तीसरी आँख
भला हम कितने दिन जीते हैं? किसी के लिए भी इसके बारे में ठीक-ठीक बताना शायद मुश्किल होगा, लेकिन यह तो पूरे विश्वास के साथ बताया जा सकता है कि एक न एक दिन इस नश्वर शरीर का अंत होना है।
यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण होगा कि हमने इस जीवन में न शरीर के बारे में कुछ जाना और न ही आत्मा के बारे में। न ही ऐसे लोगों से मिले जो हमें इनमें छुपी शक्तियों के बारे में बता सकें। शरीर और आत्मा पर पड़े राज़ के पर्दों को हटा सकें। जीवात्मा के गंतव्य का ज्ञान दे सकें। चेतना के चक्षु उघाड़ सकें। उस सर्वश्रेष्ठ को प्राप्त करने की चाह जगा सकें, जिसका हिस्सा आत्म में छुपा है। उस साधक को जगा सकें, जो कहीं भीतर छुपा बैठा है। उस तीसरी आँख से देखने की क्षमता को बलवान बना सकें, जो हमारे भीतर रहकर भी जागफत नहीं है।
यह सब किसी गुरू की कफढपा से ही हो सकता है। कोई महा आत्मा ही सच्चे मार्ग पर अग्रसर कर भीतरी शक्तियों को उजागर करने का मंत्र प्रदान कर सकती है।
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