में मनुष्य।

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  2. रोचक और जानकारीपूर्ण।
    बहुत खूब।

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  3. बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति।

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  4. بہت خوب ایک بولتی ہوئ تصویر کشی کیا ہے آپ نے ، ماشاء اللہ

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  5. सरल शैली में प्रस्तुत भाव । और विस्तार से लिखते तो और पढ़ते ।

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  6. सरल शैली में प्रस्तुत भाव । और विस्तार से लिखते तो और पढ़ते ।

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  7. Imaginative, with a very different perspective.

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  8. प्रतिक्रिया के लिए सभी का आभार।

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  9. प्राचीन और नवीन का अद्भुत मेल । अच्छी प्रस्तुति

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  10. शानदार लेख. एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य से जुड़ने का माध्यम कहानी ही हो सकती है. बिना कहानियों के मानव जीवन तो बेरंग हो जाएगा. राजेन्द्र कुमार.

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  11. आपकी कल्पनाशीलता का एक और परिचय सर।इस भागती हुई ज़िन्दगी में जब हम अपनी जड़ों को ही भूलने लगते हैं तब आप अपनी कृतियों से हमें उससे फिर से याद दिलाते हैं और हमारा बचपन जीवंत हो उठता है जो जीवन में ऊर्जा भर देता है। ऐसे ही अपनी लेखन शक्ति से हम सबको ऊर्जावान बनाए रखिए, यही कामना करती हूँ। शेयर करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सर।

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