ट्रायल रिंग से बाहर

कुछ लोग होंगे, जो दूसरों की जेब काटकर खुश होते हों, लेकिन कुछ तो ऐसे भी मिलेंगे, जो जेब कटवाकर भी खुश होते हों। इतना ही नहीं, कभी तो हम स्वेच्छा से जेब कटाकर भी अंजाने में अपने नुक़सान के भागीदार बनते हैं। दूसरे की क्या सोचें, हो सकता है, कभी अपने पर भी ऐसा कोई लम्हा आया हो। पिछले दिनों आरटीए लायसेंस परीक्षा के ट्रायल रिंग का अवलोकन करने का मौका मिला। यहाँ हर उस व्यक्ति के जीवन के डेढ़ दो घंटे का समय गुज़रता ही है, जिसे दुपहिया या चौपहिया वाहन चलाने का लायसेंस प्राप्त करना हो। आज कल सत्तर से अस्सी प्रतिशत लोग यहाँ जाते ही हैं। ट्रायल रिंग में उतरने वाले उम्मीदवारों को देखना दिलचस्प नज़ारा होता है।
यहाँ कुछ लोग सीधे सरकारी फीस भरकर रिजेक्ट होने की संभावना के साथ आते हैं तो और कुछ पूरे विश्वास के साथ अपने एजेंट के साथ होते हैं। यदि आपकी नज़र दुपहिया के ट्रायल रिंग पर पड़ती है तो हैरत ही होगी। गड्ढों और पानी से भरे इस रिंग को देखकर एहसास होता है कि इसे नियंत्रण के साथ पार करने के लिए काफी महारत चाहिए। इसे देखकर लगा कि जो व्यक्ति इस परीक्षा को पास कर ले, उसे ही लायसेंस दिया जाना चाहिए, इसलिए कि यहाँ तो किसी वाहन से टकराने का डर नहीं रहता, लेकिन जब आदमी कोई गाड़ी लेकर वास्तविक सड़क या गली पर निकल जाए, वहाँ तो उसकी और उसके कारण दूसरों की जान हथेली पर रहती है। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाए कि हममें से अकसर लोग ले-दे कर इस परीक्षा से बच निकलने की कोशिश करते हैं और बच भी जाते हैं, लेकिन इसके परिणाम वास्तविक रिंग में (सड़क पर) उनके अलावा दूसरों को भी भुगतने पड़ते हैं।

बहुत साल पहले की एक घटना याद आयी, जब पहली बार दुपहिया का लायसेंस प्राप्त किया था। जब भी बिना लायसेंस के गाड़ी चलाने पर पुलिस द्वारा पकड़ जाने का डर ऐसा ही था, जैसा अब है। बढ़ती चालान प्रक्रिया ने आज के वाहन चालक को कुछ जागरूक ज़रूर कर दिया है, लेकिन ले-दे कर छोड़ना तब भी था और आज भी है। खैर.. घटना कुछ यूँ है... उन दिनों बिना गेयर की गाड़ी चलाने के दौरान जान पहचान के एक एजेंट ने गेयर वाली गाडी का लायसेंस बनवाने का लालच दिया। उन्होंने आवेदन भरा और अपने लाभ के साथ फीस भी काट ली। याद आता है तो हँसी आती है। स्कूटर चलानी तो आती नहीं थी, लेकिन लायसेंस पर्यवक्षेण इंस्पेक्टर के सामने स्कूटर स्टार्ट कर उतार पर दूर तक चले गये। कुछ दिन बाद लायसेंस हाथ में था।

पता नहीं हमने आरटीए इंस्पेक्टर को बेवक़ूफ़ बनाया था या एजेंट और आरटीए इंस्पेक्ट ने मिलकर हमें बेवक़ूफ़ बनाया था, क्योंकि हमारी जेब हमने स्वेच्छा से काटी थी। यह जानते हुए भी हमें स्कूटर चलानी नहीं आती, लायसेंस पाकर खुश हो गये थे। लायसेंस के साथ कई बार स्कूटर से गिरकर हाथ- पैर छिलवाने की घटनाएँ अलग हैं। बीते बीस बच्चीस वर्षों में बहुत सारे वाहन चला लिए, लेकिन उस सच्ची खुशी का लम्हा हाथ से छूट गया, जो वास्तविक परीक्षा से गुज़र के पास होने के बाद मिल सकता था।

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