लड़कियों का चुंबकीय आकर्षण हमेशा बना रहेगा-
असीमा भट्ट के साथ ऐतिहासिक चारमीनार के पास घूमते हुए बतियाते हुए गुज़री एक शाम की याद में...
हिंदी के मंचों पर चर्चित
शख़्सियत असीमा भट्ट पिछले दिनों हैदराबाद में थीं। एक शाम चारमीनार के पास घूमते
हुए ईरानी चाय और उस्मानिया बिस्कुट का स्वाद चखने के दौरान उनसे कई सारे विषयों पर
गुफ्तगु हुई।
आम
तौर पर वह बड़ी सी बिंदी लगाये और साड़ी पहनने के लिए मशहूर हैं, लेकिन उस दिन वह कुर्ता
सलवार पहने हाथ में एक छोटा-सा पर्स थामे पुराने शहर की सैर करने निकल पड़ी थीं।
हो सकता है वह इससे पहले भी हैदराबाद आयी हों, लेकिन शाम के बाद चकाचौंध
रोशनी में चारकमानें, गुलज़ार हौज़ और चारमीनार
के आस- पास का माहौल देखने का आनंद अलग ही होता है। जिसके बारे में उन्होंने खुलकर
कहा भी। बात उनके एक नाटक ‘ये न थी हमारी किस्मत’ पर भी हुई। कहने लगीं, लड़कियाँ शादियों के
ख़्वाब बुनती हैं। ऐसे या वैसे व्यक्ति से शादी करूँगी.. के खयालों में जो कुछ वह
सोचती हैं या जिस ख़्वाब के धारे में दूर तक बहती चली जाती हैं। उस सबके पीछे
हैप्पी एंडिंग की भावना होती है, लेकिन असकर यह एक फेरीटेल से अधिक नहीं
होता।
सिनेमा
में ग्लैमर की तलाश में आने वाली लड़कियों के ख़्वाब शादी के ख्वाब से कितने अलग
होते हैं? इस सवाल पर उन्होंने जो
कुछ कहा वह बड़ा दिलचस्प है। कहती हैं कि आज सिनेमा में नारी के किरदार शोकेस में
रखी जाने वाली वस्तुओं की तरह हैं। दंगल और मेरी कॉम जैसी फिल्मों को छोड़ दें तो
अधिकतर फिल्में नारी को आकर्षक वस्तु के रूप में परोसने वाली ही हैं। चाहें जितनी
बातें फिल्मी दुनिया में औरतों के बारे में कही जाती रही हों, लेकिन यह सत्य है कि ख़्वाब बहुत ख़ूबसूरत होते हैं और उन्हें हक़ीक़त से ज्यादा पसंद किया जाता है। यहाँ
ग्लैमर है, लोकप्रियता है, पैसा है। इन सबके बीच नारी
का आकर्षण काम कर जाता है। फिल्मों में ही क्यों समाचार चैनलों में भी ऐसा ही होता
है। लड़कियों में आजकल न्यूज़ एंकर बनने की भी होड़ है। यहाँ उसे पढ़ना अच्छा आता
है या नहीं, भाषा अच्छी है या नहीं
आत्मविश्वासी है या नहीं इससे अधिक देखा जाता है कि ऐट्रैक्टिव और गुडलुकिंग है या
नहीं। लड़कियों का चेहरा न्यूज़ एंकर के रूप में एक और काम आता है कि दर्शक जल्दी
जल्दी चैनल नहीं बदलता। यह कोई नई बात नहीं है। लड़कियाँ अपने में हमेशा से ही चुंबकीय
आकर्षण रखती हैं और यह विशेषता उनमें बनी रहेगी। स्त्री के आकर्षण से किसी को
इन्कार नहीं हो सकता।
इससे
पुर्व संध्या में उन्होंने हाइटेक सिटी के फिनिक्स सभागृह में 'क से कविता' के मंच
पर द्रौपदी नाटक प्रस्तुत किया था। रंगमंच पर कई एकल नाटकों के किरदारों में
उन्होंने अपनी प्रभावी छवि अंकित की है और लगभग सभी नाटकों में नारी किरदारों की
व्यथा कथा उभर कर सामने आती है। द्रौपदी के अंत में वह कहती हैं, ‘कोई नहीं आया मेरी लाज
बचाने। मैं भूल गयी थी कि मैं द्वापर की द्रौपदी नहीं हूँ। मैं आज की द्रोपदी हूँ।
जहाँ खुली सड़क पर, चलती बस में निर्भया की
लाज तार तार हुई और किसी ने उसकी गुहार नहीं सुनी। कहने के लिए वक्त बदल गया है, लेकिन कुछ भी नहीं बदला
है। हम औरतों को लगता है वी आर मॉडर्न, वी आर लिबरेटेड वुमेन बट नो, नथिंग हैज चेंज।‘
मोहे
रंग दे, बैरी पिया, रिश्तों से बड़ी प्रथा तथा
तुम देना साथ मेरा में उनके अभिनय को सराहा गया। टेलीवीजन के दर्शक बैरी पिया की
बड़ी ठकुराईन के रूप में उन्हें जानते हैं। उन्होंने डे लाइट, महोत्सव, स्ट्रिकर, देख भई देख आदि फिल्मों
