परपंराओं में शोध से नवोन्मेष का रास्ता उज्ज्वल- रमेश कुमार रेड्डी


पेरी रमेश कुमार रेड्डी रेजेन्सी कॉलेज ऑफ होटल मैनेजमेंट एण्ड कैटरिंग टेक्नोलॉजी के प्राचार्य हैं। उनका जन्म 2 नवंबर 1978 को तत्कालीन महबूबनगर जिले के वनपर्ती में हुआ। वहीं से उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। हैदराबाद में अपने दौर के प्रारंभिक होटल मैनेज्मेंट कॉलेजों में से एक जे बी कॉलेज से उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। प्रारंभिक प्रशिक्षण होटल ग्रीन पार्क में प्राप्त किया। आदित्य इन, हैदराबाद और विजयवाडा के डी वी मैनर में कुछ दिन तक होटल प्रबंधन का कार्य किया और बाद में एमबीए करने के बाद उसी कॉलेज में अध्यापक बन गये, जहाँ से उन्होंने स्नातक की शिक्षा पूरी की थी। 2005 में वे रेजेन्सी कॉलेज में नियुक्त हुए। 2008 में उन्हें उप-प्राचार्य और 2009 में प्राचार्य बनाया गया। आतिथ्य उद्योग को वे अब तक लगभग 1000 विद्यार्थी दे चुके हैं। आतिथ्य एवं पर्यटन उद्योग के क्षेत्र में हुए विकास और परिवर्तनों को उन्होंने क़रीब से देखा है। उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं- एफ एम सलीम

आतिथ्य उद्योग की वर्तमान स्थिति पर आप क्या कहना चाहेंगे?
दो-तीन विषय उल्लेखनीय हैं, जिसके कारण लोग होटल उद्योग का रुख कर रहे हैं। पहला कारण है कि पर्यटन क्षेत्र में तेज़ी से विकास हुआ है। दूसरी बात यह है कि अध्ययन के क्षेत्र में यह ग़ैर तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र के रूप में उभरा है, विशेषकर ऐसे लोगों के लिए जो गणित और विज्ञान में अपने आपको बेहतर नहीं मानते या उन्हें यह विषय ऊबाऊ लगते हैं। कुछ साल पहले लोग फैशन डिज़ाइनिंग और एनिमेशन फल्मों का रुख कर रहे थे, उधर लोग अपने शौक के चलते जा रहे थे, लेकिन यह दोनों क्षेत्र भी अभी तक उम्मीदों पर पूरा खरे नहीं उतर पाया है। यही कारण है कि कुछ विद्यार्थियों के लिए आतिथ्य उद्योग बेहतर विकल्प के रूप में सामने आया है।

पिछले चार पाँच वर्षों में आतिथ्य उद्योग में किस तरह के परिवर्तन हुए हैं?
जैसा कि मैं कह रहा था कि पिछले कुछ वर्षों से पर्यटन और आतिथ्य उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन आये हैं। विशेषकर पिछले आठ वर्षों में। 2010 से पहले शहर में उतने होटल नहीं थे, जितने आज हैं। उसी तरह देश भर में ऐसा ही परिवर्तन देखने को मिला है। प्रचार के ग्लैमरस साधनों को लेकर भी कुछ चीज़ें बदली हैं। रियल्टी शो और विविध प्रकार के प्रतिस्पर्धी शोज़ के कारण भी आतिथ्य उद्योग में विकास हुआ है। विद्यार्थियों के लिए यह विकास काफी आकर्षक रहा है। इन सबसे हटकर रोज़गार का पक्ष भी है। हालाँकि यह भी सच्च है कि 99 प्रतिशत अभिभावक आज भी अपने बच्चों के लिए होटल प्रबंधन का क्षेत्र पहली प्राथमिकता के रूप में नहीं चुनते। कई बार वे बच्चों के शौक और उनकी इच्छा के चलते इसके लिए तैयार हो जाते हैं।

इसका क्या कारण है?
हर माँ बाप अपने मन में यह चाहत रखते हैं कि मेरा बेटा महान कार्य करेगा। वह किसी कार्यालय जाएगा, या किसी कंपनी में काम करेगा, वे यह सोचने के लिए आज भी तैयार नहीं है कि उनका बेटा होटल में सेवा करेगा। यदि कोई विद्यार्थी अपने माता-पिता से इस क्षेत्र में पढ़ने की इच्छा जताता है तो यह उनके लिए बड़ा झटका समझा जाता है। इस क्षेत्र में सफल और अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करने बाद भी वे मजबूरी में तैयार होते हैं। मैंने कई अभिभावकों से यह कहते सुना है...सर मैं तो नहीं चाहता, लेकिन बच्चा चाहता है, इसलिए इस क्षेत्र में प्रवेश दिला रहा हूँ। हालाँकि स्थिति में कुछ सुधार आया है, फिर भी दूसरों के बच्चे होटल प्रबंधन में अच्छा कर रहे हैं तो उनकी सराहना की जा रही है, लेकिन अपने बच्चे के लिए नहीं।

