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Showing posts from 2025

दिल हूम हूम करे.. आइसक्रीम का स्वाद और भूकंप के झटके

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गुवाहाटी हवाई अड्डे के डिपार्चर वाले हिस्से में कुर्सी पर बैठा मैं अपने विमान के आने का इंतज़ार कर रहा था कि अचानक फर्श कंपकंपाने लगा। कुछ ही सेकंड में वह कंपकंपाहट तेज़ हुई और ऐसा महसूस हुआ कि कोई पकड़कर इमारत को ज़ोर से हिलाने की कोशिश कर रहा है। सिर्फ कोशिश...पहले दिमाग़ में यही आया कि कोई विमान शायद इमारत के नीचे घुस गया है, लेकिन कुछ ही सेकेंड में समझते देर नहीं लगी कि कुछ बड़ा हुआ है। कुछ लोग कुर्सियों से उठकर भागने लगे। हालाँकि कुछ ही सेकेंड बाद कंपकंपाहट कम हुई और लोग घबराहट में ही सही जहाँ तहां सहम गये और अपनी कुर्सियों पर आ बैठे। सब अपने रिश्तेदारों और नजदीकी मित्रों से सेलफोन पर उस घटना की सूचना देकर कुशमंगल पूछने लगे। 14 सितंबर (2025, शाम के लगभग 5 बज रहे थे।   मुख्यमंत्री के मेहमान असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा के मेहमान और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम में एक विशेष प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने के लिए गुवाहाटी की यात्रा का इस तरह अजीब परीस्थितियों में समाप्ति को पहुँचना, था तो कुछ अजीब सा, लेकिन ऐसा था तो था, अब भला उसे कौन बदल सकता है। ...

रंगों के साथ हंसने, रोने और जीये जाने वाली कलाकार जया बाहेती

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जीवन तो एक ही है , लेकिन वह किसी के लिए विस्तार है तो किसी के लिए सारांश। कोई उसे फैला रहा है तो कोई समेट रहा है। किसी के लिए बिल्कुल फीका तो किसी लिए इंद्रधनुष की छटाओं की तरह रंगारंग। हैदराबाद की प्रतिष्ठित चित्रकार जया श्री बाहेती के लिए जीवन रंगों से भरा हुआ है। बीते तीन दशकों से अधिक समय में उन्होंने कैन्वस पर रंगों की आड़ी तिरछी , गोल और कभी - कभी समानांतर लकीरों से हज़ारों आकृतियां उकेरी हैं। बंजारा हिल्स में उनकी छोटी सी गैलरी का अवलोकन करते हुए हम पाते हैं कि उन्होंने भारतीय संस्कृति की धरोहर से प्रतीकों को अपने चित्रों में कुछ इस तरह उकेरा है कि श्वेत श्याम चित्रों में भी चटख़ते हुए रंगों की छटाओं के छुपे रहने का एहसास होता है।   कला समीक्षक जॉर्जिना मैडॉक्स उनके बारे में कहती हैं कि जया बाहेती अपने चित्रों में जीवंत लेकिन शांत रंगों की एक अमूर्त पृष्ठभूमि का निर्माण   करती हैं , उनके चित्र दर्शकों में सहानुभूति भर देते हैं , कोमलता का एहसास जगाते हैं। पृथ्वी ,  जल ,  अग्नि ,  वायु और आकाश जैसे तत्वों को मिश्रण भी उनके चित्रों में मिलता है।   वह ज...

राइट भी राइट है या नहीं पता नहीं : पियूष मिश्रा

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  साक्षात्कार- कलाकारों की ज़िंदगी के किस्से कुछ अलग ही होते हैं। आश्चर्यचकित कर देने वाली घटनाओं और साहसों से भरे। हिंदी रंगमंच, सिनेमा और संगीत के क्षेत्र से जुड़े बहुआयामी और प्रतिभावान कलाकार पियूष  मिश्रा के जीवन में भी ऐसी घटनाओं की कमी नहीं है। ग्वालियर की यात्रा के दौरान जब उनसे मुलाक़ात हुई तो पता बहुत सी दिलचस्प बातों को जानने का मौका मिला। बताने लगे कि उन्होंने बचपन में एक फिल्म देखी थी दीवार, उसी फिल्म को देखकर मन में खयाल आया था कि अमिताभ बच्चन के साथ काम करेंगे। उन्होंने उसी समय अपने पिता को भी बता दिया था कि वे एक एक दिन अमिताभ बच्चन के साथ काम करेंगे और फिर लगभग अड़तीस साल बाद उन्होंने 2013 में फिल्म पिहु में अमिताभ के साथ कलाकारों की टीम में शामिल थे। लगभग 20 साल की उम्र में ग्वालियर से निकल कर दिल्ली में एनएसडी में प्रशिक्षण प्राप्त किया। कई बरसों तक नाटक करते रहे और एक दिन मुंबई की फिल्मी दुनिया का हिस्सा बन गये। उनका मानना है कि सपने देखना और उसे पूरा करने के लिए निरंतर प्रयास करना ज़रूरी है। चूंकि हम ग्वालियर में थे और ग्वालियर में पले बढ़े कलाकार से बात ...

माया मोहन

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(कहानी) मौसम विभाग का अनुमान सही निकला था। बारिश कभी थम-थम कर तो कभी जम-जम कर बरस रही थी। मैं अपने छाते को संभाले फुटपाथ से बचते-बचाते किसी तरह कॉफी डे तक पहुँचा। आज लोग बहुत कम थे। यूं भी वहाँ जगह इतनी बड़ी थी कि भीड़ जैसी हालत कम ही नज़र आती। मैं अकसर छातेनुमा टीन के शेड के नीचे बैठा कॉफी की चुस्कियों के साथ अपनी कहानियों के लिए किरदार तलाश करता था। अक्सर लोग एक दूसरे को चेहरे से जान-पहचान लेते और आँखें मिलने पर कभी जबान से तो कभी इशारे से हाय हैलो कर लिया करते। उस दिन बारिश के बीच जब मैंने अपने टेबल की ओर कदम बढ़ाए तो वहाँ पहले से कोई मौजूद था। मैं कोई दूसरी जगह तलाश करने के बारे सोच ही रहा था कि उधर से आवाज़ आयी , " आइए लेखक महोदय , आपके टेबल पर कौन क़ब्ज़ा कर सकता है ?" मैंने मुश्किल से ' जी ' कहा और बैठ गया। वो माया थी। वो भी मेरी तरह अक्सर कॉफी डे आती थी। मैं सोचता ज़रूर था कि उसके बारे में मुझे जानना चाहिए। वो मेरी किसी कहानी का किरदार हो सकती है , बल्कि वो खुद पूरी की पूरी कहानी भी हो सकती है , लेकिन उसकी शख़्सियत का दबदबा इतना था कि मैं कभी उससे बात करन...