वायलिन से गिटार पर आये और जम गये... नीरज कुमार
जब उनकी उंगलियाँ गिटार पर चलती हैं, तो सुनने वाला संभल कर बैठ जाता है। उसके कानों में कुछ अलग सुर घुलने लगते हैं। लगता है कि ऐसा कुछ उनकी उंगलियों में है, जो जादू का काम करता है। बात ए.आर. नीरज कुमार की है। नीरज बहुत कम बोलते हैं, लेकिन बहुत अच्छा बजाते हैं। बहुत साल पहले रेल्वे के एक कार्यक्रम में उन्हें गिटार बजाते हुए देखा था, बाद में जब कुछ निजी कार्यक्रमों विशेषकर `स्वर संगम' और `आलाप' की महफिलों में उन्हें सुना तो लगा कि वे भीड़ से अलग हैं। उनके कुछ हट कर होने का राज़ गिटार में नहीं वायलिन में है। उन्होंने अपनी शुरूआत अपने पिता और गुरू ए. रामांजुलु की छत्रछाया में की थी। रामांजुलु नज़िाम के दरबारी संगीतकारों में से एक थे। उन्होंने एक बैंड भी बनाया था। हैदराबाद से बहुत सारे कलाकार उस बैंड के कारण गायन के क्षेत्र में उभरे और विशेषकर हैदराबाद में छोटी-छोटी महफिलों और आर्केस्ट्रा के माहौल को सजाते रहे। पिता की विरासत को संभालने का काम नीरज ने बहुत सलीके से किया। अपने बारे में वह बताते हैं, `संगीत तो विरासत में मिला है, लेकिन उसे पेशा बनाने की अनुमति नहीं थी। पिताजी चाह...