कल रात अताउल्लाह को सुन रहा था। एक शेर बड़ा अच्छा लगा। पेश है-
मेरे महबूब ने मुस्कुराते हुए नकाब अपने चेहरे से सरका दिया
चौदहवीं रात का चाँद शर्मा गया जितने तारे थे सब टूट कर गिर पड़े
क्या बताऊँ के मायूस आंसू मेरे किस तरह टूट कर जेबे दामां हुए
नर्म बिस्तर पे जैसे कोई गुलबदन अपने महबूब से रूत्ढ़ कर गिर पड़े

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