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...क्योंकि बारिश का संबंध केवल तन से नहीं, मन से भी होता है

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सम बदल गया है। धूप और गर्मी से हल्की-सी राहत मिल गयी है। बारिश की कुछ बूंदों ने चार महीनों से झुलस रहे तन को ही नहीं बल्कि मन को भी हल्का कर दिया है। क्योंकि बारिश का संबंध केवल तन से नहीं , मन से भी होता है। यही वो बारिश है , जो स्मृतियों को ताज़ा करती है। भावनाओं को भिगोती है। बचपन जब याद आता है तो बहुत कुछ याद आता चला जाता है। बादलों को देख कर उन्हें वर्षा के लिए बुलाने की इच्छा और उनके बरसने का आनंद। मराठी की एक मशहूर लोककविता है , जब बच्चे बारिश को बुलाते हैं तो कहते हैं- ये रे ये रे पावसा तुला देतो पैसा पैसा झाला खोटा पाउस आला मोटा पुराने लोग पैसा खोटा होने का अर्थ चाहे जो कुछ लें , लेकिन नयी सदी के लोग शायद बारिश में इसलिए नहीं भीगते हों , क्योंकि उन्हें अपनी जेबों में रखी नोटों के भीग कर बेकार होने का डर लगा रहता है। बारिश के मौसम और फिर उस मौसम को पल-पल जीने के आनंद को कवि से बेहतर भला कौन समझ सकता है! खुशी तो उस सूचना से भी मिलती है , जिसमें दूर देश के आकाश में बादल छाने का संदेश होता है। काले घन छा जाने की खुशी से वसुधा का अंग-अंग पुलकित ...

चाहे लव हो या अरेंज....जीवन एक कला है

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कॉलेज की कैंटीन में चाय की चुस्कियाँ ले रहा था कि दूरस्थ शिक्षा की एक छात्रा ने अचान सावल दाग दिया। सर...लव मैरेज ठीक होता है या अरेंट मैरेज...पता नहीं दिमाग़ में क्या चल रहा था। टका-सा जवाब दे दिया.. बिना लव के मैरेज कैसी...सवाल पूछने वाली छात्रा और उसकी सहेलियों को शायद इस जबाव की अपेक्षा नहीं थी। ...मैंने आगे जोड़ा...और ..क्या अरेंज मैरेज हो तो अपने जीवन साथी से प्रेम नहीं करोगी? कैंटीन की बैंच पर उस बातचीत से छात्राओं ने क्या परिणाम निकाला पता नहीं, लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि कुछ देर के लिए ही सही छात्राओं का वह समूह इस बात का कायल हो गया कि प्यार, मुहब्बत, वफा जैसे बहुत सारे शब्द हर लम्हे में अलग-अलग संदर्भों के साथ जीवन में नये-नये अर्थ पैदा करते हैं। बहुत सारे चिंतकों ने कहा है कि जीवन एक कला है, लेकिन शर्त यही है कि उसे उस रूप में जिया जाए। यह एक ऐसी कहानी, ऐसा नाटक है, जिसमें व्यक्ति खुद ही नायक, खलनायक, लेखक और निर्देशक है। युवावस्था के कुछ वर्ष एक खास आकर्षण में संवरकर या बिखरकर गुज़र जाते हैं। उसी उम्र के पड़ाव में  में `लव' और `अरेंज' जैस शब्दों में सिर ...

ग़ज़ल की जानी पहचानी आवाज़- शरद गुप्ता

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और मैं हैदराबाद लौट आया कौन कहता है कि बुद्धु ही लौट के घर आते हैं, कभी कभी होशियार लोग भी घर लौट के आ जाते हैं। उनका घर लौट के आना कामयाबी को पीठ दिखाना नहीं होता, बल्कि सही वक्त पर सही फैसला करना भी होता है। हैदराबाद के प्रतिष्ठित ग़जल गायक शरद गुप्ता की कहानी भी यही बताती है कि पार्श्व गायन की एक बड़ी दुनिया को छोड़कर वो अपने शहर वापिस चले आये थे। इसलिए भी कि वो अपने शौक़ को दिखावे की चकाचौंध  के हवाले नहीं करना चाहते थे और ना ही अपने पारिवारिक खुशियों को अनिश्चितता की ग़ुबार में गुम करना उन्हें अच्छा लगा। गायकी उन्होंने छोड़ी नहीं और वकालत को भी अपनाया। शरद गुप्ता अनुप जलोटा के शागिर्द हैं। वे ग़ज़ल और भजन दोनों गाते हैं। एक भिन्न आवाज़ के मालिक हैं। वे अपने बारे में बताते हैं, -     पेशे से मै वकील हूँ। प्रैक्टिस अच्छे से कर रहा हूँ। संगीत मेरा पैशन है। इसी की वज्ह से मैं सारी दुनिया घूमा हूँ। संगीत मेरे पेशे में दखल नहीं देता। 24 घंटे हैं दिन में। इसमें मैं संगीत के लिए समय निकाल ही लेता हूँ। दूसरी ओर पेशा भी मेरे नज़दीक काफी महत्वपूर्ण ह...

हैदराबाद से शुरू हूई थी जॉनी लीवर की कामयाबी की कहानी

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फिल्मों में मिमिक्री कलाकार से हास्य अभिनेता बनने में लगे थे 10 साल हिन्दी   फिल्मों के लोकप्रिय कलाकार जिन्होंने हास्य को बड़ी गंभीरता से लिया और   फिल्मों के साथ-साथ मंचीय हास्य में बहुत लंबी जिंदगी जी है। वे अपनी उम्र के साठ साल पूरे करने जा रहे है। उनका पहला   मंचीय शो हैदराबाद के रवींद्र भारती में हुआ था। रामकुमार ने अपने   चेले जॉनी को यहाँ अपनी तबियत खराब होने के कारण भेजा और उन्होंने यहाँ पहले ही शो में धूम मचा दी थी। उसी   शहर में पिछले बुधवार की शाम एक निजी महफिल में जॉनी इतना खुले की खुलते चले गये औरअपनी जिन्दगी की कई    दिलचस्प घटनाओं का सविस्तार वर्णन किया।   जॉनी लीवर ने बातचीत की शुरूआत हैदराबाद ही से की। जिस शहर में उन्होंने अपना पहला शो पेश किया था , उसी शहर में जब पिछले साल वे अपना शो लाना चाहते थे तो आंदोलनकारी गतिविधइयों के कारण उन्हें वो शो रद्द करना पड़ा। अब फिर जल्द ही वे यहाँ अपना शो पेश करने की योजना बना रहे हैं। कई बातें हुईं। उनकी अपनी जिन्दगी , कला और कलाकारों की स्थिति और हास्य का मौजूदा माहौल। और भी बहुत ...