दुश्मनी के बाद ही हुई थी मोदी से दोस्ती- ज़फ़र सरीशवाला
ज़फर यूनुस
सरीशवाला मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति हैं। उनका जन्म 9 दिसंबर, 1963 को गुजरात के व्यापारी घराने में हुआ
इंजीनियरिंग की शिक्षा पूरी करने के बार उन्होंने व्यापार में कदम रखा। कई प्रकार
के उद्यम किये। कुछ में नाकामी हाथ लगी, लेकिन बाद में वे
बीएमडब्ल्यू जैस कीमती कार के डीलर के रूप में उभरे गुजरात दंगों के बाद उन्होंने
तत्कालीन् मुख्यमंत्री नरेंद्रमोदी के खिलाफ मोर्चा खोला। विरोध प्रदर्शन किये।
ज़फर सरीशवाला के बारे में कहा जाता है कि 2002 के दंगों में उनकी
कंपनी पारसोली को 3.3 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। एक समय ऐसा भी था, जब उनका परिवार भारत छोड़ने की सोच रहा था, लेकिन उन्होंने
अपने व्यापार को पुनः स्थापित किया और आगे बढ़े। इस दौरान अचानक वे मोदी के
हितचिंतकों की सूची में आ गये। आज उनका शुमार मोदी के निकटतम मुस्लिम व्यक्तियों
में होता है। वे स्वयं को राजनीतिज्ञ नहीं मानते, लेकिन बताया जाता
है कि मोदी ने उन्हें एक उद्देश्य दिया है और इसके लिए वे अपने काम
(मानूकुलाधिपति) को अपने उद्योग पर थमिकता देते हैं। हाल ही में वे मानूके दौरे पर
आये थे। एक साक्षात्कार में उनसे हुई बातचीत के अंश इस प्रकार हैं:-
क्या कभी आपको यह
विचार आया कि आप भारत सरकार की एक बहुत बड़ी संस्था के कुलाधिपति बनाए जाएँगे?
मैंने तो ख़्वाब
में भी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा। जब मैं आया तो अपनी अक्ल् का इस्तेमाल किया। लोगों
को मुझे कुलाधिपति बनाए जाने से बड़ी समस्या थी। लोगों को लगता था कि यह कार डीलर
है, इसे शिक्षा के बारे में क्या पता ? हम कार डीलर हैं, लेकिन ऐसे काम किये, जो 18 साल से नहीं हुए सबसे बड़ी बात यह थी कि इस
विश्वविद्यालय को कोई जानता नहीं था यहाँ के विद्यार्थी हीनभावना के शिका थे। आज
भी इस भावना से कुछ विद्यार्थी बाहर नहीं निकल पाये हैं। मुझे उन्हें यह पढ़ने पर
सम्मान की भावना पैदा करन है। मैं चाहता हूँ कि कैंपस की 11 शाखाओं और 157 अध्ययन केंद्रों क सैटेलाइट से जोड़ा जाए। इसके
लिए समझौता किया जा रहा है। इससे दूरस्थ शिक्षा केंद्र सीधे प्रत्यक्ष शिक्षा
पद्धति जुड़ जाएँगे। मैं उद्यमी हूँ, मेरा उद्देश्य है कि विद्यार्थियों को उद्यम से जोड़ा जाए। मैंने संयुक्त राष्ट्र की संस्था
अनटैट के प्रतिनिधियों को यहाँ लाया हूँ। यहाँ हमें उसकी चेयर स्थापित करना है।
जब आपका नाम मानू
वे कुलाधिपति के रूप में सामने आया तो मुस्लिम समुदाय ने उसे सहजता से नहीं लिया, बल्कि कई लोगों ने कहा कि आप मोदी का सकारात्मक चेहरा बनने का प्रयास कर रहे हैं?
