बेढ़ंगा होता जा रहा है हैदराबाद का चाँद रात बाज़ार
चाँद
का देखना, चाँद रात की मुबारकबाद और
ईद की पूर्व रात की ख़रीददारी कभी पुराने शहर हैदराबाद की खास विशेषता हुआ करती
थी। कुछ लोग इसकी एक झलक के लिए ही इस ओर खिंचे चले आते थे। आज भी आते हैं, लेकिन न आकर्षण न खिंचे चले आने का सुख, बल्कि बाज़ार से बाहर निकलते वक़्त शिकायतें, झुंझलाहट, तनाव, फिर से न आने का वक़्तिया वादा और भीड़ से
मुक्ति पाकर सांस लेना ही रह गया है।
हैदराबाद
के पुराने शहर में अगर कोई ख़ूबसूरत, आकर्षक और मनमोहक सार्वजनिक
स्थल है तो वह चारमीनार के पूरब उत्तर-पूर्वी दिशा में फैले दो बाज़ार, नये पुल लेकर चारमीनार तक फैला दीवान देवढ़ी, मदीना,
पत्थरगट्टी, चारकमान और गुलज़ार हौज़ का
हिस्सा और दूसरी ओर लाड़ बाज़ार, लेकिन इन दिनों यह बाज़ार
बेढंगा होता जा रहा है। खास कर उत्सव के दिनों में इसकी चमक पर अव्यवस्था की धुंध
जमती जा रही है।
रमज़ान
का महीना ख़त्म हो गया है और ईद की खुशियाँ भी बंट चुकी हैं, लेकिन
जिन्होंने महीने के आख़री दिनों और चाँद रात में कई विशेषताओं से भरे पुराने शहर के
इन दो प्रमुख बाज़रों की स्थिति देखी हो, उनकी चिंताए बढ़
गयी होंगी। यह लाज़मी भी है। जो इस शहर में रहता है, जिसने
इसे अपनाया है, इससे प्यार करता है, इसकी
और इसमें रहने बसने वालों की भलाई चाहता है, बाज़ार की यह
स्थिति देखकर उसकी बेचैनियाँ बढ़ जाएँगी।
पत्थरगट्टी
और मदीना की यह लंबी चौड़ी सड़क यूँ तो बहुत पहले से तंग कर दी गयी है, लेकिन
रमज़ान के आख़री दिनों में यह पूरी तरह से फुटपाथी व्यापारियों द्वारा कब्ज़ाई
गयी। उन्हें फुटपाथी भी नहीं कह सकते, बल्कि अंग्रेज़ी का
शब्द स्ट्रीट वेंडर्स उनके लिए सटीक नहीं है। इसलिए भी कि उन्होंने किसी एक गली को
नहीं बल्कि पूरी सड़क को बंद कर दिया है। रमज़ान की आख़री रातों और विशेषकर
चाँदरात में यहाँ आप कार और मोटर साइकिल तो दूर की बात है, साइकिल
पर जाने का तसव्वुर भी नहीं कर सकते। यहाँ तक कि पैदल भी वही लोग जा सकते हैं,
जिनकी बाज़ुओं में इतना दम हो कि वे कई बार धकेले जाने के बावजूद
अपने पैरों पर खड़े रह सकते हैं।
नये
पुल से चारमीनार तक का रास्ता आम दिनों में सात से दस मिनट में पैदल चलकर तय किया
जा सकता है,
लेकिन जिन लोगों ने चाँदरात में रात के नौ, दस,
ग्यारह बजे प्रवेश किया हो, वे जानते होंगे कि
यह रास्ता पैदल तय करने में दो या तीन घंटे भी लग सकते हैं। सड़क के दोनों ओर
मुख्य दुकानों के सामने से रोड डिवाइडर तक ज़मीन, ठेलाबंडियों
और अस्थायी मंचों पर लगी हुई दुकानों की कई कतारें और दुकानों पर चिल्लाते, हो-हल्ला करते, अजीबो ग़रीब आवाज़े निकलते युवा झल्लाहट को बढ़ाने का ही काम करते हैं।
बाज़ार में चलते हुए आप दुकान पर कोई चीज़ देख सकते हैं न परख सकते हैं। कुछ ख़रीद
लो तो यह बड़ी बात है। यदि आप अपनी ज़रूरत की किसी चीज़ को खरीदना चाहते हैं या
पहले से निश्चित किसी दुकान पर पहुँचना चाहते हैं तो वहाँ पहुँचने तक झुंझलाहट से
भर जाते हैं। ऐसे में यदि कोई अप्रिय घटना हो जाए तो राहत कार्य के लिए पुलिस और
अग्निशमक दलों को समय पर पहुँचना नामुमकिन है।
इतना
ज़रूर है कि ईद से पहली रात का यह बाज़ार आज भी अपने बेढंगेपन के बावजूद गंगा
जमुनी तहज़ीब के नमूने के रूप में देखा जा सकता है, जहाँ सभी धर्मों के लोगबाग
दिख जाएँगे। यहाँ तक कि तफ़रीह के लिए आये गोरे चेहरे भी बाज़ार की भीड़ का हिस्सा
होंगे और बाज़ार से निकलते हुए ख़रीदी के नाम पर दो से चार-पाँच घंटे बिताने के
बावजूद एक दो चीज़ें ही ख़रीददारों के हाथ में होंगी और कई तो ख़ाली हाथ भी हो सकते
हैं। आश्चर्य इस बात पर भी है कि बाज़ार में रहने वालों को इसकी चिंता कम ही है।
इसलिए भी कि यह जितना बेढ़ंगा हुआ है, उससे अधिक होने के लिए
गुंजाइश भी नहीं है।
चिंता वाजिब और तकलीफदेह भी है। जो खो रहे हैं अनमोल है । पर इसका होश न ओवेसी को है न सरकार को। हम क्या कर लेंगे ? आप लिखते रहिये।हम पढ़ते रहेंगे।
ReplyDeleteशुक्रिया प्रो.आलोक जी, लिखना पढ़ना हमारे हिस्से की ज़िम्मेदारी है, निभाते रहेंगे।
Deleteज़बरदस्त सलीम भाई इसी तरह लिकते रहिये
ReplyDeleteNice Masha Allah
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