अपनी आँखों में बड़ी देर से छुपा ईद का चाँद


ईद आई और गुज़र गयी। बहुत सारी खुशियों और बहुत सारी यादों की सौग़ात के साथ। बहुत से नये पुराने दोस्तों के मैसेज और फोन काल्स ने ईद की खुशियों को दोबाला कर दिया। शीरखोरमा तो बस प्रतिक है, मिठास को दोस्तों, रिश्तेदारों और साथियों के उन लफ़्ज़ों में है, जो लाख मनमुटाव और तना तनी के बावजूद ईद पर मिल ही जाते हैं। सारे गिलवे शिकवे मिट जाते हैं और शुरू होती है फिर से नयी ज़िंदगी। नयी राहों पर कुछ और दोस्तों का साथ पाने के लिए, ताकि अगली ईद पर ईद मुबारक कहने वाले नये बन जाएँ।
शुक्रिया उन सब दोस्तों का जिनके अनगिनत संदेशों ने ईद को ईद बनाया।
बहुत साल पहले जब पीएचएडी के लिए स्नैपसेस तैयार कर रहा था, तो प्रो. भँवरीलाल जी ने पत्रकारिता की पीएचडी में ईद का भी एक विषय जोड़ दिया था। तब तो यह अटपटा सा लगा था, लेकिन आज सोचता हूँ तो लगता है कि हैदराबाद ही नहीं जहाँ भी जहाँ भी गंगाजमुनी तहज़ीब ने अपने प्रभाव छोड़े हैं, वहाँ वहाँ ईद संस्कृति  के रंगों में रंग कर नया माहौल बनाती है, नये फूल खिलाती है, अनोखी खुश्बू का संचार करती है। 
निदा फ़ज़ली ने कभी कहा था, 

दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजिए रिश्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए

ईद उसके कुछ आगे का रास्ता है। यहाँ हाथ भी मिलते हैं गले भी और दिल भी।  ईद का संबंध हो सकता है रोज़ा और इस्लाम से जुड़कर अरब दुनिया तक पहुँचे, लेकिन भारत में जिस किसी ने पाँच छह क्लासों तक शिक्षा प्राप्त की हो और हिंदी एक विषय के रूप में पढ़ा हो, प्रेमचंद की कहानी ईदगाह पढ़कर वह ईद से परीचित हो जाता है और हमीद का चिमटा उसे हमेशा के लिए याद रह जाता है। फिर उम्र के पायेदान पर चढ़ता हुआ वह मिली जुली संस्कृति में ईद और ईद मुबारक की संस्कृति का हिस्सा हो जाता है। 
ईद पर शायरी भी खूब की गयी है, ईद पर जब लोग अपनों से नहीं मिल पाते, उन्हें देख नहीं पाते तो लगता है कि खुशियाँ अधूरी हैं, 

ईद आयी तुम न आये क्या मज़ा है ईद का
ईद ही तो नाम है इक दूसरे की दीद का

ईद का चाँद देखने से ही मुबारकबादियाँ शुरू हो जाती हैं। ईद हो और किसी की शुभकामना न मिले तो भला ईद कैसी। शायद यही वज्ह है कि शायर कहता है,

मेरी खुशियों से वो रिश्ता है तुम्हारा अब तक
ईद हो जाए अगर ईद मुबारक कह दो
अपना तो किसी तरह से कट जाएगा यह दिन
तुम जिस से मिलो आज उसे ईद मुबारक

ईद का तआल्लुक़ के चाँद के साथ काफी गहरा है। चाहे वह आसमान में रहने वाला चाँद हो या फिर किसी की ज़िंदगी को रोशन करने वाला चाँद, वह खुशी में सच्ची बू बास भर देता है। ईद के चाँद में किसी को अपने प्रिय चाँद का चेहरा दिखाई देने लगता है।

उन के अबरू ए खमीदा की तरह तीखा है
अपनी आँखों में बड़ी देर से छुपा ईद का चाँद

विख्यात शायर शोला अलीगढ़ी ने ईद की मुलाक़ात को एक बरस दिन की मुलाकात कहा था। सही भी है कि जो साल भर याद नहीं आते वो ईद पर ज़रूर याद आते हैं। हालाँकि अब वो ईद कार्ड वाली संस्कृति नहीं रही और स्मार्टफोन खुद ईदकार्ड बनाने लगे हैं, तब भी अपनों के लिए लोग ईद से पहले ही खास बधाई कार्ड डज़िाइन करने में लग जाते हैं।  हालाँकि इससे पहले होने वाली खरीददारी भी नये नये चुटकुले पैदा करती है-

ईद पर मसरूर हैं दोनों मियाँ बीवी बहुत
एक ख़रीददारी से पहले एक ख़रीददारी के बाद

इस ईद पर भी कुछ दोस्त मिले, कुछ यादें ताजा हुईं, कुछ पल मुड़ गये। ईद पर सोशल मीडिया पर सर्चिंग के दौरान एक बहुत अच्छी नज़्म पढ़ने के मिली, एक बहुत अच्छी दुआ की शक्ल में। सभी के लिए पेश है-

मैं ने चाहा इस ईद पर
इक ऐसा तोहफ़ा तेरी नज़र करूं
इक ऐसी दुआ तेरे लिए मांगूँ
जो आज तक किसी ने किसी के लिए न मांगी हो

जिस दुआ को सोच कर ही
दिल खुशी से भर जाए
जिसे तू कभी भूला न सके
किसी अपने ने यह दुआ की थी
कि आने वाले दिनों में
ग़म तेरी ज़िंदगी में कभी न आए
तेरा दामन खुशियों से
हमेशा भरा रहे
हर चीज़ मांगने से पहले
तेरी झोली में हो
हर दिल में तेरे लिए प्यार हो
हर आंख में तेरे लिए एहतेराम हो
हर कोई बाहें फैलाए तुझे
अपने पास बुलाता हो
हर कोई तुझे अपनाना चाहता हो
तेरी ईद वाकई ईद हो
क्योंकि किसी अपने की दुआ तुम्हारे साथ हेा

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