मैं मानता हूँ कि
मेरा क्वालीफिकेशन ऐसा नहीं है कि मुझे विश्वविद्यालय का कुलाधिपति बनाया जाए, लेकिन मोदी साहब ने जब मुझे यह पद सौंपा, तो मैंने तन-मन-धन
से इसके लिए काम करने का निर्णय लिया। मोदी सरकार से विश्वविद्यालय के लिये 205 करोड़ रुपये लाने में मैं सफल रहा। इसमें से 110 करोड़ वे थे, जो वर्ष 2012 से लंबित थे। अगर लोग मुझे मोदी सरकार क
पॉजिटिव चेहरा समझते हैं, तो ऐसा हुआ भी। यह सब राशि मोदी सरकार ने ही त
जारी की।
आप के कुलाधिपति
बनने के बाद विश्वविद्यालय में क्या परिवर्तन आये?
जब मैंने विश्वविद्यालय
के कुलाधिपति के रूप में पद्धार संभाला, तो कई सारी
समस्याएँ थीं और कई सारे कार्य थे, जिने बेहतर करना
था। मैंने देखा कि केंद्र सरकार का विश्वविद्यालय है, लेकिन कई सारे पाठ्यक्रम थे, जिन्हें संबंधित प्राधिकरणों द्वारा अनुमति
नहीं मिली थी उन सभी पाठ्यक्रमों को मान्यता दिलाने में मैंने सफलता हासिल की।
उर्दू, अंग्रेज़ी इतिहास जैसे विषयों में दूरस्थ
पद्धति से स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमो को डिस्टन्स काउंसिल से मान्यता मिल गयी। दरभंगा, बेंगलुरू की पॉलिटेक्निक को मान्यता के लिए आधारभूत संरचना हेतु 1.5 करोड़ रुपये आवंटित किये गये। इसी तरह आईटीआई के लिए 25-25 लाख रुपये जारी किये गये हैं, जिसे शीघ्र ही एआईसीटीआई से मान्यतामिल जाएगी।
शिक्षक प्रशिक्षक केंद्रों को उन्नत करने के लिए इतनी ही निधियाँ जारी की गयी हैं।
मेरा पहला विजन था कि निधियों की कमी के कारण विश्वविद्यालय का कोई काम न रुके। 7 कॉर्पोरेट संस्थाओं के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये।
आमतौर पर
यूनिवर्सिटी चांसलर विश्वविद्यालय के लिए इतने सक्रिय नहीं होते, जितने आप दिखते हैं?
ऐसा मैं विश्वविद्यालय
के हित में ही कर रहा हूँ। 18 साल में यहाँ के विद्यार्थियों को बाहर की
दुनिया के बारे में कोई सीधी जानकारी नहींथी। पहलीबार मैंने विद्यार्थियों का
औद्योगिक दौरा करवाया। रिलायंस, बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज, एक्जिम बैंक, यूएफओ और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया का दौरा
उन्होंने किया। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। विद्यार्थियों को एक्सपोजर भी मिला। उर्दू
भाषी विद्यार्थियों का भविष्य सुधारने के लिए आपके पास क्या विज़न है? सबसे पहले मैं यह बता दूँकि इनमें क्षमता और कौशल की कमी नहीं है। बनारस, फिरोज़ाबाद और कश्मीर में युवाओं को देखिये कि पारंपारिक कार्यों में इनके
कौशल का कोई हाथ नहीं पकड़ सकता, लेकिन ये प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाते हैं। वे
कुशल कारीगर से उद्यमी बनने के रास्ते में बीच में ही अटक जाते हैं। उनके कौशल का
अधिक लाभ नहीं मिलता। हम चाहते हैं कि वे प्रतिस्पर्धा में बने रहें। इसके लिए हम
उन्हें तैयार कर रहे हैं। मैंने रिजर्व बैंक के दौरे के दौरान अपने विद्यार्थियों
को देखा कि वे कुछ ऐसे सवाल अधिकारियों से कर रहे थे कि उनकी क्षमता का अंदाज़ा
आसानी से लगाया जा सकता है। बस उन्हें सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
एक उद्यमी के रूप
में जिस दिन आपने उद्योग क्षेत्र में कदम रखा था, वह कैसा रहा?
