तीन पंक्तियों की तलाश
देखना मेरी ऐनक से मूर्तिकाल राधाकृष्ण की एक कलाकृति दुनिया को देखने का एक अलग अंदाज आखिर क्या ढूंढते रहते हो … एक मित्र का अचानक पूछा गया यह सवाल पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि कोई बार-बार दोहरा रहा है , और पूछता रहता है कि किस बात की तलाश है , क्या चाहिए , क्यूँ भटकते रहते हो और जब यही सवाल अपने आपसे पूछता हूँ तो बड़ा दिलचस्प जवाब मिलता है। तीन पंक्तियों की तलाश है , जो सुकड़ती हैं तो दो और कभी कुछ बढ़ जाती हैं तो चार से पांच पंक्तियों तक फैल जाती हैं। पत्रकारिता की भाषा में इसे लीड या इंट्रो कहते हैं। वह भूमिका जो किसी भी समाचार के लिए बांधनी है। लीड़ जिससे सुर्खियाँ बनती हैं। सुर्खियाँ जो समाचार पत्र के पाठक को अपनी ओर आकर्षित करती हैं , जिसमें एक दुनिया बसी होती हैं और उसी दुनिया के बाज़ार से निकल आते हैं समाचार। एक पत्रकार की दिन भर की कमाई बस यह लीड ही होती है। इन तीन पंक्तियों के बिना उसकी दिन रात की मेहनत किसी काम की नहीं। और तीन पंक्तियाँ भी ऐसी कि जिसमें नयी , आकर्षक , ज़ोरदार , चटखारेदार , मसालेहदार , दमदार और न जाने कितने....दार की विशेषता होती है।...