हैदराबाद मेट्रो ... सत्रह साल पहले खुली आँखों से देखा हुआ एक ख़्वाब
हैदराबाद मेट्रो
रेल के ट्रायल रन में कुछ देर का सफर करते हुए यादों का सिलसिला अचानक सोलह-सत्रह
साल पहले की एक सुबह तक पहुँच गया और कई सारी यादें ताज़ा होती गयीं। आज
हैदराबाद ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोग हैदराबाद मेट्रो के बारे में जानते हैं
और इस ब्लॉग को लिखने के चौथे दिन यानी 29 नवंबर की सुबह हज़ारों लोग इसमें सफर
करने लगेंगे, लेकिन जिस दिन इसका ख़्वाब एक शासक की आँखों में पहली बार उभर आया
था, वहाँ किस्मत ही कहिये कि मैं एक युवा पत्रकार के रूप में मौजूद था और मेरे साथ
थे दि हिंदू के पत्रकार रविकांत रेड्डी और वे शासक थे चंद्रबाबू नायुडू।
हैदराबाद मेट्रो नागोल स्टेशन पर |
बात साल 2001 के एक
सुबह की है। तत्कालीन आंध्र-प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायुडू अपनी खास बस
में कुछ पत्रकारों को साथ लेकर निकले थे। मैं और रविकांत रेड्डी भी उनके साथ थे।
आज के मंत्री तलसानी श्रीनिवास यादव उस समय बाबू की कैबिनेट में टूरिज़्म मिनिस्टर
हुआ करते थे और कृष्णा यादव लेबर मिनिस्टर। ये दोनों मंत्री भी उस दिन साथ में थे।
उन दिनों अभी इलेक्ट्रानिक मीडिया के कैमरे इतने आम नहीं हुए थे। फोटोग्राफर भी
इतनी भीड़ भी किसी दौरे में नहीं हुआ करती थी। नायुडू ने टैंकबंड पर वाइसराय (अब
मैरियट होटल) के पास अचानक अपनी बस रोकी। मैं और रविकांत चूँकि दरवाज़े वाली सीट
पर बैठे थे, इसलिए सबसे पहले नीचे उतरे। हम बस के दरवाज़े के बिल्कुल पास खड़े थे और चंद्रबाबू बस की दूसरी सीढ़ी
पर। उन्होंने संजीवय्या पार्क की ओर इशारा करते हुए कहा कि क्यों न कुकटपल्ली से निंबोली
अड्डा तक नाले पर मेट्रो ट्रेन का निर्माण किया जाए।
हमारे लिए मेट्रो
शब्द बिल्कुल नया था। नायुडू के दिमाग़ में क्या चल रहा था, इसके बारे में जानने
के लिए कुछ और सवाल किये तो उन्होंने अपने दिमाग़ में पल रहे उस आइडिया को सामने
रखते हुए कहा था कि कुकटपल्ली से एक नाला हुसैन सागर को आता है और हुसैन सागर नाला
निंबोली अड्डटा के पास मूसी में मिलता है। इस पर मेट्रो रेल बनायी जा सकती है।
नीचे नाला रहेगा, उपर रेल और उस पर सड़क का निर्माण किया जा सकता है।
मेट्रो में पहली बार सफर करते मीडिया के कुछ दोस्त |
ऑफिस पहुँचकर यह
बात जैसे ही हिंदी मिलाप के उस समय के न्यूज़ एडि़टर सदाशिव शर्मा साहब को बतायी और उनकी प्रतिक्रिया सुनी तो
कुछ देर के ही सही आँखों में एक चमक जागी। वह शायद मेरा पहला बाइलाइन था, जो फ्रंटपेज
पर आठ कॉलम में बैनर बन गया था। ..नाले ऊपर रेल, रेल ऊपर सड़क। शर्माजी से बातचीत
के दौरान बात समझ में आयी थी कि मेट्रो रेल शहर के लिए बड़ी उपलब्धि होगी और आज
सोलह-सत्रह साल बाद खुली आँखों से देखा गया, वह ख़्वाब पूरा होने जा रहा है। इस बीच हालाँकि दिल्ली और चेन्नई की मेट्रो में भी सफर करने का मौक़ा मिला, लेकिन अपने शहर की मेट्रो में सवार होने की खुशी कुछ अलग ही रही।
हालाँकि मेट्रो
के इस सफर में कई मोड़ आये। वह रेल नाले पर न चलकर सीधे सड़क पर आ गयी। बीस-तीस
नहीं बल्कि पूरे 72 किलोमीटर तक बन रही है। इस बीच तीन पार्टियों के पाँच मुख्यमंत्रियों
ने राज्य पर शासन किया। राज्य का विभाजन हुआ। बदला बहुत कुछ और बदल भी रहा है।
शासक चाहे जो हों, हैदराबाद उनका है और उन्हें हैदराबाद के विकास से जुड़ना ज़रूरी
है।
उन दिनों भी हैदराबाद
में बहुत कुछ बदल रहा था। हाइटेक सिटी वजूद में आ रही थी। नयी नयी सड़कें बन रही थीं,
सड़कों को नंबर मिल रहे थे। इस बीच एमएमटीएस शुरू हो गयी, लेकिन बीआरटीएस का सपना
फाइलों में गुम हो गया। हैदराबाद के विकास की गति जितनी तेज़ हुई, सड़कों पर
गाड़ियों को उतना ही धीमा होना पड़ा। मिनटों का सफर घंटों में बदला। लोगों को डर है कि कहीं सब कुछ जाम न हो जााए, लेकिन अब उम्मीद है
कि हैदराबाद मेट्रो रेल उस सफर को फिर से घंटों से घटा कर मिनटों में समेट ले।
बहुत खूब सलीम साहब.........
ReplyDeleteبہت خوب سلیم صاحب
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई सलीम भाई।
ReplyDeleteCongratulations
ReplyDeleteमेट्रो के आगमन की पूरे शहर को मुबारकबाद।
ReplyDeleteसरकारी पालिसी की अमलावरी में दशकों का निकल जाना विचारणीय है।
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