उद्यमता मेरे खून
में थी। पीढ़ियों से कारोबार करते आ रहे हैं। मुझे लगता है कि आदमी नाकामी से बहुत
कुछ सीखता है। सिर्फ इसे अवसर के रूप में लेना चाहिए। अक्लमंद आदमी वह है, जो अपनी नाकामी से सीखे। मैंने इंजीनियरिंग के बाद मार्केटिंग प्रबंधन का
डिप्लोमा किया और फ्रेश ग्रेजुएट के रूप में व्यापार के क्षेत्र में कदम रखा।
परिवार के स्थापित वॉल्व बनाने का कारोबार था। मैं परिवार में सातवीं पीढ़ी का
कारोबारी हूँ, लेकिन मुझे लगता था कि मेरा अपना कारोबार हो।
सर्वप्रथम पेंटकाकारोबार शुरू किया, जिसमें नाकामी
मिली। फिर मोदी साहब की दोस्ती भी महँगी पड़ी। उस समय की केंद्र की कांग्रेस सरकार
ने हमारे कारोबार पर छापेमारे, तब भी हम नहीं हारे। कारोबार करते हुए
कईनाकामियों का सामना करना पड़ा और एक दिन बीएमडब्ल्यू की डीलरशिप में कामयाबी
मिली।
आपको
बीएमडब्ल्यूकी डीलरशिप किस तरह मिली ?
डीलरशिप के लिए
हमने आवेदन दाखिल किये। उन्हें हमारी योजना अच्छी लगी। हालाँकि उस समय जितने लोगों
ने डीलरशिप के लिए आवेदन किये, सभी अनुभवी थे। एक मैं ही था, जिसे अनुभव नहीं था, लेकिन कंपनी की मेरा आइडिया अच्छा लगा। फिर 5 साल तक की कैटगरी में अच्छे व्यापार के लिए मुझे पुरस्कार मिले।
राजनीति की ओर
आपका झुकाव क्यों और किस तरह हुआ?
मेरी राजनीति में
रुचि आज भी नहीं है। मुझे लगता था कि मुसलमानों का सरकार के साथ एक रिश्ता होना
चाहिए। कोई ऐसा मेकॉनिज्म हो, जिससे समुदाय का सरकार से सीधा संपर्क हो। मेरी
मोदी साहब से दोस्ती ही मुझे इस ओर ले आयी। आप नरेंद्र मोदी के काफी करीबी माने
जाते हैं। हाल के वर्षों में यह सुना गया कि वे जिस तरह का भाषण देते हैं, उसमें आरएसएस का वह शुद्धवाद नहीं है। वे सरल हिंदुस्तानी में बात करते हैं।
इस बारे में आपकी क्या राय है? मोदी साहब में ये कोई नयी चीज़ नहीं है। वे
शुरू से ही ऐसे हैं। यही वजह है कि मैं तेरह साल से उनके साथ जुड़ा हूँ। दुनिया ने
शायद उनकी अलग छवि बना दी या अपनी एक राय बना ली।
आपकी मोदी से पहली
मुलाकात कैसे हुई?
मेरी लड़ाई थी उनके साथ। वर्ष 2003 में उनके खिलाफ
मैंने आंदोलन चलाया। फिर एक दिन उनके पास से
आमंत्रण आया कि बैठकर बात करो। किसी से भी आपका झगड़ा अक्सर गलतफहमी के कारण होता
है। मैं समझता हूँ कि दुश्मन के साथ सही कम्युनिकेशन होना चाहिए और खास तौर पर वह
दुश्मन, जो आपने अपनी धारणा से बना लिया हो। मोदी साहब
से दुश्मनी ही उनसे दोस्ती की वजह बनी।
आपके बारे में कहा
जाता है कि आप काफी बोल्ड हैं। इस तरह के फैसले लेने में किस तरह के जोखिम सामने
आते हैं?
