सफलता के लिए अपने आपको बेवकूफ़ न बनाओ- मनोहर भट्ट
सप्ताह का साक्षात्कार
मनोहर भट्ट दक्षिण कोरियाई मोटर कंपनी किया
मोटर्स के भारत में क्रय एवं विपणन प्रमुख हैं। इससे पूर्व वे मारुति सुज़ुकी और हुंडई में प्रमुख पदों पर कार्य चुके हैं। मोटर उद्योग विशेषकर राष्ट्रीय स्तर
पर प्रमुख कंपनियों में 25 से अधिक वर्ष का अनुभव रखते हैं। उनका जन्म कर्नाटक के
उडपी शहर में हुआ। पिता केंद्र सरकारी सेवा में थे इसलिए देश के कई प्रांतों में
रहने का मौका मिला। वे मूल रूप से मरीन इंजीनियर हैं और कुछ वर्ष तक इस क्षेत्र
में काम करने के बाद उन्होंने उस क्षेत्र को अलविदा कहा और बैंगलूर से एमबीए करने
के बाद मोटर उद्योग में चले आये। पिछले सप्ताह किया मोटर्स ने भारत में (आंध्र प्रदेश के अनंतपुर
में) अपनी
कारों के निर्माण प्लांट के फ्रेमवर्क का उद्घाटन किया। इस कार्यक्र के लिए यात्रा के दौरान बैंगलूरू के एक रिसार्ट में मनोहर भट्ट से मुलाक़ात हुई। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के कुछ
अंश-
बचपन की कुछ यादें, कहाँ पले बढ़ें और शिक्षा
दीक्षा कहाँ हुई?
मेरा जन्म दक्षिण भारत (कर्नाटक) के उडपी शहर
में हुआ। पिताजी केंद्र सरकार के ऑडिट एण्ड एकाउण्ड विभाग में सेवारत थे। इसलिए
जहाँ उनका स्थानांतरण होता, हमें भी अपना स्कूल बदलना पड़ता। दिल्ली, बैंगलूर और हैदराबाद
के पास नागार्जुन सागर भी कुछ साल बिताए। वे कर्नाटक बैंक के प्रबंध निदेशक के
रूप में सेवानिवृत्त हुए। मुझे याद है कि 1970 में जब नागार्जून सागर का निर्माण
लगभग पूरा हो गया था। हम लोग वहाँ थे, बिल्कुल ग्रामीण क्षेत्र था। वहाँ से कई बार
हैदाराबाद जाना हुआ।
मोटर उद्योग में प्रवेश योजनाबद्ध तरीके से
हुआ या फिर यह इत्तेफ़ाक है?
दर असल मैंने मरीन इंजीनियरिंग की शिक्षा
प्राप्त की थी। चार साल तक मैंने जहाज में नौकरी की। क़रीब ही था कि मैं चीफ
इंजीनियर बनूँ, लेकिन मैंने वह नौकरी छोड़ी और आईआईएम बैंगलूर चला आया। यहाँ मैंने
एमबीए में प्रवेश लिया और शिक्षा पूरी होने के बाद मुझे मारुति कंपनी में नियुक्ति
मिल गयी। इस तरह मोटर उद्योग में प्रवेश हुआ।
मरीन तो आपकी दिलचस्पी का विषय रहा है। वह
अनुभव कैसे रहे?
यह एक बहुत अलग दुनिया है। इस क्षेत्र में
रहते हुए सारी दुनिया देखने का मौक़ा मिलता है। हालाँकि बहुत कठोर जीवन होता है,
लेकिन उसके लाभकारी पहलु भी हैं। समुद्र में घूमते हुए आप दुनिया का अवलोकन कर
सकते हैं। बहुत सारी यादें और अनुभव इस जीवन के हैं। एक घटना ज़रूर सुनाता हूँ। यह
1987 की बात है। हमारा जहाज़ दक्षिणी समुद्र में आस्ट्रेलिया के पास से गुज़र रहा
था। वहाँ छोटे छोटे द्विप हैं। इत्तेफ़ाक हुआ कि कुछ एमर्जेन्सी के कारण हमने अपना
रास्ता बदलकर दूसरे रास्ता लिया। यहाँ देखा कि कुछ लोग लाइव बोट पर हैं और मदद
चाहते हैं। हमने जहाज रोका और उन्हें अपने जहाज पर सवार कर लिया। पता चला कि वहाँ
दो दिन पहले एक जहाज डूब गया है और वे किसी तरह इस बोट पर जिंदगी को बचाए हुए हैं।
वे लगभग 45 लोग थे। जब वे जहाज में भीतर आये तो जहाज की फर्श को चूमने लगे। आज भी
वह दृष्य आँखों में ज़िंदा है।
मोटर उद्योग में आने के बाद आपने किस तरह के
परिवर्तन अनुभव किये?