में भी अभिनय किया। अनेक लघु फिल्मों में प्रमुख भूमिकाएँ निभाई। साहित्य लेखन में
भी उन्होंने अपनी यात्रा जारी रखी। उनकी कविताओं के विषय भी आकसर नारी की भावनाओं
को प्रखर रूप से अभिव्यक्त करने वाले रहे हैं। मोर्चे पे कविता और हिंदी स्टूडियो
पर कविता पढ़ते हुए असिमा भट्ट कुछ नये वीडियोज़ भी देखे जा सकते हैं।
असीमा
का संबंध बीहार के एक छोटे से शहर नवादा से है। मगध विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान
में स्नातकोत्तर उपाधि अर्जित करने के बाद उन्होंने एनएसडी और एफटीआईआई जैसे
संस्थानों से नाटक और फिल्म का प्रशिक्षण प्राप्त किया। बचपन में 'भागो नहीं दुनिया को बदलो' सहित कई क्रांतिकारी विचारधारा की रचनाएँ पढ़ते हुए पली बढ़ी हैं। कभी
कवि आलोक धन्वा से विवाह भी उनके चर्चा में रहने का कारण था, लेकिन उन्होंने बहुत सारी
घटनाओं के बाद अपना एक अलग अस्तित्व बनाने में सफलता पाई है।
असीमा
ने अपने पिता सुरेश भट्ट पर एक किताब ‘मन लागो यार फकीरी में’ लिखी है, जो बहुत जल्द प्रकाशित
होने जा रही है।
............... FM SALEEM
हिंदी के मंचों पर चर्चित
शख़्सियत असीमा भट्ट पिछले दिनों हैदराबाद में थीं। एक शाम चारमीनार के पास घूमते
हुए ईरानी चाय और उस्मानिया बिस्कुट का स्वाद चखने के दौरान उनसे कई सारे विषयों पर
गुफ्तगु हुई।
सिनेमा
में ग्लैमर की तलाश में आने वाली लड़कियों के ख़्वाब शादी के ख्वाब से कितने अलग
होते हैं? इस सवाल पर उन्होंने जो
कुछ कहा वह बड़ा दिलचस्प है। कहती हैं कि आज सिनेमा में नारी के किरदार शोकेस में
रखी जाने वाली वस्तुओं की तरह हैं। दंगल और मेरी कॉम जैसी फिल्मों को छोड़ दें तो
अधिकतर फिल्में नारी को आकर्षक वस्तु के रूप में परोसने वाली ही हैं। चाहें जितनी
बातें फिल्मी दुनिया में औरतों के बारे में कही जाती रही हों, लेकिन यह सत्य है कि ख़्वाब बहुत ख़ूबसूरत होते हैं और उन्हें हक़ीक़त से ज्यादा पसंद किया जाता है। यहाँ
ग्लैमर है, लोकप्रियता है, पैसा है। इन सबके बीच नारी
का आकर्षण काम कर जाता है। फिल्मों में ही क्यों समाचार चैनलों में भी ऐसा ही होता
है। लड़कियों में आजकल न्यूज़ एंकर बनने की भी होड़ है। यहाँ उसे पढ़ना अच्छा आता
है या नहीं, भाषा अच्छी है या नहीं
आत्मविश्वासी है या नहीं इससे अधिक देखा जाता है कि ऐट्रैक्टिव और गुडलुकिंग है या
नहीं। लड़कियों का चेहरा न्यूज़ एंकर के रूप में एक और काम आता है कि दर्शक जल्दी
जल्दी चैनल नहीं बदलता। यह कोई नई बात नहीं है। लड़कियाँ अपने में हमेशा से ही चुंबकीय
आकर्षण रखती हैं और यह विशेषता उनमें बनी रहेगी। स्त्री के आकर्षण से किसी को
इन्कार नहीं हो सकता।
असीमा
का संबंध बीहार के एक छोटे से शहर नवादा से है। मगध विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान
में स्नातकोत्तर उपाधि अर्जित करने के बाद उन्होंने एनएसडी और एफटीआईआई जैसे
संस्थानों से नाटक और फिल्म का प्रशिक्षण प्राप्त किया। बचपन में 'भागो नहीं दुनिया को बदलो' सहित कई क्रांतिकारी विचारधारा की रचनाएँ पढ़ते हुए पली बढ़ी हैं। कभी
कवि आलोक धन्वा से विवाह भी उनके चर्चा में रहने का कारण था, लेकिन उन्होंने बहुत सारी
घटनाओं के बाद अपना एक अलग अस्तित्व बनाने में सफलता पाई है।
असीमा
ने अपने पिता सुरेश भट्ट पर एक किताब ‘मन लागो यार फकीरी में’ लिखी है, जो बहुत जल्द प्रकाशित
होने जा रही है।
............... FM SALEEM
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