फिर से जवान होने को है कश्मीर की कानी शॉल का बुनाई कौशल
कानीहामा गाँव में एक कानी बुनाई हथकरघे का दृश्य हज़ार बातों की एक बात है कि उम्मीद पर दुनिया क़ायम है और फिर ज़मीन की जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर के छोटे से गांव कानीहामा पहुँच कर हमें इस बात का एहसास कुछ ज्यादा ही होता है कि एक हज़ार से भी ज्यादा साल पहले की कानी बुनकर तकनीक, जो कुछ साल पहले तक ऐसा लग रहा था कि दम तोड़ रही है, अब फिर से जवान होने को है। कानीहामा गाँव में एक कानी शिल्पकार कानीहामा गाँव का नाम महीन बुनाई की तकनीक के नाम पर पड़ा है, जहाँ बड़ी संख्या में इससे जुड़े शिल्पकार रहते हैं। गाँव के स्वागत बोर्ड के बिल्कुल पास सरकार ने शिल्पकारों के लिए एक सुविधा केंद्र स्थापित किया है। इसी के एक हिस्से में सज्जाद कानीहामा कुछ कारीगरों के साथ कानी शॉल की बुनाई की देखरेख कर रहे हैं, जहाँ हथकरघे में पश्मीना रंगारंग धागे कानी(लकड़ी की छड़) में लिपट कर आकर्षक शॉल का रूप धारण कर रहे हैं। सज्जाद अहमद कानीहामा के पिता कभी राजनीति रहते हुए विधानसभा में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे, लेकिन अब सज्जाद का पूरा ध्यान कानी शॉल के यूरोपीय बाज़ार पर है, जहाँ उनकी एक शॉल की कीमत उन्हें 1.20 ल