हिंदी मिलाप 
व्यावसायिक शिक्षा से जुड़े दूसरे संस्थानों और आतिथ्य संस्थानों तथा उद्योग में क्या अंतर है?
बहुत अंतर है, फैशन डिज़ाइनिंग का ही उदाहरण लीजिए, यहाँ कैंपस शिक्षा और बाज़ार में बहुत अंतर है। जो किताबों में है या कक्षा में सिखाया जाता है, फैशन की दुनिया उससे बिल्कुल अलग होती है। इसलिए भी कि भारत में अभी उस तरह की फैशन रुची आम नहीं हो पायी है, जिससे डिज़ाइनर बाज़ार पनप सके। आज भी लोग किसी शोरूम में से कोई शर्ट खरीदकर पहन लेते हैं और कंफर्ट भी महसूस करते हैं। फैशन की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि यह सुबह से शाम तक बदल जाता है। इधर आतिथ्य उद्योग में कुछ मौलिक चीज़ें बहुत जल्दी नहीं बदलतीं। खान पान की शैली में परंपराओं का बड़ा महत्व है। उसी तरह नवोन्मेशन की बहुत संभावना है और वे लोग जो परंपराओं में शोधकर नयी चीज़ों का नवोन्मेंष करते हैं, वे चल पड़ते हैं। हालाँकि इन दिनों टेक्नोलॉजी का उपयोग भी किया जा रहा है। दर असल आतिथ्य उद्योग परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है। फ्रांस में रेस्ताराओं में मोलिक्युलर गैस्ट्रोनॉमी पद्धति का उपयोग किया जा रहा है। बैंगलोर में इस तरह का रेस्तराँ स्थापित हुआ है। यहाँ खाद्य पावडर फार्म में आता है। हालाँकि भारत में माइक्रो कुज़ीन की विभिन्नता भी खास विशेषता है।

क्या यह सही है कि जनसाधारण में होटलों में खर्च करने की प्रवृत्ति बढ़ी है?
इसको दो तरह से देखा जा सकता है। किसी का शौक किसी दूसरे लिए व्यापार को बढ़ाने का अवसर है। दूसरी  ओर हर कोई व्यस्त है। उसका यही व्यस्त होना, दूसरे के लिए व्यापार का अवसर है। चाहे ऐप के रूप में हो, क्विक सर्विस के रूप में हो, होम डिलेवरी के रूप में हो या फिर रेस्तराँ स्थापित करने के रूप में। लोगों को जो चाहिए, आप देते हैं तो संभावनाएं बनी रहती हैं। इसके अलावा लक्ज़री क्षेत्र ने हमेशा से अपनी अलग जगह बनाए रखी है। यह उद्योग को भी लाभान्वित करता है और दूसरी ओर उपभोक्ता के प्रोफाइल को भी उन्नत करता है।

क्या बात है कि हैदराबाद के बजट और लक्जरी होटलों में स्थानीय कौशल बहुत कम दिखता है?
यह हैदराबाद में ही नहीं, बैंगलूर की भी यही हालत है। हालाँकि बिलो बजट होटलों में लंबे अरसे तक काम करने वाले कर्मचारी हैं, लेकिन बजट और लक्जरी होलटों में स्थानीय चेहरे यहाँ बहुत कम दिखते हैं। विशेषकर हैदराबाद की बात करूँ तो यहाँ के कर्मियों में काम के प्रति उतनी गंभीरता नहीं है। समय और काम के प्रति उतनी प्रतिबद्धता स्थानीय कौशल द्वारा नहीं दिखायी जाती, जो दूसरे शहरों से आये लोगों में होती है, क्योंकि उनके पास इस काम के अलावा कोई और गतिविधियाँ नहीं होतीं। दूसरी बात यह है कि हैदराबाद में होटल उद्योग विशेषकर बजट और लक्जरी होटलों का चलन बहुत पुराना नहीं है। पंद्रह-बीस साल पहले यहाँ लक्जरी होटलों के नाम पर बस तीन चार होटलें ही हुआ करती थी, इसलिए यहाँ इसे रोज़गार के रूप में अपनाने का माहौल नहीं रहा और होटल प्रबंधन के शैक्षणिक संस्थान भी कम ही थे और समूह होटल अपनी संस्कृति से बाहर के लोगों को सीधे अपनाने से हिचकिचाते रहे हैं। हाल में कुछ समूहों ने हैदराबाद में अपना प्रशिक्षण आधार बनाया है, हो सकता है भविष्य में स्थानीय लोगों की संख्या बढ़े।


Comments

Popular posts from this blog

बीता नहीं था कल

सोंधी मिट्टी को महकाते 'बिखरे फूल'

कहानी फिर कहानी है