चाहे लव हो या अरेंज....जीवन एक कला है




कॉलेज की कैंटीन में चाय की चुस्कियाँ ले रहा था कि दूरस्थ शिक्षा की एक छात्रा ने अचान सावल दाग दिया। सर...लव मैरेज ठीक होता है या अरेंट मैरेज...पता नहीं दिमाग़ में क्या चल रहा था। टका-सा जवाब दे दिया.. बिना लव के मैरेज कैसी...सवाल पूछने वाली छात्रा और उसकी सहेलियों को शायद इस जबाव की अपेक्षा नहीं थी। ...मैंने आगे जोड़ा...और ..क्या अरेंज मैरेज हो तो अपने जीवन साथी से प्रेम नहीं करोगी? कैंटीन की बैंच पर उस बातचीत से छात्राओं ने क्या परिणाम निकाला पता नहीं, लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि कुछ देर के लिए ही सही छात्राओं का वह समूह इस बात का कायल हो गया कि प्यार, मुहब्बत, वफा जैसे बहुत सारे शब्द हर लम्हे में अलग-अलग संदर्भों के साथ जीवन में नये-नये अर्थ पैदा करते हैं।



बहुत सारे चिंतकों ने कहा है कि जीवन एक कला है, लेकिन शर्त यही है कि उसे उस रूप में जिया जाए। यह एक ऐसी कहानी, ऐसा नाटक है, जिसमें व्यक्ति खुद ही नायक, खलनायक, लेखक और निर्देशक है। युवावस्था के कुछ वर्ष एक खास आकर्षण में संवरकर या बिखरकर गुज़र जाते हैं। उसी उम्र के पड़ाव में  में `लव' और `अरेंज' जैस शब्दों में सिर खपाया जाता है। 

मैंने उस छात्रा से पूछा था कि क्या तुम अपने माता पिता, भाई बहन और रिश्तेदारों से प्यार नहीं करतांr, उस प्यार के लिए  क्या रिश्तों का इन्तेख़ाब पहले से किया जाता है, या फिर सब अरेंज रहता है और हम बिन सीखे बिन कहे, बिन बताए सब से प्यार करने लगते हैं, बल्कि समय के साथ भावनाओं के सिंचाई से प्रेम का यह पौधा बहुत बढ़ा होता है। यहाँ कोई धोखा नहीं होता, बल्कि सारे दु:ख स्वीकार्य होते हैं।...लेकिन जीवन को उस कलात्मक दृष्टि से देखने के जज़्बे पर फास्टफुड नस्लों का बेसबर पन धुंध की तरह छाने लगा है। सब कुछ बहुत जल्दी चाहिए। इस जल्दी में निश्चित रूप बहुत छोटे-छोटे दुख भी पहाड़ की तरह दिखने लगेेंंगे और तनाव का माहौल अपने हाथ पैर पसारने लगेगा। 

एक दिन किसी ने बड़ा अच्छा सवाल किया था, जीवन में भला काहे की कला... पूछा गया कि क्या वह किसी बात पर खुश होता है, तो क्यों और दुखी होता है तो क्यों? बहुत ज़ोर से टहाके लगाता है या दहाड़े मार कर रोता है तो क्यों, ..खुद की बात अगर छोड़ भी दें तो किसी की मुस्कुराहटों में निसार होने की बात क्या उसके मन में कभी नहीं आती। यही तत्व जीवन से कला में और कला से जीवन में `शेयर' होते रहते हैं। 
 आज वाट्स पर उधार या मुफ्त की टिप्पणियों  और चुटकुलों के बीच इन बातों की बहुत ज्यादा ज़रूरत है ताकि जीवन में को कलात्मकता को जगह जगह देकर उसे सूखे रेगिस्तान के बजाय खुश्बूदार बहारिस्तान का हिस्सा बनाया जा सके।  इसके लिए प्यार, मुहब्बत, खुलूस, वफ़ा बहुत ज़रूरी हैं। इन भावनाओं को केवल `लव' और `अरेंज' जैसी सीमाओं में बांधने के बजाय, विस्तार दिया जाए।
किसी ने कोई अच्छा काम किया है तो उसकी तारीफ करने में कंजूसी न करना कला ही है, ताकि उसकी उस कामयाबी की खुशी को विस्तार देकर अगली कामयाबियों का मार्ग प्रशस्त किया जा सके। दिन प्रति दिन नफरत की आग में झुलसती इस दुनिया को प्यार की बहुत ज़रूरत है। वो प्यार जो हमदर्दी सिखाता है, दूसरे के दुख को बाँटना सिखाता है, खुशियों को दोबाला करना सिखाता है, हैवानियत को इन्सानियत में बदलना सिखाता है। यह कभी `अरेंज' नहीं होता ना ही कभी कोई विकल्प तलाश करता है, जब किसी से होता है तो होता है, वह देना जानता है। बदला नहीं चाहता। यही जीवन की कला है।

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