अम्मा! हम इंटरनेशनल हो गये....
देखना मेरी ऐनक से सुबह हुई। सूरज अभी उस पास वाली बिल्डिंग के पीछे ही था। अम्मा ने बहू को आवाज़ लगायी। उठ बेटा बच्चा जाने वाला है , उसके लिए कुछ तोशा भी तो बनाना है।.. नाश्ता तो ख़ैर किसी तरह बन ही जाता , लेकिन तोशा...अब अम्मा को क्या बताएँ कि आज कल मुसाफिर पहले जैसे लोकल नहीं रहे। वो इंटरनेशनल हो गये हैं। उन्हें तोशे की क्या ज़रूरत , लेकिन अम्मा को तो फिक्र बनी रहती है , वह पुराने ख़यालात की हैं। उन्हें बस इतना मालूम है कि रास्ते में भुख प्यास कभी भी लग सकती है। पता नहीं वहाँ खाने-पीने की चीज़ें मिल भी जाएँ या नहीं , इसलिए वो हमेशा घर से निकलते हुए मुसाफिर के साथ तोशा बांधने को कहती हैं। बैंगलूरू के एक रिसार्ट में सियासत के ब्यूरो चीफ शहाबुद्दीन हाशमी और हिंदु बिज़नेस लाइन के करेस्पांडेंट रिशी के साथ तोशा.. हैदराबाद और दक्कन वालों के लिए बहुत अहमियत की चीज़ हुआ करती थी। जब भी घर का कोई सदस्य या परिवार सफर पर निकलता तो खाने की ख़ूब सारी चीज़ें ताज़ा बनाकर बांध दी जातीं। इस ताकीद के साथ कि सफर में साथी मुसाफिर की ज़रूरत भी पूरी हो जाए। घर की बहू बेटियों को अलस...