इन्सानियत ज़िंदाबाद
एक रिश्तेदार का फ़ोन आया। वह अस्पताल में थीं , अपनी किसी मित्र की अयादत करने गयीं थीं। उन्होंने कहा , ‘ मैं तुम्हें एक अच्छी न्यूज़ दूँगी , प्रकाशित करोगे ?’ मैंने कहा , ‘ हम उसी काम के लिए बैठे हैं और अस्पताल से कोई अच्छी ख़बर आये , इससे अच्छा क्या हो सकता है। ’ रिश्तेदार ने बताया कि किसी ने अस्पताल के उस वार्ड के सारे मरीज़ों के लिए मिनिरल पानी की बोतलें और फल भिजवाए हैं। हालाँकि उस ‘ किसी ’ का नाम जानने की कोशिश में कामयाब नहीं हो सकीं। एक ओर लोगों को शिकायत होती है कि आज कल के अख़बार हत्या , डकैती , चोरी , रेप और धोखाधड़ी जैसी ख़बरें भरी होती हैं , वहीं शहर के सरकारी अस्पतालों के आस - पास मानव जाति की कुछ अच्छाइयों की कहानियाँ हर रोज़ मिलती हैं। कबीर ने कहा था , जाति न पूछो साधू की , लेकिन सरकारी अस्पताल एक ऐसी जगह है , जहाँ न लोग मदद करने के लिए ज़रूरतमंद की जाति नहीं पूछते , न ही फल , पानी , भोजन स्वीकारते हुए अन्नदान करने वाले की जाति पूछता है। अकसर ऐसा देखने में आया है कि मदद करने वाला व्यक्ति अपनी पहचान छुपाए रखता है। उसकी एक ही पहचान हो...