अताउल्लाह खान - जिन्हें गाना सुनने पर पीटा जाता था
(आज अताउल्लाह की गायी एक पुरानी रचना सुन रहा था। उन पर लिखा एक पुराना लेख डायरी
में मिल गया। पेश है।)
भारतीय उप महाद्विप में कई ऐसे कलाकार हुए
हैं,
जिन्होंने अपनी गायकी से बिल्कुल अलग जगह बनाई है, उस सूची में अताउल्लाह खान
महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। एक ऐसा कलाकार जिसकी गायकी में ही नहीं बल्कि ज़िंदगी
में भी दर्द की कई अनकही दास्तानें मौजूद हैं। उनके द्वारा गायी गयी ग़ज़लों के
विषय भी दर्द की अभिव्यक्ति का निराला अंदाज़ रखते हैं। ऐसा लगता है कि यह उनके
गाने के लिए ही लिखे गये हैं।
अस्सी के दशक में अतालउल्लाह पापुलर होने लगे थे। हालाँकि जहाँ
नुसरत फतेह अली ख़ान,
मेहदी हसन और ग़ुलाम अली जैसे कलाकारों का दबदबा हो, वहाँ अताउल्लाह खान
जैसे कलाकार का अलग अंदाज़ लोगों को आकर्षित करना मुश्किल था, लेकिन वो उभरे और उभरते रहे। उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया
जासकता है कि 1995 में गुलशन कुमार जब अपने भाई कृष्णकुमार के लिए फिल्म बेवफा सनम
बना रहे थे तो न केवल अताउल्लाह की
लोकप्रियता को भुनाया गया, बल्कि उनकी लोकप्रिय ग़ज़लों को
सोनू निगम की आवाज़ में प्रस्तुत किया गया।
पाकिस्तान के राज्य पंजाब की आखरी तहसील
मियाँवाली के ईसाक़ेल में जन्मे अलाउल्लाह ने शोहरत की बुलंदियों को छुआ। दुनिया
भर में उनके चाहने वाले बड़ी संख्या में मौजूद हैं। दर असल अताउल्लाह एक
आदिवासी इलाके में, जहाँ सरायिकी भाषा बोली जाती है, पले बढ़े। उनके पिता चाहते थे कि वे डॉक्टर या फिर आर्मी में कर्नल बनें,
लेकिन उनकी पढ़ने में दिलचस्पी बिल्कुल नहीं थी। किताबों में दिल
बिल्कुल नहीं लगता था। बड़ी मुश्किल से मैट्रीक तक पहुँचे और बहुत बाद में दूरस्थ
शिक्षा से बीए की डिग्री प्राप्त की। रूची थी तो बस सुरीली आवाज़ सुनने की। बताते
हैं कि अच्छी सुरीली आवाज कानों में पड़ती है रूह में कुछ महसूस होता, लगता कि संगीत में कुछ है, उन्हें अपनी ओर खींच रहा
है।
वो घऱ जहाँ गाना तो दूर गाने को सुनना भी
ग़लत माना जाता था,
ऐसे परिवार में पले बढ़े, अताउल्लाह ने अपने शौक़ को बचाये रखा, न सिर्फ ज़िंदा
रखा, बल्कि उसमें नयी-नयी सांसे भरते रहे। उन्हें किसी
उस्ताद ने सिखाया नहीं। वे कहते हैं, 'मैं
जिस इलाके में पैदा हुआ वहाँ महरूमियाँ ही महरूमियाँ थीं अब भी हैं। मैं क़बाइली
पठान हूँ। उस समय वहाँ गाना गाना तो क्या सुनना भी जुर्म समझा जाता था। गाने की खबर
अगर अब्बू तक पहुँचती थी तो शाम में जो हाल करते थे वो जानवर से भी बुरा होता था।
मैं ऐसा कोई कोना खुदरा ढुंढ़ता जहाँ मेरी आवाज़ कोई न सुन सके। एक दो दोस्त थे, उन्हें पकड़कर ले जाता। हालात ने मुझे पॉलिश
किया।'
अताउल्लाह के
गायन में सुनने वाले को एक खास शब्दावली मिलेगी, शब्द के साथ
एक ज़िंदगी और जीने के बाद वाला दर्द। मौत, मय्यत, कफ़न, जनाजा, दफ़न, कब्र, फूल, दिये और न जाने इस
परिवेश के कितने ही शब्दों का प्रवाह उनकी गायकी में है।
मिले न फूल तो तुरबत पे मेरी हँस देना
सुना है फूल बरसते हैं मुस्कुरा देना
जहाँ हसरतों के गले पर छुरियाँ चलती हैं, जहाँ
तमन्नाएँ मिट्ट्टी में मिलती हैं, ऐसा लगता है इश्क में चोट
खाया हुआ एक आशिक अपने दर्द का दफ्तर खोल रहा है। एक बार एक पत्रकार ने अताउल्लाह से
उनकी मुहब्बत के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा था, ' मुहब्बत तो सारे करते हैं। मुखतलिफ लोगों पर
उनका तास्सुर अलग होता है। मुझे गाने की वज्ह से वो
नहीं मिली। दिल लगाया तो दिल्लगी के लिए.. बन गया रोग ज़िंदगी के लिए।'
चाहे महफिलें हों, फिल्में
हो या फिर बड़े मंच अताउल्लाह ने खूब गाया, लेकिन उन्हें
अपने आपको स्थापित करने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े। जंगलों में घूम-घूम कर गाने
का अभ्यास किया। शायद यही कारण है कि उनका आधार शास्त्रीय गायन के बजाय लोक
गायकी-सा रहा। इसे लेकर जब ऑडिशन के लिए रेडियो टेलीविजन पर पहुँचे तो, वहाँ उन्हें यह कहकर नकारा गया उन्हें गाना नहीं आता। उस्तादों से सीखकर
आने के लिए कहा गया। वक़्त उनका उस्ताद बन गया और उन्होंने अपने आपको लोगों की अदालत
में पेश किया। वो दिन दूर नहीं थे ज रेडियो और टेलीविजन को खुद उन्हें बुलाना
पड़ा। 450 से अधिक अलबम उर्दू, पंजाबी और सराइकी भाषा में सामने आये।
बाबा बुल्लेशाह,
ख्वाजा फरीद, कमर जलालवी, अहमद फ़राज़, अमीर हुसैन सहित कई शायरों
को गाया।
फिल्मों के लिए अधिक नहीं गाया। इस बारे में
उन्होंने एक बार कहा था, 'मैं तो प्लेबैक सिंगर हूँ नहीं हूँ। आधे आधे
घंटे का गाना गाता हूँ, वो फिल्म में कहाँ चलेगा। आरिफ
लुहार और मादाम(मैडम) नूर जहाँ के साथ भी गाने का मौका मिला।'
उनकी गायी हुई एक गज़ल के पहले एक शेर है..
हम तो तिनके चुन रहे थे आशियाने के लिए
आपसे किसने कहा बिजली गिराने के लिए
हालाँकि बिजलियाँ ज़िंदगी में कई बार आशियाने
पर गिरीं,
लेकिन वे तिनके चुन चुनकर आशियाना बनाते रहे और आज इतना कुछ छोड़ा
है कि संगीत की ज़मीन पर बनाया हुए उनके आशियाने को बिजलियों और तूफान से कोई
ख़तरा नहीं है।
Thanx bhai for the informative post
ReplyDelete