मेरा सबसे बड़ा
फैसला मोदी साहब के साथ होना रहा। जब सारी दुनिया उन्हें हिटलर कह रही है। ऐसे समय
में मैंने उनसे संवाद कर उनके साथ होने का फैसला किया। लोगों ने मुझे खूब सुझाव
दिये, लेकिन मैंने कहा कि मेरे पास भी दिमाग है, मैं भी सोच सकता हूँ। मेरा नज़रिया मैंने उनके सामने रख दिया, लेकिन जैसा माहौल है, लोग यह समझते हैं कि सामने वाले का नज़रिया अगर
हमसे भिन्न है, तो वह हमारा दुश्मन है। विचारों में भिन्नता
जायज है, लेकिन लोग अगर किसी से मिलने पर ही अपनी राय
बना लेते हैं, तो उनके बारे में क्या कहा जा सकता है। मैं डरा
नहीं। मेरे खिलाफ फतवे भी जारी किये गये। मेरा मानना था कि यह आदमी (मोदी) सही है
और इसके साथ काम करना चाहिए।
आप राजनीति में
आये, तो अपने कारोबार के साथ कितना इंसाफ कर पाये ?
मैं बिल्कुल इंसाफ
नहीं कर पाया। जितना दिमाग मैंकारोबार में लगा सकता था या जितना समय उसे दे सकता
था, वह नहीं कर सका। अब कारोबार मेरे दोनों भाई चला
रहे हैं। मैं यूनिवर्सिटी के के रूप में कहीं आता-जाता हूँ, तो अपने खर्च पर ही। मुझे लगता है कि मैं एक परिवर्तन लाने के लिए यहाँ
नियुक्त किया गया हूँ। मुझे ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।
एक ओर आप मोदी के
दोस्त हैं और एक ओर मुसलमानों के हितचिंतक होने का दावा करते हैं। यह दोनों पक्ष
निभाना कितना मुश्किल है?
मुझे लगता है कि हमारी प्राथमिकताएँ सही नहीं हैं। हम बहुत जल्दी उलझ जाते
हैं। जहाँ तक कॉमन सिविल कोड का मामला है, तो यह समझना चाहिए
कि यह भारत के लिए संभव नहीं है। मैंने इस पर खूब कहा है कि कॉमन सिविल कोड
मुसलमानों की नहीं, बल्कि इसका समर्थन करने वालों की समस्या है। हम
उस पर उसी समय बात कर सकते हैं, जब उसका दस्तावेज़ तैयार करें। लाँ कमिशन के
चेयरमैन को ही पता नहीं है कि कॉमन सिविल कोड क्या है? इस मुद्दे पर चर्चा की ज़रूरत ही नहीं है, क्योंकि यह केवल
ईसाई, पारसी और हिन्दू समाज के कई सारे समुदाय हैं, जिनके अपने निजी नियम हैं। मैंने सरकार और सरकार चलाने वालों को करीब से देखा
है। मेरा मानना है कि कोई सरकार केवल हिंदुओं या मुसलमानों के लिए काम करे, यह संभव ही नहीं है। यह इलेक्शन के ज़माने में बोलने के लिए ठीक है, लेकिन संवैधानिक रूप से यह संभव नहीं है। मैं बता दूँ कि जो लोग आज कॉमन सिविल
कोड की बात कर रहे हैं, वो जिन्हें मानते हैं, वे हैं गुरु गोलवलकर। उन्होंने कहा था कि भारत में कॉमन सिविल कोड नहीं आना
चाहिए, क्योंकि हमारा देश अनेकता में एकता की संस्कृति
रखता है।
युवा पीढी को क्या
संदेश देना चाहेंगे?
मैं कहना चाहूँगा
कि हमें अपनी प्राथमिकताओं को तय करना पड़ेगा। ऐसी चीज़ों में नहीं उलझना चाहिए, जो हमसे सीधे संबंध नहीं रखतीं। ज़माना आपको छोटीछोटी चीज़ों में उलझाने की
कोशिश करता है, ताकि आप बड़ी चीज़ तक न पहुँचें। इस बात को
हमेशा ध्यान में रखना होगा। मैं युवाओं से कहना चाहता हूँ कि नाकामी कोई परेशान
करने वाली चीज़ नहीं है। नाकामी से सीखकर ही कामयाबी मिलती है।
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