ऑटो उद्योग में मैंने 1992 में प्रेश किया
था। लगभग 26 वर्ष हो रहे हैं। बहुत सारे परिवर्तन इस क्षेत्र में आये हैं। उस
वक़्त भारत में एक ही बड़ी कंपनी थी, मारूति। सामान्य ग्राहकों के लिए विभिन्नताओं
का बाज़ार नहीं था। अधिक विकल्प नहीं थे। इसलिए जो भी अच्छा उत्पाद मिल जाए वो खुश
होते थे। अब ग्राहक काफी अनुभवी और परिपक्व हो गये हैं। उनकी मांग और ख्वाहिशें
दोनों बढ़ी हैं। इसके साथ-साथ एक बहुत अच्छी बात यह भी हुई है कि जब कोई अच्छी
चीज़ ग्राहक को मिलती है तो वह उसकी तारीफ भी खुले मन से करते हैं। पाँच साल बाद मैंने
हुंडई ज्वाइन की। उस वक़्त यह भारत में बिल्कुल नयी कंपनी थी। लोग कहते थे, यह
कोरियाई कंपनी है, चलेगी क्या। मैंने पाया कि भारतीय ग्राहक जब कोई अच्छी चीज़
देखता है तो उसे स्वीकारने में देर नहीं करता। कई बार तो वह नाम और ब्रांड के नये
होने की ओर भी अधिक ध्यान नहीं देता।
किया के साथ जुड़ना इसलिए भी एक अलग अनुभव
होगा, क्योंकि यह विश्वस्तर पर नये ग्राहकों तक पहुंचने वाली कंपनी है। यह बहुत ही
चुनौतीपूर्ण कार्य है। कंपनी के लिए भारत में बाज़ार पैदा करना और बल्कि सभी तरह
की कारों की श्रेणियों में इसके ब्रांड को लोकप्रिय बनाने की ज़िम्मेदारी मुझपर
है। मुझे विश्वास है कि बाज़ार में एक विशेष हिस्सेदारी तो बनाई ही जाएगी, लेकिन
साथ ही साथ भारत में कार के नये ग्राहकों में पहुँच बनाने के उद्देश्य में भी
सफलता अर्जित की जाएगी।
आप कई सारी देशी विदेशी कंपनियों में काम कर
चुके हैं। यह बताइये कि जब विदेशी कंपनियाँ भारत में अपनी कारों का उत्पादन करती
हैं तो क्या वे उसी तरह के मॉडल बनाती हैं, जो विदेशों में हैं या फिर भारत के
अनुसार उसे डिज़ाइन किया जाता है?
मैं इस मामले में किया का ही उदाहरण दूँगा।
यह बिल्कुल युवा ब्रांड है। विश्व भर में इसने युवा लोगों को आकर्षित किया है।
भारत सबसे अधिक युवाओं का देश है। इसलिए इसकी डिज़ाइन फिलासफी में अधिक अंतर नहीं
होगा। युवाओं की ज़रूरतें इसमें शामिल हैं। एक विशेष घटना का उल्लेख मैं करना चाहूँगा।
हमारे चीफ डिज़ाइनर पीटर श्रेयर के सामने जब भारत में कार पेश करने का प्रस्ताव
आया। उन्होंने अपनी टीम के साथ देश भर का दौरा किया और कार के उपभोक्ताओं की पसंद
ना पसंद का अध्ययन किया। उन्होंने ड्राइवरों से भी बातचीत की। उन्होंने देखा कि
अधिकतर भारतीय अपनी गाड़ी के सामने हिस्से में अपने अराध्य की एक मूर्ति लगाते
हैं। उन्होंने एक मूर्ति डिज़ाइन की। उन्होंने सोचा की इस मूर्ति को स्टेयरिंग के
पास नीचे लगाने के बजाय कुछ ऊपर होना चाहिए। उन्होंने एक मूर्ति डिज़ाइन की और उसे
कार में सामने के ही हिस्से में लेकिन कुछ ऊपर स्थापित किया। ऐसा लगता है कि वह
हवा में है। दिल्ली ऑटो शो में लोगों ने जब इसे देखा तो देखते रह गये।
आपने कहा कि लोगों की ख़्वाहिशें बढ़ी हैं।
इससे मोटर उद्योग की चुनौतियाँ भी बढ़ी होंगी?
सबसे बड़ी चुनौति तो यह है कि टेक्नोलॉजी के
विकास के साथ-साथ नियामक प्राधिकरणों की नियम कानून भी ध्यान में रखने पड़ते हैं।
टेक्नोलॉजी के उपयोग में सुरक्षा के मुद्दों पर काफी लंबे अर्से तक काम करना पड़ता
है। दूसरे अब प्रदूषणमुक्त इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग को पूरा करना है। किया के
पास कई ऐसी टेक्नोलजीज़ हैं, अमेरिका, कोरिया और यूरोप में इसका उपयोग किया जा रहा
है। इस मामले में भारत में अभी शुरूआती दौर हैं। हाइड्रोजन फ्यूल टेक्नोलोजी का
विकास भी हो रहा है।
आपकी नज़र में कौनसे तत्व हैं, जो आदमी को
कामयाब बनाते हैं?
सब से पहले तो आदमी को ईमानादर होना चाहिए। ख़ुद
अपने साथ और दूसरों के साथ ईमानदारी सफलता की पहली शर्त है। वह अपने आपको अच्छी
तरह जान ले कि उसमें क्या क्षमता और योग्यता है। ऐसा न हो कि वह अपने आपको उल्लू
बनाता रहे। जब वह अपनी भीतरी शक्ति को जानेगा तो दूसरों के साथ भी बेहतर तरीक़े से
काम करेगा। दूसरी बात कि जो गुज़र गया उसपर अफ़सोस करने और भविष्य में मिलने वाले
फल की चिंता करना बेकार है। जो गुज़र गया, गुज़र गया। आज की ज़रूरत यह है कि आप
काम करते रहें। फल कल आए या परसों उसकी चिंता नहीं होनी चाहिए। आज में खुश रहना
ज़रूरी है।
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